गुरुवार, 25 दिसंबर 2025

सांता तुम!

 हे सांता! तुम 

एक ही दिन क्यों आते हों 

इतनी महँगी पोशाक पहन कर 

गरीबों के पास !

गरीब और गरीबी तो 

तीन सौं पैंसठ दिन की हैं 

बाकी की 364 दिनों का क्या!

सोचना जरा!!

सांता तुम!

  हे सांता! तुम  एक ही दिन क्यों आते हों  इतनी महँगी पोशाक पहन कर  गरीबों के पास ! गरीब और गरीबी तो  तीन सौं पैंसठ दिन की हैं  बाकी की 364 द...