मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

टिप्पणी

यारों
मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ।
मैंने जो कहा गलत कहा,
सो,
आपने जो सुना, गलत सुना
दरअसल,
पिछले ६३ सालों से,
टिप्पणी और वादे करते
और फिर उन्हें
वापस लेने या
पूरा नहीं करने की
आदत सी हो गयी है।
इसलिए,
मैं टिप्पणी करता हूँ
और वापस लेता हूँ।
यारों इसे गंभीरता से न लेना,
मैं नेता हूँ।

शनिवार, 27 नवंबर 2010

लकीरें

मेरे माथे पर
चिंता की
गहरी लकीरें हैं।
बचपन में मेरी माँ को
ज्योतिष ने बताया था कि
मेरे माथे की लकीरें बताती हैं कि
मैं बहुत भाग्यशाली हूँ,
बहुत बड़ा आदमी बनूँगा।
इसीलिए मेरी माँ ने मुझे
बहुत लाड दिया और प्यार किया।
मैंने पढाई पर ध्यान नहीं दिया
घूमता फिरता रहा ।
आज मैं अकेला हूँ,
माँ मर चुकी है।
आज मैं बेकार हूँ,
क्यूंकि मैं माथे की लकीरें पढ़ता रहा,
मैंने पोथी नहीं पढी।
इसीलिए मेरे माथे पर चिंता की लकीरें हैं
पर अब मैं उन्हें नहीं पढ़ता
क्योंकि
मैंने कभी
उन्हें ठीक से
पढ़ा ही नहीं।

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

मैं क्यों लिखता हूँ

मैं अपने इस ब्लॉग में कुछ भी लिखूंगा। यह कविता भी हो सकती है, कोई गद्य भी या कुछ भी। जो दिमाग को मथे। कुछ समझ में ना आये और जब दिमाग थक जाये तो अक्षरों में बदल दो। दूसरे गुनें और समझे। यदि समझ सकें तो अपनी प्रतिक्रिया दें। इसी लिए यह ब्लॉग।

अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...