सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अनुभूति २० मई २०१३

मैने नीम से पूछा     मैंने नीम से पूछा- तू इतनी कड़वी क्यों है? जबकि, तू सेहत के लिए फायदेमंद है। नीम झूमते हुए बोली- अगर मैं कड़वी न होती तो, तुझे कैसे मालूम पड़ता कि कड़वेपन के कारण सेहतमंद नीम की भी कैसे थू थू होती है. -राजेन्द्र कांडपाल २० मई २० १३

अनुभूति 17 june 2013

गंगा- कुछ क्षणिकाएँ   १ गंग जमुन की बहती धार प्यास बुझाए खेत हजार अन्न लहलहाए सींचे धरती बारम्बार -मंजुल भटनागर २ खिल खिल करती मचलती, खेलती आह्लादित उर्मियों को अपने सीने पर बच्ची सी चढ़ाये, चिपकाए मस्ती में झूमती, इठलाती बहने वाली गंगा खो गयी है जाने कहाँ ? -अनिल कुमार मिश्र ३ गंगा है माँ की माँ तभी तो समा जाती है गंगा की गोद में एक दिन माँ भी। -राजेंद्र कांडपाल ४ इस देश की बुद्धिमत्ता कुम्भकर्ण की नीद सो रही है उसे पता ही नहीं कि गंगा बीमार हो रही है -त्रिलोक सिंह ठकुरेला १७ जून २०१३

खामोशी

  जहां लोग आपस में नहीं बोलते वहाँ, खामोशी बोलती है चीखती हुई इतनी, कि कान बहरे हो जाते हैं कुछ सुनाई नहीं पड़ता।