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जून, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

माँ का व्रत

माँ हमेशा व्रत रखतीं कभी पति के लिए कभी लड़का पैदा होने के लिए कभी संतान की मंगलकामना के लिए तो कभी घर की खुशहाली के लिए मैं सोचता- माँ अपने लिए व्रत क्यों नहीं रखती हम लोगों के लिए व्रत रखने वाली हमे भरपेट खिला कर आधा अधूरा खा कर रह जाने वाली माँ व्रत ही तो रखती थी!

नियंत्रण

सुबह सुबह घड़ी ने चीखते हुए कहा- उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है। आज उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला- ऐ घड़ी, तू मशीन होकर मुझे निर्देश देगी! घड़ी बोली- तुमने खुद ही तो सौंपा है अपना नियंत्रण मुझे।

भूकंप

इस शहर में जब आता है भूकंप निकल आते हैं लोग अपने अपने घरों से कुछ लोग इधर तो काफी लोग उधर भाग रहे होते हैं मगर भगदड़ नहीं होती यह क्योंकि लोग लूटने जा रहे होते हैं एक टूटी दुकान का सामान और ले जा रहे होते हैं सुरक्षित अपने ठिकाने में। तब कुछ ज़्यादा काँप रही होती है धरती भूकंप के बाद।

रोक न सकूँगा

प्रियतमा! उदास मत हो मेघ कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं। बहाने लगते हैं भावनाओं के सैलाब नियंत्रण का बांध तोड़ जाते हैं। नहीं रोक सकूँगा तुम्हें बाहों में बह जाऊंगा तुम्हारे साथ गहराई तक तुम्हारी रिमझिम आँखों में। फिर जाऊंगा कैसे तुम्हारे अंतस में तुम्हें यूं उदास छोड़ कर रोक न सकूँगा खुद को तुम्हारे साथ रोने से इस बारिश की तरह।

बारिश में नाव

याद आ गया बचपन भीग गया तन मन बारिश  में। बादलों की तरह घर से निकल आना मेघ गर्जना संग चीखना चिल्लाना नंगे बदन सा मन भीग गया बारिश में। कागज़ की नाव का नाले में इतराना दूर तलक हम सबका बहते चले जाना अब तो बाल्कनी से देखते हैं बारिश में। अपनी नाव के संग दौड़ हम लगाते डूबे किसी की  नाव सभी खुश हो जाते कहाँ दोस्त, नाव कहाँ अकेले खड़े हम बारिश में।

किसान

मिट्टी को गोड़ कर घास को तोड़ कर खेत बनाता है किसान। खाद को मिलाता है खेत को निराता है श्रम का पसीना इसमे बहाता है बीज का रोपण  कर पौंध बनाता है किसान। सुबह उठ जाता है खेतों पर जाता है श्रम उसका फल जाये मन्नत मनाता है पौंधा खिलने के साथ खुश हो जाता है किसान। श्रम का प्रतीक है जीवन का गीत है आस्थाओं से अधिक पौरुष का मीत  है हर कौर के साथ याद हमे आता है किसान।

चुभन

कांटे अगर फूल होते धूप से मुरझा जाते, तेज़ हवा से बिखर जाते ज़मीन पर गिर कर पैरों की ठोकर पाते पर/कांटे- पूरी बहादुरी से धूप और हवा का मुकाबला करते हैं मुरझाते नहीं कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते  लेकिन, इसके बावजूद  बहादूरों की प्रेरणा  कांटे बदनाम हैं क्योंकि, वह चुभते हैं।

गंगा, मेरी माँ!

माँ और गंगा जल समाता है जिनकी गोद में आदमी। 2 गंगा और माँ एक पवित्र दूसरी पतिव्रता। 3 गंगा माँ और माँ सब याद करें दुख में। 4 माँ कहाँ गंगा में प्रदूषण सबने कहा गंगा मर गयी। 5 गंगा और माँ जीवनदायनी। 6 हिमालय से निकली गंगा शिव ने समेटा घर से विदा हुई माँ पति ने स्वीकारा फिर दोनों ने छोड़ दिया बच्चों के पालन के लिए। 7 गंगा है माँ की माँ तभी तो समा जाती है गंगा की गोद में एक दिन माँ भी। 8 गंगा और माँ में अंतर एक में फेंकते हैं कचरा दूसरी को समझते हैं कचरा । 9 गंगा सूख रही है माँ मर गयी है हम कह रहे हैं कहाँ हो माँ! 10 जहां गंगा बहती है जहां माँ रहती है वहीं बसता है जीवन।

उन्हे टूटना होता है

जो फसलें हरी होती हैं उन्हे पकना होता है जो पक जाती हैं उन्हे कटना होता है बिना फलों का पेड़ तना होता है फलदार पेड़ों को झुकना होता है। खासियत इसमे नहीं कि आप हरे हैं या तने हैं जो दूसरों के काम आए उसे मिटना होता है। जो खामोश रहते हैं वह बुत होते हैं वक़्त बीतते ही उन्हे टूटना होता है।

बरसना

मेघों ने चाहा था धरती पर बरसना पर पानी बन कर बह गए। 2 बचपन में जब मैं गिरता था माँ की आँखों में करुणा बरसती थी जबसे /बड़े होकर /मैंने गिरना शुरू किया है माँ की आँखों से आंसुओं की गंगा बहती है। 3 ज़रूरी नहीं कि झुंड में भेड़िये ही मिले झुंड में लुटेरे भी चलते  हैं । लूट एक जशन  है नेताओं का टशन है खरीदारों की बस्ती में बाज़ार ए हुस्न है। 4  

बाबू जी की सांस

बाप मर गया था शायद बेटे ने निकट आकर पहले धीमे से पुकारा फिर ज़ोर से आवाज़ दी- बाबू जी...बाबू जी। बाबू जी की बंद पलकें नहीं काँपी कृशकाय शरीर में कोई थरथराहट नहीं हुई फिर बेटे ने बाबूजी की नाक के आगे हाथ रख दिया हाथ को साँसों की गर्मी महसूस नहीं हुई फिर भी हाथ नहीं हटाया मानो विश्वास कर लेना चाहता हो कि, सांस चल रही/या बंद हो गयी जब विश्वास हो गया तब बेटे ने पत्नी के पास जाकर कहा- सांस बंद हो गयी है सुन कर पत्नी ने भी पति की तरह चैन की सांस ली।