पत्नी डायबिटिक हैं. इसलिए उनका कोरोना पॉजिटिव होना खतरनाक हो सकता था. ऐसे समय में मुझे याद आ गई, सेवा काल के दौरान कानपूर में चंद्रशेखर आज़ाद कृषि विश्वविद्यालय की एक घटना. मैं उस समय लखनऊ से लोकल से जाया और आया करता था.
जैसी की यूनिवर्सिटी के कर्मचारी यूनियन और टीचिंग स्टाफ की आदत होती है,
यह लोग अपना सही गलत काम करवाने के लिए भीड़ इकठ्ठा कर धमकाने और डरा कर
काम करवाने की आदत रखते हैं. मेरे यूनिवर्सिटी में कार्यकाल के पहले हफ्ते में ही
वहां की कर्मचारी यूनियन ने मेरा घेराव किया कि हमारे बिल छः महीने से रोक रखे गए
है. मैंने कहा भी कि मुझे हफ्ते भर भी काम सम्हाले नहीं हुए हैं तो मैं कैसे छः
महीने से बिल रोके रख सकता हूँ. पर उन्हें तो शोर मचाना ही था. वह चिल्लाते रहे.
मैं ऊब गया तो मैंने कहा भैये, मैं ऐसे तो
काम नहीं कर सकता. अब तुम्हे मारना कूटना है तो
मार कूट लो. पर घायल कर मत छोड़ना घायल शेर खतरनाक होता है.
बहरहाल, एक बार में ट्रेन से कानपूर जा रहा था. घर
से फ़ोन आया कि तुम्हारी यूनिवर्सिटी से फ़ोन आया था कि साहब कहाँ हैं?
यहाँ (यूनिवर्सिटी) न आये. मारे जायेंगे.
घर में इस धमकी से लोग डरे हुए थे. मैंने कहा चिंता न करो.
फिर में यूनिवर्सिटी पहुंचा. कार से उतरते ही मैंने ललकारते हुए कहा,
"अब मैं आ गया हूँ. कौन मारना चाहता है, आओ मेरे
सामने."
आधे घंटे तक ऑफिस के बाहर खडा रहा. कोई मारने नहीं आया. फिर क्या करता.
कमरे में बैठ कर फाइल करने लगा.
यह किस्सा मुझे याद आया, जब हम लोग
कोरोना से जूझ रहे थे. मैंने इस किस्से को याद करते हुए,
खुद से कहा, मुझे जूझना है. कोरोना से डरना नहीं है. मैं
डरूंगा तो यह पत्थर कॉलेज के कर्मचारियों की तरह मुझे गड़प कर लेगा. मैंने कोरोना
को ललकारा. आज हम लोग कोरोना से जंग जीत चुके हैं.
आप भी डरिये नहीं. आप कोरोना से ज्यादा ताकतवर है. बस हम और आप डर जाते
हैं. जो डर गया, समझो वह मर गया.