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जुलाई, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मूंछ नहीं पूंछ

अफसोस ! मेरे एक पूंछ नहीं मूंछ है पूंछ होती तो हिला लेता भ्रष्टाचार के महाकुंभ में कुछ कमा लेता मूंछ मूंछ होती है आज के जमाने में पूछ नहीं होती है तभी तो तमाम मूंछ वाले मूंछे कटा कर दुम बना कर सत्ता के आगे पीछे हिला रहे हैं भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर पाप नाशनी गंगा में नहा कर हर हर चिल्ला रहे हैं जनता की कमाई हर कर  खूब कमा रहे हैं।   

कुत्ते की मौत पर

मेरी गाड़ी से कुचल कर एक कुत्ता मर गया मैं दुखी था कुत्ते की मौत पर मगर  दुखी नहीं हो सकता था क्योंकि, मेरे मोहल्ले में सभी धर्मों और उनके अंदर जातियों के लोग रहते हैं और सेकुलर भी।

माँ का चैन

बच्चों के स्कूल खुल गए हैं, माँ सुबह उठ कर जल्दी कुल्ला मंजन कर चौके में घुस गयी है वह नाश्ता बनाती, टिफ़िन पैक करती है फिर बच्चों को ड्रेस पहना कर टिफिन बस्ते में ठूंस देती है बच्चे माँ के गालों को चूम कर चिल्लाते हुए टाटा टाटा कह कर चले जाते हैं माँ पसीना पोंछती हुई सोफ़े पर बैठती है और ज़ोर से चैन की सांस लेती है । बच्चों के जाने के बाद माँ क्यों लेती है चैन की सांस !