क्रोध किसे नहीं आता ! मुझे भी आता है। आपको भी आता होगा। क्रोध को इंग्लिश में एंगर और उर्दू में नाराज़गी कहते हैं। सेक्युलर अंग्रेजी बोलते हैं। कहते हैं मुझे एंगर आ रहा है। मैं एंग्री हूँ। हिन्दू क्रोध करते हैं और मुसलमान तथा अन्य अल्पसंख्यक नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं। इसी कारण से हिंदुस्तान में सभी लोग एंग्री यंग या ओल्ड/ मेन/वीमेन हैं। इस लिहाज़ से यह भी कहा जा सकता है कि क्रोध का कोई धर्म नहीं होता। वह किसी को भी आ सकता है। कहीं भी आ सकता है। लोग स्कूल-कॉलेज, सड़क, दूकान, पार्क या फिर मंदिर और मस्जिद के बाहर भी लड़ सकते हैं। मंदिर और मस्जिद के बाहर लड़ने के लिहाज़ से एंग्री मेन दो केटेगरी में आ जाते हैं। जो मंदिर के लिए लड़े, वह सांप्रदायिक होता है। वह दूसरे धर्म के लोगों को चैन से नहीं रहने दे सकता। इसे सेक्युलर कथन कह सकते हैं। मस्जिद के लिए लड़ने वाले लोग शतप्रतिशत सेक्युलर होते हैं। इनका समर्थन करने वाले लोग भी सेक्युलर होते हैं। मस्जिद के लिए की जानी वाली लड़ाई देश को टुकड़े टुकड़े होने से रोकने के लिए लड़ी जाती है। इसलिए यह शतप्रतिशत सेक्युलर है और जायज़ है। इस प्रकार का एंगर कभी सांप्रदायिक व्यक्ति को नहीं आ सकता। सेक्युलर एंग्री मेन कभी कम्युनल नहीं हो सकता।
मुद्दा यह नहीं कि किसे क्रोध आता है या किसे नहीं। मुद्दा यह भी नहीं कि क्रोध या क्रोधी व्यक्ति सेक्युलर हैं या कम्युनल ! यह शब्द तो मौके की नज़ाकत और लोगों की सोच के अनुसार उपयोग किया जाते हैं। मुद्दा यह है कि क्रोध आ गया तो क्या करें ? कहाँ जाये ? कैसे आये चैन ? अब फिर सेकुलरिज्म और कम्युनलिस्म का मुद्दा खड़ा हो गया। क्रोध आने पर क्या होगा ? आदमी ज़ोर ज़ोर से चिल्लायेगा- चीखेगा। दीवार पर हाथ दे मारेगा। ऐसा व्यकित अहिंसा का पालन करने वाला ही हो सकता है। ऐसा आम तौर पर, घर में लड़ाई झगड़े के दौरान ही क्रोधी व्यक्ति अहिंसक हो सकता है। क्रोध बाहर आ जाये तो ! तब तो बहुत कुछ हो सकता है। पार्क में बच्चों के बीच झगड़े में बच्चों को समझाने के बजाय बड़ों का बच्चों की तरह भिड़ जाना, निहायत अहमकाना और बचकाना कहा जा सकता है। यह हिंसक क्रोध होता है। यानि ऐसे एंग्री मेन केवल मुंह जबानी नहीं, हाथ पांवों से भी भिड़ लेते हैं। अब अगर क्रोध मंदिर मस्जिद को लेकर आ जाये तो दंगा हो जाता है। यह दंगा सांप्रदायिक कहलाता है। ऐसे दंगों को कोई भी सेक्युलर या कम्युनल खिताब नहीं देता। मगर लाशें ज़रूर गिनी जाती हैं। फलां दंगे में कितने मरे ! इसमें से कितने मुसलमान थे या कितने हिन्दू थे। अगर मरने वालों में मुसलमानों की संख्या ज़्यादा है तो हिन्दू खुश होगा। अगर मरने वालों में हिन्दू ज़्यादा हैं तो मुसलमान खुद को जेहादी समझ लेगा।
