शुक्रवार, 31 मई 2024

अल्पना

आज भी तुम

जब मुस्कराती हो 

लजाती सकुचाती हो 

रक्ताभ अपना मुख

नीचे झुकाती हो

तुम्हारे कपोलो की लालिमा

मेरे हृदय मे अंकित कर देती है 

प्रेम की अल्पना। 

शनिवार, 25 मई 2024

हाइकु चार

 साधु जा रहे

बह रही वायु भी

गति निर्बाध।

2
रोता बालक
बादल घिर आये
जल ही जल।

3
सब ने कहा
बेलगाम था घोड़ा
रुकता कैसे!

4
नंगा भिखारी
वृक्ष बिना पहाड़
कब ढकेंगे!

शुक्रवार, 24 मई 2024

अंततः

पक्षी ने अनुभव किया 

उसका अंत निकट है 

पंख शिथिल हो रहे हैं 

अधिक साथ नहीं दे पा रहे 

तो क्या विश्राम कर लूं ? 

अंतिम विश्राम!

फिर सोचा 

जब विश्राम ही करना है तो 

एक ऊँची उड़ान भर लूँ 

कदा चित नई ऊंचाई छू लूं 

अनंत तक 

अंत तक 

उड़ चला 

ऊँचा 

ऊँचा 

और अधिक ऊँचा 

अनंत की ओर 

अंततः।