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जनवरी, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

शरीर

आप थकने लगते हैं जब आपके पैरों को लगता है कि  वह आपका शरीर ढो रहे हैं. २- जो जीवन भर किसी को कुछ नहीं देते वह बंद मुट्ठी के साथ चले जाते हैं दुनिया से. ३. आंसू इसलिए नहीं बहते कि आँखों को दर्द होता है आंसू इसलिए बहते हैं कि अब दिल में दर्द नहीं होता। ४. अब लोग दिल से काम नहीं लेते क्यूंकि, दिमाग के काम के लिए टीवी ले लिया है. ५. अगर मेरी मदद जीभ और खाल न करती तो मैं ज़हर खा लेता आग लगा लेता।   ६. बरसात में नज़र आएगा आम आदमी सर पर आम  ढोता हुआ.

गणतंत्र की रस्सी

इस गणतंत्र दिवस पर कभी फहराते झंडे, उसे उठाये डंडे और लिपटी रस्सी को देखो डंडा घमंड से इतराता है कि उसने गणतंत्र का प्रतीक उठा रखा है मगर भूल जाता है अपने से  लिपटी उस रस्सी को जो उसे नियंत्रित करती है तथा उसकी मदद करती है ऊंचा उठाने में गणतंत्र के झंडे को. अगर रस्सी का नियंत्रण न होता तो डंडा ख़ाक फहरा पाता आसमान में झंडा तार तार कर रहा होता गणतंत्र के झंडे को और खुद मुंह तुड़वा लेता अपना।

चौराहा : दो चित्र

चौराहे से गुज़रते हैं ढेरों लोग हर रोज . चौराहा वहीँ ठहरा रहता है किसी के साथ जाता नहीं इसलिए नहीं कि नहीं जाना चाहता चौराहा बल्कि, पहचान बन गया है इतने लोगों के गुजरने के बाद चौराहा. २- चौराहे पर लेटे हुए कुत्ते के लात मार दी थी मैंने साला, रास्ता छेंके लेटा था दर्द से कराहता दुम अन्दर कर पीछे मुड़ मुड़ कर मुझे देखता भाग गया था कुत्ता उस दिन रात लौट रहा था मैं सुनसान चौराहे पर घेर लिया मुझे लुटेरों ने घड़ी, पर्स और चेन सभी लूट लेते कि तभी वही कुत्ता भौंकता हुआ टूट पडा था उन पर भाग निकले थे वह लुटेरे और मैं चौराहा पार कर पीछे मुड़ मुड़ कर देख रहा था कुत्ते को जो सोया पडा था ठीक दिन की तरह बीच चौराहे पर.