माँ हमेशा व्रत रखतीं
कभी पति के लिए
कभी लड़का पैदा होने के लिए
कभी संतान की मंगलकामना के लिए
तो कभी घर की खुशहाली के लिए
मैं सोचता-
माँ अपने लिए व्रत क्यों नहीं रखती
हम लोगों के लिए व्रत रखने वाली
हमे भरपेट खिला कर
आधा अधूरा खा कर
रह जाने वाली माँ
व्रत ही तो रखती थी!
All matter in this blog (unless mentioned otherwise) is the sole intellectual property of Mr Rajendra Kandpal and is protected under the international and federal copyright laws. Any form of reproduction of this text (as a whole or in part) without the written consent of Mr Kandpal will amount to legal action under relevant copyright laws. For publication purposes, contact Mr Rajendra Kandpal at: rajendrakandpal@gmail.com with a subject line: Publication of blog
रविवार, 30 जून 2013
शुक्रवार, 28 जून 2013
नियंत्रण
सुबह सुबह
घड़ी ने
चीखते हुए कहा-
उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है।
आज
उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला-
ऐ घड़ी, तू मशीन होकर
मुझे निर्देश देगी!
घड़ी बोली-
तुमने
खुद ही तो सौंपा है
अपना नियंत्रण मुझे।
घड़ी ने
चीखते हुए कहा-
उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है।
आज
उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला-
ऐ घड़ी, तू मशीन होकर
मुझे निर्देश देगी!
घड़ी बोली-
तुमने
खुद ही तो सौंपा है
अपना नियंत्रण मुझे।
मंगलवार, 18 जून 2013
भूकंप
इस शहर में
जब आता है भूकंप
निकल आते हैं लोग
अपने अपने घरों से
कुछ लोग इधर
तो काफी लोग उधर
भाग रहे होते हैं
मगर भगदड़ नहीं होती यह
क्योंकि लोग
लूटने जा रहे होते हैं
एक टूटी दुकान का सामान
और ले जा रहे होते हैं
सुरक्षित अपने ठिकाने में।
तब कुछ ज़्यादा
काँप रही होती है धरती
भूकंप के बाद।
जब आता है भूकंप
निकल आते हैं लोग
अपने अपने घरों से
कुछ लोग इधर
तो काफी लोग उधर
भाग रहे होते हैं
मगर भगदड़ नहीं होती यह
क्योंकि लोग
लूटने जा रहे होते हैं
एक टूटी दुकान का सामान
और ले जा रहे होते हैं
सुरक्षित अपने ठिकाने में।
तब कुछ ज़्यादा
काँप रही होती है धरती
भूकंप के बाद।
रोक न सकूँगा
प्रियतमा!
उदास मत हो
मेघ
कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं।
बहाने लगते हैं
भावनाओं के सैलाब
नियंत्रण का बांध
तोड़ जाते हैं।
नहीं रोक सकूँगा
तुम्हें बाहों में
बह जाऊंगा
तुम्हारे साथ
गहराई तक
तुम्हारी रिमझिम
आँखों में।
फिर जाऊंगा कैसे
तुम्हारे अंतस में
तुम्हें यूं उदास छोड़ कर
रोक न सकूँगा खुद को
तुम्हारे साथ रोने से
इस बारिश की तरह।
उदास मत हो
मेघ
कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं।
बहाने लगते हैं
भावनाओं के सैलाब
नियंत्रण का बांध
तोड़ जाते हैं।
नहीं रोक सकूँगा
तुम्हें बाहों में
बह जाऊंगा
तुम्हारे साथ
गहराई तक
तुम्हारी रिमझिम
आँखों में।
फिर जाऊंगा कैसे
तुम्हारे अंतस में
तुम्हें यूं उदास छोड़ कर
रोक न सकूँगा खुद को
