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चौराहे पर

हर चौराहे पर खडी कर दी हैं दीवारें यह दीवारे रोकती नहीं रोकना प्रतिरोध को जन्म देता है क्रांति की ओर  पहला कदम है यह दीवारे आदमी को भटकाती हैं क्योंकि, भटका हुआ आदमी कभी वापस नहीं आ पाता 

लगते हो अच्छे !

सच में कहूं  बताऊ कैसे, तुम मुझको  लगते हो अच्छे ! बीता बचपन जवां हुई यादें दिन का हंसना रात की बातें हंसते मुख पर दांत चमकते जैसे मोती हों सच्चे ! तुम आते थे फिर जाने को, कह जाते थे फिर आने को कब तक होगी आवाजाही बता भी देते नहीं थे बच्चे ! बीता बचपन आई जवानी भूली बिसरी वही कहानी बिदा हुए तुम उन यादों से जिसमे आते थे  सज के.