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नवंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

उदास उजाला

कल दीपावली के प्रकाश में नहाया मैं आतिशबाजी की रोशनी से चकाचौंध पटाखों के शोर से बहरा देख नहीं सका ठीक पीछे की अंधरी झोपड़ी को और सुन नहीं सका झोपड़ी में उदास बैठे नन्हे की सिसकियाँ 

सिर्फ दो पंक्तियाँ नहीं

चाहा था तुमने मेरा दामन दागदार करना बात दीगर है कि  तुम्हारे हाथ मैले हो गए . वह कुछ समझते नहीं, मैं समझ गया, यही बात समझाना चाहते थे शायद। बल्बों की लड़ियाँ सजाने से बात न बनेगी दो जोड़ आँखों की कंदीलें जलाओ तो समझूं . दूर तक जाते खड़े देखते रहे मुझको कुछ कदम बढाते तो साथ पाते मुझको। मैंने एक दीया जला के परकोटे पे रख दिया है, शायद कोई भटकता हुआ मेरे घर आ रहा हो।  

रिक्तता

मेरा देखना का नजरिया थोडा अलग है मैं आधा भरा गिलास नहीं मैं आधा खाली गिलास देखता हूँ मुझे उत्तर पुस्तिका की रिक्तता में खेत के खाली हिस्से में अधूरे इंसान में संभावनाएं दिखती  हैं आधे गिलास को मैं पूरा भर सकता हूँ उत्तर पुस्तिका के रिक्त पृष्ठों पर मैं जीवन के कठिन प्रश्न हल कर सकता हूँ खाली खेत की निराई, गुड़ाई और बुवाई कर उम्मीद की फसल बो सकता हूँ खाली गिलास, रिक्त पृष्ठ और अनबुआ  खेत की तरह अधूरे इंसान को पूरा करना ही दृष्टिकोण है मेरा।

निराशा

कभी/जब आशा साथ छोड़ जाए चारों ओर निराशा ही निराशा हो तब घबराओ नहीं निराशा को दोस्त बनाओ उससे प्यार करो वही बताइएगी आशा की राह क्यूंकि निराशा सबसे अधिक अनुभवी होती है उसे हर कोई ठुकराता है उसे हमसे ज़्यादा दर दर की ठोकरें जो मिलती हैं वह हमेशा आशा की जगह लेने के लिए आशा का पीछा करती रहती है इसीलिए वह भगवान से भी ज़्यादा जानती है कि आशा कहाँ मिलेगी।