मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

अन्ना आपके आमरण अनशन से नहीं मिटने वाला भ्रष्टाचार


क्या भ्रष्टाचार मिटाना इतना आसान है कि एक आदमी ने आमरण अनशन किया, सैकड़ों लोग उसके इर्दगिर्द खड़े हो गए, टीवी चंनेल्स के कैमरा तन गए, खूब फोटो खिंची, उसके बाद सब हाथ मिलाते हुए अपने अपने घर चले गए? नहीं.... ऐसे भ्रष्टाचार का राक्षस ख़त्म होने वाला नहीं। यह सतत लड़ाई है। यह बरसों चलेगी। ठीक वैसी ही लड़ाई जैसी महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के साथ लड़ी थी। यह लड़ाई उनके एक अनशन के साथ पूरी नहीं हो गयी थी। उन्होंने बरसों इसे लड़ा। पर इससे पहले उन्होंने भारत को जाना, भारत के लोगों को जाना। अन्ना हजारे दिल्ली के बजाय यह लड़ाई मुंबई में या महाराष्ट्र में कहीं लड़ते तो अच्छा होता। यह लड़ाई वह बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट कण्ट्रोल के विरुद्ध लड़ते, जिन्होंने क्रिकेट वर्ल्ड कप जैसे महा आयोजन में भ्रष्टाचार, ब्लैक मार्केटिंग को घुसेड दिया। यह लड़ाई शरद पवार के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी, जिन्होंने अपने अमीर बोर्ड को मंत्री होने के नाते करोडो की टैक्स छूट दिलवा कर गरीब जानता के टैक्स का पैसा चूस लिया। यह लड़ाई मुंबई के उन लोगों के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी जिन्होंने अपने मुफ्त में या कम दामों में मिले टिकेट भारत के फ़ाइनल में पहुंचते ही लाखों रुपये में बेच दिए और लोगों ने इन्हें खरीदा भी। अन्ना हजारे के लिए यह छोटी लड़ाई होती, पर वह इसमें विजयी होते तो क्रिकेट के बहाने पूरे भारत में अन्ना का सन्देश जाता। वह ज्यादा मज़बूत होकर उभरते। अन्ना ! आपके संज्ञान में ला दूं कि चाणक्य ने भारत को विशाल साम्राज्य बनाने के लिए पहले मगध के चारों ओर के छोटे छोटे राज्य जीते। सीधे मगध पर हमला नहीं कर दिया।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

बक़वास

मुझे किसी से डर लगता नहीं जनाब, क्यूंकि डराने वाले जहाँ में बहुत से हैं। मुझे मरने का कोई खौफ नहीं क्यूंकि मारने वाले बहुत से हैं। मैं मिलना चाहता हूँ नए चेहरों से, पर नकली मुखौटे यहाँ बहुत से हैं।

सोमवार, 14 मार्च 2011

वक़्त

मैं वक़्त के साथ कुछ इस तरह तेज़ चला,

अपने छूटते चले गए मैं तन्हा रह गया ।

रविवार, 26 दिसंबर 2010

सृजन

मैं सृजन करना चाहता हूँ
इसलिए लिखता हूँ।
मैं भजन करना चाहता हूँ
इसलिए पूजा करता हूँ।
कोई चाहे जो समझे
एक नहीं कर पाऊँ तो
काम दूजा करता हूँ।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

पाँव


मेरे पांव नंगे हैं,

उनमें बिवाई पड़ी हुई है,

बुरी तरह से फटे हुए,

बेजार से हैं

लेकिन,

फिर भी खुश हैं,

उन पैरों से अधिक

जो,

बेहद साफ़ सुथरे हैं

कारों पर

जूते पहन कर

बैठे रहते हैं।

कभी

ज़मीन पर चलते नहीं।
मेरे पाँव
मेरा बोझ धोते हैं,
मुझे ज़मीन पर रखते हैं।



मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

टिप्पणी

यारों
मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ।
मैंने जो कहा गलत कहा,
सो,
आपने जो सुना, गलत सुना
दरअसल,
पिछले ६३ सालों से,
टिप्पणी और वादे करते
और फिर उन्हें
वापस लेने या
पूरा नहीं करने की
आदत सी हो गयी है।
इसलिए,
मैं टिप्पणी करता हूँ
और वापस लेता हूँ।
यारों इसे गंभीरता से न लेना,
मैं नेता हूँ।

शनिवार, 27 नवंबर 2010

लकीरें

मेरे माथे पर
चिंता की
गहरी लकीरें हैं।
बचपन में मेरी माँ को
ज्योतिष ने बताया था कि
मेरे माथे की लकीरें बताती हैं कि
मैं बहुत भाग्यशाली हूँ,
बहुत बड़ा आदमी बनूँगा।
इसीलिए मेरी माँ ने मुझे
बहुत लाड दिया और प्यार किया।
मैंने पढाई पर ध्यान नहीं दिया
घूमता फिरता रहा ।
आज मैं अकेला हूँ,
माँ मर चुकी है।
आज मैं बेकार हूँ,
क्यूंकि मैं माथे की लकीरें पढ़ता रहा,
मैंने पोथी नहीं पढी।
इसीलिए मेरे माथे पर चिंता की लकीरें हैं
पर अब मैं उन्हें नहीं पढ़ता
क्योंकि
मैंने कभी
उन्हें ठीक से
पढ़ा ही नहीं।

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...