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दिसंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सांता

क्रिसमस पर सजे हुए ऊंचे, सुन्दर मॉल में जा  रहा है सांता इंतज़ार कर रहे है बड़े घरों के टिप टॉप बच्चे सांता आएगा गिफ्ट देगा मॉल में जाते सांता की नज़र पड़ती है मॉल के पीछे की गन्दी बस्ती के बच्चो पर जो ललचाई नज़रो  से देख रहे हैं सांता को क्या सांता पास आएगा ! उन्हें भी देगा गिफ्ट ! सांता की दृष्टि उन पर पड़ती है झटके से घुस जाता है मॉल में बुदबुदाते हुए - गॉड ब्लेस यू।  

रूदन पुकार

मैंने सुना नातिन रो रही थी शायद भूख लगी थी या कोई दूसरी तकलीफ बच्चे सो रहे होंगे जवान नींद गहरी होती है मैं दौड़ कर जाता हूँ नातिन को उठा लेता हूँ काश! ऐसे ही हर कोई सुनता किसी की रूदन पुकार !!!

ऐसे ही स्वप्न देखता

अगर रास्ता  पथरीला नहीं पानी पानी होता  नदी बहती नहीं पत्थर सी ऐंठी रहती ज़मीन सर के ऊपर होती आसमान पाँव तले कुचलता पक्षी तैरते जानवर हवा में कुलांचे भरते मैं जागते हुए भी ऐसे ही स्वप्न देखता।

शब्दरंग में प्रकाशित ५ हाइकू

सर्दी पर ५ हाइकू

१-  सर्दी लगती मास्टर की बेंत सी नन्हे के हाथ। २- हवा तेज़ है ठिठुरता गरीब छप्पर कहाँ। ३- बर्फीली सर्दी अलाव जल गया सभी जमे हैं। ४- सूरज कहाँ फूटपाथ सूना है दुबक गए। ५- नख सी हवा मुन्ने की नाक लाल बह रही है। # राजेंद्र प्रसाद कांडपाल, फ्लैट नंबर ४०२, अशोक अपार्टमेंट्स, ५, वे लेन, जॉपलिंग रोड, हज़रतगंज, लखनऊ- २२६००१ मोबाइल -