तुम्हारे साथ रोने से
इस बारिश की तरह।
शनिवार, 15 जून 2013
बारिश में नाव
याद आ गया बचपन
भीग गया तन मन
बारिश में।
बादलों की तरह
घर से निकल आना
मेघ गर्जना संग
चीखना चिल्लाना
नंगे बदन सा मन
भीग गया
बारिश में।
कागज़ की नाव का
नाले में इतराना
दूर तलक हम सबका
बहते चले जाना
अब तो बाल्कनी से
देखते हैं
बारिश में।
अपनी नाव के संग
दौड़ हम लगाते
डूबे किसी की नाव
सभी खुश हो जाते
कहाँ दोस्त, नाव कहाँ
अकेले खड़े हम
बारिश में।
भीग गया तन मन
बारिश में।
बादलों की तरह
घर से निकल आना
मेघ गर्जना संग
चीखना चिल्लाना
नंगे बदन सा मन
भीग गया
बारिश में।
कागज़ की नाव का
नाले में इतराना
दूर तलक हम सबका
बहते चले जाना
अब तो बाल्कनी से
देखते हैं
बारिश में।
अपनी नाव के संग
दौड़ हम लगाते
डूबे किसी की नाव
सभी खुश हो जाते
कहाँ दोस्त, नाव कहाँ
अकेले खड़े हम
बारिश में।
किसान
मिट्टी को गोड़ कर
घास को तोड़ कर
खेत बनाता है
किसान।
खाद को मिलाता है
खेत को निराता है
श्रम का पसीना
इसमे बहाता है
बीज का रोपण कर
पौंध बनाता है
किसान।
सुबह उठ जाता है
खेतों पर जाता है
श्रम उसका फल जाये
मन्नत मनाता है
पौंधा खिलने के साथ
खुश हो जाता है
किसान।
श्रम का प्रतीक है
जीवन का गीत है
आस्थाओं से अधिक
पौरुष का मीत है
हर कौर के साथ
याद हमे आता है
किसान।
घास को तोड़ कर
खेत बनाता है
किसान।
खाद को मिलाता है
खेत को निराता है
श्रम का पसीना
इसमे बहाता है
बीज का रोपण कर
पौंध बनाता है
किसान।
सुबह उठ जाता है
खेतों पर जाता है
श्रम उसका फल जाये
मन्नत मनाता है
पौंधा खिलने के साथ
खुश हो जाता है
किसान।
श्रम का प्रतीक है
जीवन का गीत है
आस्थाओं से अधिक
पौरुष का मीत है
हर कौर के साथ
याद हमे आता है
किसान।
गुरुवार, 13 जून 2013
चुभन
कांटे अगर फूल होते
धूप से मुरझा जाते,
तेज़ हवा से बिखर जाते
ज़मीन पर गिर कर
पैरों की ठोकर पाते
धूप से मुरझा जाते,
तेज़ हवा से बिखर जाते
ज़मीन पर गिर कर
पैरों की ठोकर पाते
पर/कांटे-
पूरी बहादुरी से
धूप और हवा का मुकाबला करते हैं
मुरझाते नहीं
कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते
लेकिन, इसके बावजूद
पूरी बहादुरी से
धूप और हवा का मुकाबला करते हैं
मुरझाते नहीं
कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते
लेकिन, इसके बावजूद
बहादूरों की प्रेरणा कांटे
बदनाम हैं
क्योंकि,
वह चुभते हैं।
क्योंकि,
वह चुभते हैं।
शनिवार, 8 जून 2013
गंगा, मेरी माँ!
माँ
और गंगा जल
समाता है
जिनकी गोद में
आदमी।
2
गंगा
और माँ
एक पवित्र
दूसरी पतिव्रता।
3
गंगा माँ
और माँ
सब याद करें
दुख में।
4
माँ कहाँ
गंगा में प्रदूषण
सबने कहा
गंगा मर गयी।
5
गंगा
और माँ
जीवनदायनी।
6
हिमालय से निकली गंगा
शिव ने समेटा
घर से विदा हुई माँ
पति ने स्वीकारा
फिर दोनों ने छोड़ दिया
बच्चों के पालन के लिए।
7
गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।
8
गंगा और माँ में अंतर
एक में फेंकते हैं कचरा
दूसरी को समझते हैं
कचरा ।
9
गंगा सूख रही है
माँ मर गयी है
हम कह रहे हैं
कहाँ हो माँ!
