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संदेश

अधूरी माँ

माँ जब पिता पर ज्यादा ध्यान देतीं, उनकी सेवा करती, हमसे पहले उन्हें खाना देती, मैं माँ से नाराज़ हो जाया करता था कि, वह पिता को हमसे ज्यादा, अपने जनों से ज्यादा चाहती हैं, प्यार करती हैं. आज जब मेरे बच्चों की माँ मेरी ओर ज्यादा ध्यान देती है, मेरी सेवा करती है, बच्चों से पहले खाना देती है, तो बच्चे उससे नाराज़ हो जाते हैं कि, वह अपने जनों से ज्यादा मुझे प्यार करती है. आजकल के बच्चे मेरी तरह चुप रहने वाले नहीं एक दिन बेटे ने यह कह ही दिया. मैं उससे कहना चाहता था- बेटा, हमें अपनी देखभाल खुद ही करनी है, तुम्हारी माँ को मेरी और मुझे तुम्हारी माँ की सेवा करनी है. जबकि, तुम्हारी देखभाल करने को हम दोनों हैं. मैंने एक के न होने का फर्क देखा है. पिता मर गए, मुझे मिलने वाला प्यार आधा हो गया, सर पर हाथ फेरने वाला पिता का हाथ नहीं रहा. माँ को ही सब कुछ करना पड़ता था. मैंने देखा था मेरे बीमार होने पर रात रात देख भाल करतीं, थपक कर सुलाती अपनी माँ को. मैंने नज़रें बचा कर देखा है बेटा माँ को खुद के सर पर बाम लगाते हुए, अपने थके पैरों को मसलते हुए, बुखार...

विकास

मुझे मालूम नहीं था कि, विकास की आंधी ऐसी होती है जिसमे वन काट दिये जाते हैं, हरियाली खत्म हो जाती है। वनों में शांत विचरने वाला सिंह विकास के अभ्यारण्य में आकर आदमखोर हो जाता है और मार दिया जाता है। ऐसे कंक्रीट के जंगल में इंसान इंसान नहीं रहता भेड़िया बन जाता है।

वसंत

मैं आजतक नहीं समझ पाया, कि, वसंत ऐसा क्यूँ होता है? उसके आने से पहले पेड़ पर पत्ते सूख जाते हैं, अपनी साखों से झड़ जाते हैं। फिर मादक वसंत आता है, हरे पत्तों, सुंदर सुंदर पुष्पों और चारों ओर हरियाली के साथ जग को हर्षाता है, मन गुदगुदाता है। मगर ऐसा क्यूँ होता है कि, उसके जाने के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है क्रोधित सूरज आग उगलने लगता  है वनस्पति, जीव और जन्तु कुम्हला जाते हैं, व्याकुल हो जाते हैं। हे प्रकृति ! वासंतिक सौंदर्य का यह कैसा प्रारंभ यह कैसा अंत।

बूढ़ी

टिमटिमाती लालटेन की रोशनी एक बूढी औरत लालटेन की रोशनी की तरह खाना बना रही अपने, पति और बच्चों के लिए . मंद प्रकाश के कारण, खदबदाती भदेली में झांकती जाती है कि खाना कितना पका. रोटी बनाते समय हाथ जल जल जाते हैं क्यूंकि काले तवे और अन्धकार में फर्क कहाँ सब आते हैं, खाना खाते हैं बूढ़ी भी खाना  खाती है बर्तन और चौका साफ़ कर सहेज देती है सभी सो गए हैं लालटेन की रोशनी धप्प धप्प कर रही है और बूढ़ी की नींद में डूबी पलकें भी, रात के अँधेरे में ग़ुम हो जाने के लिए .

पतझड़

दरवाज़े पर खडखडाहट हुई किसी के आने की आहट हुई मैंने दरवाज़ा खोला बिखरे सूखे पत्तों के साथ पतझड़ खड़ा था. मेरे मुंह से अनायास निकल गया- आहा, पतझड़ आ गया. यकायक पतझड़ खड़ खड़ाया उदास स्वर में बोला- मैं पिछले एक महीने से पीले पत्तों सा बिखरा घर घर जा रहा हूँ मुझे देखते ही हर मनुष्य भयभीत हो जाता है दरवाज़ा क्या खिडकी भी बंद कर लेता है केवल तुम हो जो प्रसन्न हो. मैंने कहा- तुम संदेशवाहक हो, तुम शरीर की नश्वरता के प्रतीक हो कि ऊंचे पेड़ों की डाल पर चढ़े पत्तों को भी पीला हो कर बिखर जाना है धरा में गिर कर मिटटी में मिल जाना है. लेकिन तुम वसंत के आने का सन्देश भी लाते हो तुम जाओगे तो वसंत आएगा. नए नए पत्ते हरियाली बिखेरेंगे और फूल खिल कर रंग बिखेरेंगे तुम तो जीवन के प्रतीक वसंत के संदेशवाहक हो. इसलिए मैं तुम्हे देख कर भयभीत नहीं. आओ पतझड़ आओ!!!

बड़ा साँप

एक आदमी को साँप ने काट लिया क्रोधित आदमी ने पलट कर साँप को काट लिया और फिर चमत्कार हुआ जब आदमी के काटने से साँप मर गया आज आदमी ज़िंदा है आदमी  जिसे काटता है वह मर जाता है। सबसे बड़ा साँप बन गया है आज आदमी।