शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

मैं भी !

बचपन में
जब घुटनों से उठ कर
लड़खड़ाते कदमों से
चलना शुरू किया था
सीढ़ी पर
तेज़ चढ़ गए पिता की तरह
मैं भी चढ़ना चाहता था
पिता को
सबसे ऊपर/ सीढ़ी पर खड़ा देख कर
मैं
हाथ फेंकता हुआ कहता-
मैं भी !
पिता हंसते हुए आते
मुझे बाँहों में उठा कर
तेज़ तेज़ सीढ़ियां चढ़ जाते
मैं
पुलकित हो उठता
खुद के
इतनी तेज़ी से ऊपर पहुँच जाने पर
अब मैं
अकेला ही चढ़ जाता हूँ
सीढ़ियां
पर  खुश नहीं हो पाता उतना
क्योंकि,
पिता नहीं हैं
मैं खड़ा हूँ अकेला
बेटे अब कहाँ कहते हैं पिता से -
मैं भी !  

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

दिल्ली

दिल्ली
कभी  न बदली
आज भी कहाँ बदली
दिल्ली
आज भी यहाँ 
पांडवों का इंद्रप्रस्थ है
मुगलों का
शाहजहांबाद है
अंग्रेज़ों की जमायी नयी दिल्ली

आज 
देश की राजधानी है
दो सरकार हैं, आप हैं
प्राचीन में जीती हैं
आज भी दिल्ली
तभी तो
गजनवी के योद्धा
आक्रमण करते रहते है
 (नॉर्थ ईस्ट  के छात्रों पर )
और दुस्शासन
खींचते रहते हैं
चीर द्रोपदी की

इज्जत लूटती है
आज भी दिल्ली .

( निदो तानियम की  हत्या  पर )

शनिवार, 25 जनवरी 2014

शरीर

आप
थकने लगते हैं
जब
आपके पैरों को
लगता है
कि  वह
आपका शरीर ढो रहे हैं.
२-
जो
जीवन भर
किसी को कुछ नहीं देते
वह
बंद मुट्ठी के साथ
चले जाते हैं
दुनिया से.
३.
आंसू
इसलिए नहीं बहते
कि आँखों को दर्द होता है
आंसू
इसलिए बहते हैं
कि अब दिल में
दर्द नहीं होता।
४.
अब लोग
दिल से काम नहीं लेते
क्यूंकि,
दिमाग के काम के लिए
टीवी ले लिया है.
५.
अगर मेरी मदद
जीभ और खाल न करती
तो मैं
ज़हर खा लेता
आग लगा लेता। 
 ६.
बरसात में
नज़र आएगा
आम आदमी
सर पर
आम  ढोता हुआ.


गणतंत्र की रस्सी

इस गणतंत्र दिवस पर
कभी फहराते झंडे,
उसे उठाये डंडे और लिपटी रस्सी को देखो
डंडा घमंड से इतराता है
कि उसने गणतंत्र का प्रतीक उठा रखा है
मगर भूल जाता है
अपने से  लिपटी उस रस्सी को
जो उसे नियंत्रित करती है
तथा उसकी मदद करती है
ऊंचा उठाने में

गणतंत्र के झंडे को.
अगर
रस्सी का नियंत्रण न होता

तो डंडा
ख़ाक फहरा पाता आसमान में झंडा
तार तार कर रहा होता
गणतंत्र के झंडे को
और खुद
मुंह तुड़वा लेता अपना।

रविवार, 5 जनवरी 2014

चौराहा : दो चित्र

चौराहे से
गुज़रते हैं ढेरों लोग
हर रोज .
चौराहा
वहीँ ठहरा रहता है
किसी के साथ जाता नहीं
इसलिए नहीं
कि
नहीं जाना चाहता
चौराहा
बल्कि,
पहचान बन गया है
इतने लोगों के गुजरने के बाद
चौराहा.
२-
चौराहे पर
लेटे हुए कुत्ते के
लात मार दी थी मैंने
साला, रास्ता छेंके लेटा था
दर्द से कराहता
दुम अन्दर कर
पीछे मुड़ मुड़ कर
मुझे देखता
भाग गया था कुत्ता
उस दिन रात
लौट रहा था मैं
सुनसान चौराहे पर
घेर लिया मुझे
लुटेरों ने
घड़ी, पर्स और चेन
सभी लूट लेते
कि तभी वही कुत्ता
भौंकता हुआ
टूट पडा था उन पर
भाग निकले थे वह लुटेरे
और मैं
चौराहा पार कर
पीछे मुड़ मुड़ कर
देख रहा था कुत्ते को
जो सोया पडा था
ठीक दिन की तरह
बीच चौराहे पर.

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

कुर्सी

वह खड़े थे
मेरी मुखालफत में
मैंने कुर्सी दी
वह बैठ गए.
२-
कुर्सी में
वह सिफत है यारों
बेपेंदी के लोटे भी
लुढक लेते है.
३-
कुर्सी  के
चार पाएं होते हैं
तभी तो
अच्छा खासा लीडर
लोमड़ी बन जाता है.
४- 
काम करने के लिए
होती है कुर्सी
मैंने
गद्दी लगा ली
और राज करने लगा
५-
कुर्सी
लकड़ी की होती है
तभी
पत्थर दिल
बैठ पाता  है
६-
'आप' को
कुर्सी मिली
'मैं' बैठ गया.


मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

खिड़की वाले सांता

बच्चे ने
माँ से कहा-
सांता क्लॉज़ आये
चले गए
हैप्पी न्यू इयर
आने वाले हैं
माँ
यह कौन लोग है
जिनके आने से
सामने का घर रोशन रहता है
हमारे यहाँ अँधेरा
माँ बोली-
यह बड़ों के बड़े लोग है
सांता का छोटा भाई
हैप्पी न्यू इयर है
जहाँ सांता जाता है
वहीँ हैप्पी भी
खुशियों का उपहार देने
सांता को चाहिए
एक अदद खिड़की
उपहार उड़ेलने के लिए
पर हमारे पास
छत तक नहीं.
इसलिए
सांता और हैप्पी
खिड़कियों वाले घर ही जाते हैं. 

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...