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सृजन

मैं सृजन करना चाहता हूँ इसलिए लिखता हूँ। मैं भजन करना चाहता हूँ इसलिए पूजा करता हूँ। कोई चाहे जो समझे एक नहीं कर पाऊँ तो काम दूजा करता हूँ।

पाँव

मेरे पांव नंगे हैं, उनमें बिवाई पड़ी हुई है, बुरी तरह से फटे हुए, बेजार से हैं लेकिन, फिर भी खुश हैं, उन पैरों से अधिक जो, बेहद साफ़ सुथरे हैं कारों पर जूते पहन कर बैठे रहते हैं। कभी ज़मीन पर चलते नहीं। मेरे पाँव मेरा बोझ धोते हैं, मुझे ज़मीन पर रखते हैं।

टिप्पणी

यारों मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ। मैंने जो कहा गलत कहा, सो, आपने जो सुना, गलत सुना दरअसल, पिछले ६३ सालों से, टिप्पणी और वादे करते और फिर उन्हें वापस लेने या पूरा नहीं करने की आदत सी हो गयी है। इसलिए, मैं टिप्पणी करता हूँ और वापस लेता हूँ। यारों इसे गंभीरता से न लेना, मैं नेता हूँ।

लकीरें

मेरे माथे पर चिंता की गहरी लकीरें हैं। बचपन में मेरी माँ को ज्योतिष ने बताया था कि मेरे माथे की लकीरें बताती हैं कि मैं बहुत भाग्यशाली हूँ, बहुत बड़ा आदमी बनूँगा। इसीलिए मेरी माँ ने मुझे बहुत लाड दिया और प्यार किया। मैंने पढाई पर ध्यान नहीं दिया घूमता फिरता रहा । आज मैं अकेला हूँ, माँ मर चुकी है। आज मैं बेकार हूँ, क्यूंकि मैं माथे की लकीरें पढ़ता रहा, मैंने पोथी नहीं पढी। इसीलिए मेरे माथे पर चिंता की लकीरें हैं पर अब मैं उन्हें नहीं पढ़ता क्योंकि मैंने कभी उन्हें ठीक से पढ़ा ही नहीं।

मैं क्यों लिखता हूँ

मैं अपने इस ब्लॉग में कुछ भी लिखूंगा। यह कविता भी हो सकती है, कोई गद्य भी या कुछ भी। जो दिमाग को मथे। कुछ समझ में ना आये और जब दिमाग थक जाये तो अक्षरों में बदल दो। दूसरे गुनें और समझे। यदि समझ सकें तो अपनी प्रतिक्रिया दें। इसी लिए यह ब्लॉग।