सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मातृ भाषा हिन्दी

सूती धोती ब्लाउज़ में
अपनों की देखभाल करती
बहलाती, पुचकारती और समझाती
हिन्दी से
पाश्चात्य पोशाक में लक़दक़
गिटपिट करती
अंग्रेज़ी ने कहा-
इक्कीसवीं शताब्दी के
आधुनिक भारत की भाषा
तुझे क्यों कोई साथ नहीं रखता
तू उपेक्षित
अपनों से सहमी हुई रहती है
कभी तूने सोच की क्यों ?
क्यों लोग मुझे अपनाते हैं
मेरा साथ पाकर धन्य हो जाते हैं
तुझे साथ लेने में शर्माते हैं।
अंग्रेज़ी के ऐश्वर्य से
अविचलित
हिन्दी से अंग्रेज़ी ने आगे कहा-
क्योंकि,
मैं उन्हे गौरव का अनुभव देती हूँ
दूसरों से संपर्क के शब्द देती हूँ
इस मायने में तू मूक है
इसलिए इतनी उपेक्षित है।
हिन्दी ने अंग्रेज़ी को देखा
चेहरे पर आत्मविश्वास लिए कहा-
मैं 'म' हूँ
बच्चे का पहला उच्चारण
तुम्हारे देश का बेबी भी
पहले 'म' 'म' ही करता है
मदर नहीं बोलता ।
मैं बोलने की शुरुआत हूँ
बच्चे के शब्द मैं ही गढ़ती हूँ
तू उसके बोलने और सीधे खड़े होने के बाद
उसके सर चढ़ जाती है
बेशक
तू मेम हो सकती है
मगर माँ नहीं बन सकती
क्योंकि मैं बच्चे की जुबान पर उतरी
मातृ भाषा हूँ।


 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

तनाव

जब तनाव अधिक होता है न  तब गाता हूँ  रोता नहीं  पड़ोसी बोलते हैं-  गा रहा है  मस्ती में है  तनाव उनको होता है  मुझे तनाव नहीं होता। 

अंततः अश्व: तीन हाइकु

अश्व की शक्ति  मनुष्य का मस्तिष्क  घर मे बंधा।  2  अश्व की गति  मनुष्य से स्पर्द्धा मे   कोसों दूर है । 3  अश्व की निष्ठा  मानव का विश्वास  अश्व विजयी। 

कर्ज़ से छुटकारा

19 जून 2023। यह वह दिन है, जिस दिन मैं एक कर्ज से उबर गया। यह वह कर्ज था, जो मुझ पर जबरन लादा गया था। इस कर्ज को न मैंने माँगा, न कभी स्वीकार किया। फिर भी यह कर्ज 40 साल तक मुझ पर लदा रहा। इसकी वजह से मैं अपमानित किया गया। मुझे नकारा बताया गया। यह केवल इसलिए किया गया ताकि मेरे परिवार पर एहसान लादा जा सके। मेरी पत्नी को 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिख कर दिया गया कि मकान तुम्हारे पति के नाम कर दिया गया है। यह काग़ज़ के टुकड़े से अधिक नहीं था। पर कानूनी दांव पेंच नावाकिफ पत्नी समझती रही कि मकान हमे दे दिया गया। वह बहुत खुश और इत्मीनान से थी। उसने, यदि मुझे काग़ज़ का टुकड़ा दिखा दिया गया होता तो मैं उसे हकीकत बता देता। पर उसे किसी को दिखाना नहीं, ऐसे समझाया गया, जैसे गुप्त दान कर दिया गया हो। सगे रिश्तों का यह छल असहनीय था। इसे नहीं किया जाना चाहिए था। एक मासूम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए था।  पर अच्छा है कि यह कर्ज 40 साल बाद ही सही, उतर गया। अब मैं आत्मनिर्भर हो कर, सुख से मर सकता हूँ। पर दुःख है कि भाई- बहन का सगा रिश्ता तार तार हो गया। अफ़सोस, यह नहीं ...