रविवार, 11 नवंबर 2012

रिक्तता

मेरा देखना का नजरिया थोडा अलग है
मैं आधा भरा गिलास नहीं
मैं आधा खाली गिलास देखता हूँ
मुझे उत्तर पुस्तिका की रिक्तता में
खेत के खाली हिस्से में
अधूरे इंसान में
संभावनाएं दिखती  हैं
आधे गिलास को मैं पूरा भर सकता हूँ
उत्तर पुस्तिका के रिक्त पृष्ठों पर मैं
जीवन के कठिन प्रश्न हल कर सकता हूँ
खाली खेत की निराई, गुड़ाई और बुवाई कर
उम्मीद की फसल बो सकता हूँ
खाली गिलास, रिक्त पृष्ठ और अनबुआ  खेत की तरह
अधूरे इंसान को पूरा करना ही
दृष्टिकोण है मेरा।

बुधवार, 7 नवंबर 2012

निराशा

कभी/जब
आशा साथ छोड़ जाए
चारों ओर निराशा ही निराशा हो
तब घबराओ नहीं
निराशा को दोस्त बनाओ
उससे प्यार करो
वही बताइएगी आशा की राह
क्यूंकि
निराशा सबसे अधिक
अनुभवी होती है
उसे हर कोई ठुकराता है
उसे हमसे ज़्यादा
दर दर की ठोकरें जो मिलती हैं
वह हमेशा
आशा की जगह लेने के लिए
आशा का पीछा करती रहती है
इसीलिए वह
भगवान से भी ज़्यादा जानती है
कि आशा कहाँ मिलेगी।

बुधवार, 31 अक्टूबर 2012

ज़िंदा

मूर्ति की भांति
मैं खड़ा था
निःचेष्ट ।
एक व्यक्ति आया
उसने मुझे देखा
मैं हिला नहीं।
फिर ज़्यादा लोग आए
किसी ने मुझे छुआ
बांह से/बालो से/ सीने से
मैं कसमसाया तक नहीं
कुछ ने मेरी नाक उमेठी
बाल खींचे
आँख में उंगली डाल दी
मैंने कोई विरोध नहीं किया।
फिर सब चले गए
मैं अकेला रह गया
चौकीदार आया
मेरी बांह पकड़ कर बोला-
चल बाहर चल,
मुझे मोमघर बंद करना
तुझे अंदर नहीं रख सकता
क्योंकि तू
सचमुच ज़िंदा है।

रविवार, 28 अक्टूबर 2012

वर्तमान

हमारे अपने है,
हमारे द्वारा निर्मित हैं
भूत, भविष्य और वर्तमान ।
हम/अपने भूत को पलट पलट कर
देखते हैं/रोते हैं
किन्तु, अलविदा नहीं कहते ।
हम अपने भविष्य को
बँचवाते हैं/सपने बुनते हैं/सोचते रहते हैं ।
हम अपने वर्तमान को
देखते नहीं/बाँचते नहीं/सँवारते नहीं
उधेड़बुन में बीत जाने देते हैं
देखते रहते हैं
वर्तमान को भूत बनते
और फिर जुट जाते हैं
भविष्य बँचवाने/सपने बुनने में 
सँवारने में नहीं ।
भविष्य सँवारने की कोशिश
करें भी तो कैसे
वर्तमान को तो हम
अंधे बन कर
लूला लंगड़ा असहाय गुजर जाने देते हैं।

सोमवार, 22 अक्टूबर 2012

दिवाली

घोर अंधेरी रात में
जगमग की बरसात ले
दीवाली आयी है ।।
बिखरी हैं
जगमग रोशनियाँ ।
सजी हुई
खुशियों की लड़ियाँ ।
अमावस को दूर भगा
दीप बत्तियाँ जला जला
धरती माँ जगमगाई है।
दीवाली आयी है।
झिलमिल झिलमिल
दीप जले ।
खिल खिल खिल खिल
खील खिले।
लक्ष्मी माँ अब आ जाओ
पूजा की बेदी सजाई है।
दीवाली आयी है।
 

सोमवार, 15 अक्टूबर 2012

ममता

देख रहा दुःस्वप्न
छीने ले जा रहा कोई
माँ की गोद से ।
व्याकुल बच्चा
छटपटा रहा
चीखना चाह रहा
रोना चाह रहा
किन्तु अंजाना सा भय
आवाज़ नहीं निकलने दे रहा
मुंह से
बड़ी कठिनाई से
बच्चा चीखता है-
माँ !
तभी सर पर
फिरने लगती हैं
कोमल और ममता भरी हथेली
सो जा बेटा
मैं हूँ तेरे पास
हल्की मुस्कुराहट बिखेर कर
आश्वस्त हो सो जाता है बच्चा
पास ही तो है
माँ !
 

दिवाली

छूटते पटाखे
जलती फुलझड़ियाँ और अनार
आसमान पर थिरकती हवाई
ज़मीन पर नाचती चक्री
देख रहा है मुन्ना
जलते दीपकों के बीच
झिलमिला रही हैं आंखे।
(2)
बड़ी दियाली
छोटी दियाली
अगल बगल
दोनों में जलती बाती
आनंद ले रहीं
अंधेरे के बिखरने का
तभी
बड़ा दीपक इतराया
ज़ोर से लहराया/और बोला-
ऐ छोटी डर नहीं
मेरे नीचे छिप जा
मैं बचा लूँगा तुझे
हवा नहीं बुझा पाएगी तुझे 
कि तभी,
हवा का तेज़ झोंका आया
सम्हलते सम्हलते भी
बड़े दीपक की बाती बुझ गयी
लेकिन,
छोटी दियाली
अंधेरा भगा रही थी
उस समय भी।

(3)
दीवाल पर
मुन्ना के नयनों में
दीपक जले।

(4)
 

तीन किन्तु

 गरमी में  चिलकती धूप में  छाँह बहुत सुखदायक लगती है  किन्तु, छाँह में  कपडे कहाँ सूखते हैं ! २-   गति से बहती वायु  बाल बिखेर देती है  कपडे...