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संदेश

ज़िंदा

मूर्ति की भांति मैं खड़ा था निःचेष्ट । एक व्यक्ति आया उसने मुझे देखा मैं हिला नहीं। फिर ज़्यादा लोग आए किसी ने मुझे छुआ बांह से/बालो से/ सीने से मैं कसमसाया तक नहीं कुछ ने मेरी नाक उमेठी बाल खींचे आँख में उंगली डाल दी मैंने कोई विरोध नहीं किया। फिर सब चले गए मैं अकेला रह गया चौकीदार आया मेरी बांह पकड़ कर बोला- चल बाहर चल, मुझे मोमघर बंद करना तुझे अंदर नहीं रख सकता क्योंकि तू सचमुच ज़िंदा है।

वर्तमान

हमारे अपने है, हमारे द्वारा निर्मित हैं भूत, भविष्य और वर्तमान । हम/अपने भूत को पलट पलट कर देखते हैं/रोते हैं किन्तु, अलविदा नहीं कहते । हम अपने भविष्य को बँचवाते हैं/सपने बुनते हैं/सोचते रहते हैं । हम अपने वर्तमान को देखते नहीं/बाँचते नहीं/सँवारते नहीं उधेड़बुन में बीत जाने देते हैं देखते रहते हैं वर्तमान को भूत बनते और फिर जुट जाते हैं भविष्य बँचवाने/सपने बुनने में  सँवारने में नहीं । भविष्य सँवारने की कोशिश करें भी तो कैसे वर्तमान को तो हम अंधे बन कर लूला लंगड़ा असहाय गुजर जाने देते हैं।

दिवाली

घोर अंधेरी रात में जगमग की बरसात ले दीवाली आयी है ।। बिखरी हैं जगमग रोशनियाँ । सजी हुई खुशियों की लड़ियाँ । अमावस को दूर भगा दीप बत्तियाँ जला जला धरती माँ जगमगाई है। दीवाली आयी है। झिलमिल झिलमिल दीप जले । खिल खिल खिल खिल खील खिले। लक्ष्मी माँ अब आ जाओ पूजा की बेदी सजाई है। दीवाली आयी है।  

ममता

देख रहा दुःस्वप्न छीने ले जा रहा कोई माँ की गोद से । व्याकुल बच्चा छटपटा रहा चीखना चाह रहा रोना चाह रहा किन्तु अंजाना सा भय आवाज़ नहीं निकलने दे रहा मुंह से बड़ी कठिनाई से बच्चा चीखता है- माँ ! तभी सर पर फिरने लगती हैं कोमल और ममता भरी हथेली सो जा बेटा मैं हूँ तेरे पास हल्की मुस्कुराहट बिखेर कर आश्वस्त हो सो जाता है बच्चा पास ही तो है माँ !  

दिवाली

छूटते पटाखे जलती फुलझड़ियाँ और अनार आसमान पर थिरकती हवाई ज़मीन पर नाचती चक्री देख रहा है मुन्ना जलते दीपकों के बीच झिलमिला रही हैं आंखे। (2) बड़ी दियाली छोटी दियाली अगल बगल दोनों में जलती बाती आनंद ले रहीं अंधेरे के बिखरने का तभी बड़ा दीपक इतराया ज़ोर से लहराया/और बोला- ऐ छोटी डर नहीं मेरे नीचे छिप जा मैं बचा लूँगा तुझे हवा नहीं बुझा पाएगी तुझे  कि तभी, हवा का तेज़ झोंका आया सम्हलते सम्हलते भी बड़े दीपक की बाती बुझ गयी लेकिन, छोटी दियाली अंधेरा भगा रही थी उस समय भी। (3) दीवाल पर मुन्ना के नयनों में दीपक जले। (4)  

मुंगेरीलाल के सपने

मैं मुंगेरीलाल हूँ मैं सपने देखता हूँ । अरे तुम हँसे क्यों मेरी आँखें क्यों नहीं देख सकती सपने  हर आँखों में नींद होती है सपने होते हैं सोने के बाद सभी आँखें सपने देखती हैं मैं भी देखता हूँ शायद तुम यह सोचते हो कि मेरे सपने तो मुंगेरीलाल के सपने हैं जो पूरे नहीं हो सकते लेकिन, बंधु हमारे देश के कितने लोगों के सपने पूरे होते हैं ज्यादातर सपने तो जागने से पहले ही बिखर जाते हैं कुछ आंखे तो  सपनों के बिखरने के लिए आँसू बहाती हैं इसके बावजूद अगले दिन फिर सपने देखती हैं हमारे देश में मुंगेरीलाल सपने ही तो देख सकता हैं।  

विभीषण

तीन भाई होते हुए भी तीन भाइयों वाले राम से इसलिए हारा रावण कि जहां राम के साथ भरत, शत्रुघ्न और लक्ष्मण थे वही रावण के तीन भाइयों में एक विभीषण जो था।