सोमवार, 12 दिसंबर 2011

पत्थर

जब कोई पत्थर
हवा में उछलता हैं न !
मैं समझ जाता हूँ कि
इसे आम आदमी ने उछाला है.
इसलिए नहीं कि
आम आदमी ही पत्थर चलाते हैं
आम आदमी 
पत्थर क्या चलाएगा
इतनी हिम्मत नहीं।
पत्थर क्या उछालेगा
वह  तो ढंग से मुद्दे उछालना तक नहीं जानता
वह सब कुछ सहता रहता है बेआवाज़
क्यूंकि उसके पास जुबां नहीं है.
उनके कानों तक पहुँच जाये
इतना चीख कर बोलने की ताक़त नहीं
अपनी बात समझाने के लिए
मुहावरेदार भाषा
और मज़बूत शब्द नहीं.
मैं तो बस पत्थर देखता हूँ
और अंदाजा लगाता हूँ
क्यूंकि
इतना कमज़ोर पत्थर
कोई आम आदमी ही उछाल सकता है,
जो उसके सर पर ही वापस गिरे
और खूनम खून कर दे उसे.

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