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अल्पना

आज भी तुम जब मुस्कराती हो  लजाती सकुचाती हो  रक्ताभ अपना मुख नीचे झुकाती हो तुम्हारे कपोलो की लालिमा मेरे हृदय मे अंकित कर देती है  प्रेम की अल्पना। 

हाइकु चार

  साधु जा रहे बह रही वायु भी गति निर्बाध। 2 रोता बालक बादल घिर आये जल ही जल। 3 सब ने कहा बेलगाम था घोड़ा रुकता कैसे! 4 नंगा भिखारी वृक्ष बिना पहाड़ कब ढकेंगे!

अंततः

पक्षी ने अनुभव किया  उसका अंत निकट है  पंख शिथिल हो रहे हैं  अधिक साथ नहीं दे पा रहे  तो क्या विश्राम कर लूं ?  अंतिम विश्राम! फिर सोचा  जब विश्राम ही करना है तो  एक ऊँची उड़ान भर लूँ  कदा चित नई ऊंचाई छू लूं  अनंत तक  अंत तक  उड़ चला  ऊँचा  ऊँचा  और अधिक ऊँचा  अनंत की ओर  अंततः।