बुधवार, 7 जनवरी 2015

अकड़ के


हर्ज़ क्या है
खड़े होने में
अकड़ के !
तेरे बाप की नहीं
सड़क
मेरे बाप की है
हनक
कचरा क्यों न फैलाऊँ
गली में, कूचे में
अकड़ के।
खाक तुम इंसान हो
अहमक
अपने से परेशान हो
बेझिझक
दबे रहो, न सर उठाओ

हम आये हैं
अकड़ के।
अपना- पराया कौन
मत बहक
आएगा कौन जायेगा कौन
मत समझ
जीता वही जो रहता है
मुर्ग सा घूमता हुआ 
अकड़ के।



बुधवार, 24 दिसंबर 2014

सांता

क्रिसमस पर
सजे हुए
ऊंचे, सुन्दर मॉल में
जा  रहा है सांता
इंतज़ार कर रहे है
बड़े घरों के
टिप टॉप बच्चे
सांता आएगा
गिफ्ट देगा
मॉल में जाते सांता की
नज़र पड़ती है
मॉल के पीछे की
गन्दी बस्ती के
बच्चो पर
जो
ललचाई नज़रो  से
देख रहे हैं सांता को
क्या सांता पास आएगा !
उन्हें भी देगा गिफ्ट !
सांता की दृष्टि
उन पर पड़ती है
झटके से घुस जाता है
मॉल में
बुदबुदाते हुए -
गॉड ब्लेस यू।  


गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

रूदन पुकार

मैंने सुना
नातिन रो रही थी
शायद भूख लगी थी
या कोई दूसरी तकलीफ
बच्चे सो रहे होंगे
जवान नींद गहरी होती है
मैं
दौड़ कर जाता हूँ
नातिन को उठा लेता हूँ
काश!
ऐसे ही हर कोई सुनता
किसी की रूदन पुकार !!!

सोमवार, 15 दिसंबर 2014

ऐसे ही स्वप्न देखता

अगर रास्ता 
पथरीला नहीं
पानी पानी होता 
नदी बहती नहीं
पत्थर सी ऐंठी रहती
ज़मीन सर के ऊपर होती
आसमान पाँव तले कुचलता
पक्षी तैरते
जानवर हवा में कुलांचे भरते
मैं जागते हुए भी
ऐसे ही स्वप्न देखता।

मंगलवार, 9 दिसंबर 2014

सर्दी पर ५ हाइकू

१- 
सर्दी लगती
मास्टर की बेंत सी
नन्हे के हाथ।
२-
हवा तेज़ है
ठिठुरता गरीब
छप्पर कहाँ।
३-
बर्फीली सर्दी
अलाव जल गया
सभी जमे हैं।
४-
सूरज कहाँ
फूटपाथ सूना है
दुबक गए।
५-
नख सी हवा
मुन्ने की नाक लाल
बह रही है।
#
राजेंद्र प्रसाद कांडपाल,
फ्लैट नंबर ४०२,
अशोक अपार्टमेंट्स,
५, वे लेन,
जॉपलिंग रोड,
हज़रतगंज,
लखनऊ- २२६००१
मोबाइल -

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...