बुधवार, 27 अप्रैल 2011

सीख

कभी वह दिन थे, जब हम चलते थे, हवाएं पनाह माँगा करती थीं।
आज यह दिन है कि एक तिनका भी राह रोके बैठा है।
हमने ताजिंदगी जिन्दगी को जीना सिखाया।
आज हमें मौत सीख देती है।

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

भ्रष्टाचार के लडैत

अन्ना हजारे का अनशन समाप्त हो गया। ड्राफ्ट कमिटी बन गयी। ड्राफ्ट के सदस्यों में मतभेद उभर आये। दो सदस्य न्याय पालिका में कथित भ्रष्टाचार में लिप्त होने के कारण स्कैन हो रहे हैं। भ्रष्टाचार के लडैत फिलहाल खुद ही भ्रष्टाचार में फंस गए। यानि कि अब हो चुकी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई। जय हो अन्ना बाबा की।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

अन्ना आपके आमरण अनशन से नहीं मिटने वाला भ्रष्टाचार


क्या भ्रष्टाचार मिटाना इतना आसान है कि एक आदमी ने आमरण अनशन किया, सैकड़ों लोग उसके इर्दगिर्द खड़े हो गए, टीवी चंनेल्स के कैमरा तन गए, खूब फोटो खिंची, उसके बाद सब हाथ मिलाते हुए अपने अपने घर चले गए? नहीं.... ऐसे भ्रष्टाचार का राक्षस ख़त्म होने वाला नहीं। यह सतत लड़ाई है। यह बरसों चलेगी। ठीक वैसी ही लड़ाई जैसी महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के साथ लड़ी थी। यह लड़ाई उनके एक अनशन के साथ पूरी नहीं हो गयी थी। उन्होंने बरसों इसे लड़ा। पर इससे पहले उन्होंने भारत को जाना, भारत के लोगों को जाना। अन्ना हजारे दिल्ली के बजाय यह लड़ाई मुंबई में या महाराष्ट्र में कहीं लड़ते तो अच्छा होता। यह लड़ाई वह बोर्ड ऑफ़ क्रिकेट कण्ट्रोल के विरुद्ध लड़ते, जिन्होंने क्रिकेट वर्ल्ड कप जैसे महा आयोजन में भ्रष्टाचार, ब्लैक मार्केटिंग को घुसेड दिया। यह लड़ाई शरद पवार के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी, जिन्होंने अपने अमीर बोर्ड को मंत्री होने के नाते करोडो की टैक्स छूट दिलवा कर गरीब जानता के टैक्स का पैसा चूस लिया। यह लड़ाई मुंबई के उन लोगों के विरुद्ध लड़नी चाहिए थी जिन्होंने अपने मुफ्त में या कम दामों में मिले टिकेट भारत के फ़ाइनल में पहुंचते ही लाखों रुपये में बेच दिए और लोगों ने इन्हें खरीदा भी। अन्ना हजारे के लिए यह छोटी लड़ाई होती, पर वह इसमें विजयी होते तो क्रिकेट के बहाने पूरे भारत में अन्ना का सन्देश जाता। वह ज्यादा मज़बूत होकर उभरते। अन्ना ! आपके संज्ञान में ला दूं कि चाणक्य ने भारत को विशाल साम्राज्य बनाने के लिए पहले मगध के चारों ओर के छोटे छोटे राज्य जीते। सीधे मगध पर हमला नहीं कर दिया।

मंगलवार, 29 मार्च 2011

बक़वास

मुझे किसी से डर लगता नहीं जनाब, क्यूंकि डराने वाले जहाँ में बहुत से हैं। मुझे मरने का कोई खौफ नहीं क्यूंकि मारने वाले बहुत से हैं। मैं मिलना चाहता हूँ नए चेहरों से, पर नकली मुखौटे यहाँ बहुत से हैं।

सोमवार, 14 मार्च 2011

वक़्त

मैं वक़्त के साथ कुछ इस तरह तेज़ चला,

अपने छूटते चले गए मैं तन्हा रह गया ।

रविवार, 26 दिसंबर 2010

सृजन

मैं सृजन करना चाहता हूँ
इसलिए लिखता हूँ।
मैं भजन करना चाहता हूँ
इसलिए पूजा करता हूँ।
कोई चाहे जो समझे
एक नहीं कर पाऊँ तो
काम दूजा करता हूँ।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

पाँव


मेरे पांव नंगे हैं,

उनमें बिवाई पड़ी हुई है,

बुरी तरह से फटे हुए,

बेजार से हैं

लेकिन,

फिर भी खुश हैं,

उन पैरों से अधिक

जो,

बेहद साफ़ सुथरे हैं

कारों पर

जूते पहन कर

बैठे रहते हैं।

कभी

ज़मीन पर चलते नहीं।
मेरे पाँव
मेरा बोझ धोते हैं,
मुझे ज़मीन पर रखते हैं।



अकबर के सामने अनारकली का अपहरण, द्वारा सलीम !

जलील सुब्हानी अकबर ने हठ न छोड़ा।  सलीम से मोहब्बत करने के अपराध में, अनारकली को फिर पकड़ मंगवाया। उसे सलीम से मोहब्बत करने के अपराध और जलील स...