बहरहाल, मेरा मकसद क्रोध नियंत्रित करने या एंगर मैनेजमेंट के बारे में जानना और बताना है। क्रोध आता है तो क्या करें ? अलग अलग लोग, अलग अलग तरीके से एंगर मैनेजमेंट करते हैं। कहा जाता है कि क्रोध आने लगे तो एक से दस तक गिनती गिनना शुरू करो। क्रोध ख़त्म हो जायेगा। लेकिन, अब यह तरीका कारगर नहीं रहा। अब तो लोगों की गिनतियों की संख्या १०० को पार कर जाती है, क्रोध का पारा १०० डिग्री सेल्शियस पहुँच जाता है। कुछ टीवी देखने लगते हैं। इसमें टीवी टूटने का भय बना रहता है। कुछ टहलने बाहर निकल जाते हैं। यह कारगर हो सकता है, लेकिन कभी पूरी रात भी बाहर गुजर सकती है। ऐसे में सवाल उठता है कि दूसरे इंडोर उपाय क्या हैं? मैं तो भाई फेसबुक पर जाने लगा था। वहां भड़ास निकाल दो। मगर यह तरीका कारगर साबित नहीं हुआ। एक तो फेसबुक पर गुस्सा दिलाने वाली ऐसी पोस्टें लगी रहती हैं कि क्रोध नियंत्रण क्या होगा ! जी करने लगता है कि लैपटॉप ज़मीन पर चकनाचूर कर दो। ऎसी कोई पोस्ट नहीं मिली तो भी आपकी पोस्ट पर ऐसे कमैंट्स आ सकते हैं कि आप क्रोध में अपने बाल नोचने लगे। जो लोग अपने घर को नहीं सम्हाल सकते, वह मोदी जी को देश को सम्हालने के नुस्खे बताने लगते हैं। आपको भी ऐसे ही नुस्खे देने लगते हैं।
जब कोई बात गुजर जाए, पानी सर के ऊपर चला जाये तो समझ लेना यार कुछ गड़बड़ है। यह सोच कर मैं अपने दास मलूका दोस्त से मिलने पहुँच गया। अमूमन समस्या समाधान के लिहाज़ से मैं दास मलूका के पास ही जाता हूँ। इन्ही दास मलूका दोस्त के कारण मैं चाकरी और अजगर का रिलेशन जान सका । नौकरी में हरामखोरी का कारण जान पाया। मैं दास मलूका की अँधेरी कोठारी में घुसा। यकीन जानिये दास मलूका का एंगर मैनेजमेंट का फार्मूला गजब का साबित हुआ। दास मलूका ने चरस में डूबी अपनी आँखों को आधा खोला । मुझे देख कर मुस्कुराये। बोले, "सिगरेट लाया है ?" मैं, सिगरेट के लिहाज़ से नितांत सूफी व्यक्ति भी, दास मलूका से मिलने के लिए जेब में सिगरेट धर कर जाता था। मैंने सिगरेट आगे कर दी। दास मलूका ने सिगरेट जला कर एक कश मारा और आँखे बंद किये ही पूछा, " तू बेमतलब तो मुझे सिगरेट पिला नहीं रहा होगा ?" मैं जल भुन गया। जी चाहा कि इस मलूका की दाढ़ी जला दूँ। पर एंगर मैनेजमेंट करता हुआ बोला, "नहीं, आपकी याद बहुत आ रही थी।" मलूक उवाचे, "ठीक है। अब बता क्यों याद आ रही थी ?" मैंने अपना सवाल सामने रख दिया कि एंगर मैनेजमेंट कैसे करें!
दास मलूका ने एक लंबा कश खींचा। फिर दो मिनट के पॉज के बाद बोले, "जब क्रोध आये तो याद कर अपनी पैदाइश को। याद कर तेरे जन्म लेने पर तेरे माता-पिता और प्रियजन खुशियां मना रहे थे। लेकिन तू सदा का विघ्न संतोषी चींख चींख कर रोने लगता था । होना तो यह चाहिए था कि तेरे माँ-बापू में से कोई तेरे कान के नीचे बजा देता। लेकिन, तेरे बड़े होने पर तेरी छड़ी से पिटाई करने वाले तेरे पिता बिलकुल क्रोधित नहीं थे। वह तुझे दुलार रहे थे, 'नांय नांय लोते नई' पुचकार रहे थे, 'बिलकुल अपनी माँ पर गया है। चुप ही नहीं होता।' अगर उन्हें उस समय क्रोध आया होता तो तू आज सवाल पूछने के लिए बाकी नहीं होता। इस बात को क्रोध आने पर याद कर। एंगर मैनेजमेंट शतप्रतिशत हो जायेगा।"
मेरे ज्ञान चक्षु खुल चुके थे। मैंने मलूक दास की इस सीख को अखबार के लिए लेख बद्ध कर दिया। अपनी फेसबुक पेज पर डाल दिया। सभी केटेगरी के क्रोधी, नाराज़ और एंग्री मेन लोग इस तरह एंगर मैनेजमेंट करें।