बच्चों के स्कूल खुल गए हैं,
माँ सुबह उठ कर
जल्दी कुल्ला मंजन कर
चौके में घुस गयी है
वह नाश्ता बनाती,
टिफ़िन पैक करती है
फिर
बच्चों को ड्रेस पहना कर
टिफिन बस्ते में ठूंस देती है
बच्चे
माँ के गालों को चूम कर
चिल्लाते हुए टाटा टाटा कह कर
चले जाते हैं
माँ पसीना पोंछती हुई
सोफ़े पर बैठती है
और ज़ोर से चैन की सांस लेती है ।
बच्चों के जाने के बाद
माँ क्यों लेती है
चैन की सांस !
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शुक्रवार, 5 जुलाई 2013
रविवार, 30 जून 2013
माँ का व्रत
माँ हमेशा व्रत रखतीं
कभी पति के लिए
कभी लड़का पैदा होने के लिए
कभी संतान की मंगलकामना के लिए
तो कभी घर की खुशहाली के लिए
मैं सोचता-
माँ अपने लिए व्रत क्यों नहीं रखती
हम लोगों के लिए व्रत रखने वाली
हमे भरपेट खिला कर
आधा अधूरा खा कर
रह जाने वाली माँ
व्रत ही तो रखती थी!
कभी पति के लिए
कभी लड़का पैदा होने के लिए
कभी संतान की मंगलकामना के लिए
तो कभी घर की खुशहाली के लिए
मैं सोचता-
माँ अपने लिए व्रत क्यों नहीं रखती
हम लोगों के लिए व्रत रखने वाली
हमे भरपेट खिला कर
आधा अधूरा खा कर
रह जाने वाली माँ
व्रत ही तो रखती थी!
शुक्रवार, 28 जून 2013
नियंत्रण
सुबह सुबह
घड़ी ने
चीखते हुए कहा-
उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है।
आज
उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला-
ऐ घड़ी, तू मशीन होकर
मुझे निर्देश देगी!
घड़ी बोली-
तुमने
खुद ही तो सौंपा है
अपना नियंत्रण मुझे।
घड़ी ने
चीखते हुए कहा-
उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है।
आज
उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला-
ऐ घड़ी, तू मशीन होकर
मुझे निर्देश देगी!
घड़ी बोली-
तुमने
खुद ही तो सौंपा है
अपना नियंत्रण मुझे।
मंगलवार, 18 जून 2013
भूकंप
इस शहर में
जब आता है भूकंप
निकल आते हैं लोग
अपने अपने घरों से
कुछ लोग इधर
तो काफी लोग उधर
भाग रहे होते हैं
मगर भगदड़ नहीं होती यह
क्योंकि लोग
लूटने जा रहे होते हैं
एक टूटी दुकान का सामान
और ले जा रहे होते हैं
सुरक्षित अपने ठिकाने में।
तब कुछ ज़्यादा
काँप रही होती है धरती
भूकंप के बाद।
जब आता है भूकंप
निकल आते हैं लोग
अपने अपने घरों से
कुछ लोग इधर
तो काफी लोग उधर
भाग रहे होते हैं
मगर भगदड़ नहीं होती यह
क्योंकि लोग
लूटने जा रहे होते हैं
एक टूटी दुकान का सामान
और ले जा रहे होते हैं
सुरक्षित अपने ठिकाने में।
तब कुछ ज़्यादा
काँप रही होती है धरती
भूकंप के बाद।
रोक न सकूँगा
प्रियतमा!
उदास मत हो
मेघ
कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं।
बहाने लगते हैं
भावनाओं के सैलाब
नियंत्रण का बांध
तोड़ जाते हैं।
नहीं रोक सकूँगा
तुम्हें बाहों में
बह जाऊंगा
तुम्हारे साथ
गहराई तक
तुम्हारी रिमझिम
आँखों में।
फिर जाऊंगा कैसे
तुम्हारे अंतस में
तुम्हें यूं उदास छोड़ कर
रोक न सकूँगा खुद को
तुम्हारे साथ रोने से
इस बारिश की तरह।
उदास मत हो
मेघ
कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं।
बहाने लगते हैं
भावनाओं के सैलाब
नियंत्रण का बांध
तोड़ जाते हैं।
नहीं रोक सकूँगा
तुम्हें बाहों में
बह जाऊंगा
तुम्हारे साथ
गहराई तक
तुम्हारी रिमझिम
आँखों में।
फिर जाऊंगा कैसे
तुम्हारे अंतस में
तुम्हें यूं उदास छोड़ कर
रोक न सकूँगा खुद को
तुम्हारे साथ रोने से
इस बारिश की तरह।
शनिवार, 15 जून 2013
बारिश में नाव
याद आ गया बचपन
भीग गया तन मन
बारिश में।
बादलों की तरह
घर से निकल आना
मेघ गर्जना संग
चीखना चिल्लाना
नंगे बदन सा मन
भीग गया
बारिश में।
कागज़ की नाव का
नाले में इतराना
दूर तलक हम सबका
बहते चले जाना
अब तो बाल्कनी से
देखते हैं
बारिश में।
अपनी नाव के संग
दौड़ हम लगाते
डूबे किसी की नाव
सभी खुश हो जाते
कहाँ दोस्त, नाव कहाँ
अकेले खड़े हम
बारिश में।
भीग गया तन मन
बारिश में।
बादलों की तरह
घर से निकल आना
मेघ गर्जना संग
चीखना चिल्लाना
नंगे बदन सा मन
भीग गया
बारिश में।
कागज़ की नाव का
नाले में इतराना
दूर तलक हम सबका
बहते चले जाना
अब तो बाल्कनी से
देखते हैं
बारिश में।
अपनी नाव के संग
दौड़ हम लगाते
डूबे किसी की नाव
सभी खुश हो जाते
कहाँ दोस्त, नाव कहाँ
अकेले खड़े हम
बारिश में।
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