मैं एक विभाग में फाइनेंस कंट्रोलर था. वर्दी वाला
विभाग था वह. एक डीजीपी साहब थे. जाति से ब्राह्मण और बेहद जातिवादी. मैं उनके
अधीन काम करने के लिए भेजा गया. मेरा सरनेम कांडपाल है. उससे उन्हें यह गलतफहमी हो
गई कि मैं पाल यानि गडरिया जाति या कहिये नीची जाति का हूँ. यहाँ मैं बता दूं कि
मैंने अपनी सेवा भर अपना काम बेहद साफ सुथरा और पारदर्शिता वाला रखा है. मुझसे
मेरे से सम्बंधित कोई सूचना मांगी जाए मैं तुरंत उपलब्ध करा सकता था. मेरे अधीन
किसी कर्मचारी या अधिकारी की फाइल रोकने की हिम्मत नहीं हो सकती थी. इसके बावजूद न
जाने क्या बात थी कि वह हमेशा नाराज़ नज़र आते. कनिष्ठ अधिकारियों के सामने गलत तरह
से बात करते,
डाट फटकार तो वह कहीं भी लगा सकते थे. मुझे नागवार गुजरता था, उनका कनिष्ठ
अधिकारियों के सामने बदतमीजी करना. मैं इस विचार का अधिकारी रहा हूँ कि अगर किसी
ने गलती की है तो उसे सज़ा जरूर दी जाए. फटकारना है तो उसकी गरिमा का ध्यान ज़रूर
रखा जाए. लेकिन,
वह ब्राह्मण देवता इसके कायल नहीं थे. चार पांच महीना तो यह चलता रहा. फिर
मुझे लगा कि अब इनके द्वारा की जा रही मेरी बेइज्जती मेरे जमीर को ख़त्म कर रही है.
मेरी सेल्फ रिस्पेक्ट चोटिल हो रही है. मैं खुद की नज़रों में गिरता जा रहा हूँ. इस
स्थिति के आते ही मैंने इस पर लगाम लगाने का निर्णय कर लिया. इसके बाद, जैसे ही वह
किसी मीटिंग में कुछ कहते, मैं चुपचाप सुनने के बजाय वैसे ही जवाब
देता. इससे वह नाराज़ हो जाते. वह जोर से बोलते तो मैं थोडा कम जोर से बोलता.
कुर्सी से खड़े हो जाते. मैं सोचता हूँ कि अगर में अधिकारी न होता तो शायद वह मेरा
एनकाउंटर करवा देते. परन्तु मेरे प्रतिआक्रमण का नतीजा यह हुआ कि वह काफी कुछ सुधर
गए. क्योंकि,
उन्हें लग गया था कि अब उनकी रेस्पेक्ट पर चूना लग जाएगा. मैं खुश था.
मेरे
किस्से का अंत कुछ यह हुआ कि उन्हें किसी बातचीत के दौरान यह मालूम पड़ गया कि
कांडपाल उपनाम वाले लोग उत्तराँचल के ब्राह्मण होते हैं न कि नीची जात के. उसके
बाद वह मेरे प्रति बिलकुल मक्खन जैसे मुलायम और बर्फी जैसे मीठे हो गए. मगर मेरा
मन उनसे खट्टा हो चुका था. जो व्यक्ति जाति के आधार पर अपने अधीनस्थ के काम का
आंकलन करता है,
मैं उसकी इज्जत नहीं कर सकता. एक दिन मैंने उनके खिलाफ एक रिपोर्ट शासन को
भेज दी. नतीजे के तौर पर मेरा तुरत फुरत तबादला हो गया. जयहिन्द.