10
जहां गंगा बहती है
जहां माँ रहती है
वहीं बसता है
जीवन।
और गंगा जल
समाता है
जिनकी गोद में
आदमी।
2
गंगा
और माँ
एक पवित्र
दूसरी पतिव्रता।
3
गंगा माँ
और माँ
सब याद करें
दुख में।
4
माँ कहाँ
गंगा में प्रदूषण
सबने कहा
गंगा मर गयी।
5
गंगा
और माँ
जीवनदायनी।
6
हिमालय से निकली गंगा
शिव ने समेटा
घर से विदा हुई माँ
पति ने स्वीकारा
फिर दोनों ने छोड़ दिया
बच्चों के पालन के लिए।
7
गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।
8
गंगा और माँ में अंतर
एक में फेंकते हैं कचरा
दूसरी को समझते हैं
कचरा ।
9
गंगा सूख रही है
माँ मर गयी है
हम कह रहे हैं
कहाँ हो माँ!
10
जहां गंगा बहती है
जहां माँ रहती है
वहीं बसता है
जीवन।
उन्हे टूटना होता है
जो फसलें
हरी होती हैं
उन्हे पकना होता है
जो पक जाती हैं
उन्हे कटना होता है
बिना फलों का पेड़
तना होता है
फलदार पेड़ों को
झुकना होता है।
खासियत इसमे नहीं
कि आप
हरे हैं या तने हैं
जो दूसरों के काम आए
उसे मिटना होता है।
जो खामोश रहते हैं
वह बुत होते हैं
वक़्त बीतते ही
उन्हे टूटना होता है।
हरी होती हैं
उन्हे पकना होता है
जो पक जाती हैं
उन्हे कटना होता है
बिना फलों का पेड़
तना होता है
फलदार पेड़ों को
झुकना होता है।
खासियत इसमे नहीं
कि आप
हरे हैं या तने हैं
जो दूसरों के काम आए
उसे मिटना होता है।
जो खामोश रहते हैं
वह बुत होते हैं
वक़्त बीतते ही
उन्हे टूटना होता है।
गुरुवार, 6 जून 2013
बरसना
मेघों ने चाहा था
धरती पर बरसना
पर
पानी बन कर
बह गए।
2
बचपन में
जब मैं गिरता था
माँ की आँखों में
करुणा बरसती थी
जबसे /बड़े होकर /मैंने
गिरना शुरू किया है
माँ की आँखों से
आंसुओं की गंगा बहती है।
3
धरती पर बरसना
पर
पानी बन कर
बह गए।
2
बचपन में
जब मैं गिरता था
माँ की आँखों में
करुणा बरसती थी
जबसे /बड़े होकर /मैंने
गिरना शुरू किया है
माँ की आँखों से
आंसुओं की गंगा बहती है।
3
ज़रूरी नहीं कि झुंड में
भेड़िये ही मिले
झुंड में लुटेरे भी चलते हैं ।
लूट एक जशन है
नेताओं का टशन है
खरीदारों की बस्ती में
बाज़ार ए हुस्न है।
4
भेड़िये ही मिले
झुंड में लुटेरे भी चलते हैं ।
लूट एक जशन है
नेताओं का टशन है
खरीदारों की बस्ती में
बाज़ार ए हुस्न है।
4
सोमवार, 3 जून 2013
बाबू जी की सांस
बाप मर गया था शायद
बेटे ने निकट आकर
पहले धीमे से पुकारा
फिर ज़ोर से आवाज़ दी-
बाबू जी...बाबू जी।
बाबू जी की बंद पलकें नहीं काँपी
कृशकाय शरीर में
कोई थरथराहट नहीं हुई
फिर बेटे ने
बाबूजी की नाक के आगे हाथ रख दिया
हाथ को साँसों की गर्मी महसूस नहीं हुई
फिर भी
हाथ नहीं हटाया
मानो विश्वास कर लेना चाहता हो
कि, सांस चल रही/या बंद हो गयी
जब विश्वास हो गया
तब बेटे ने
पत्नी के पास जाकर कहा-
सांस बंद हो गयी है
सुन कर
पत्नी ने भी पति की तरह
चैन की सांस ली।
बेटे ने निकट आकर
पहले धीमे से पुकारा
फिर ज़ोर से आवाज़ दी-
बाबू जी...बाबू जी।
बाबू जी की बंद पलकें नहीं काँपी
कृशकाय शरीर में
कोई थरथराहट नहीं हुई
फिर बेटे ने
बाबूजी की नाक के आगे हाथ रख दिया
हाथ को साँसों की गर्मी महसूस नहीं हुई
फिर भी
हाथ नहीं हटाया
मानो विश्वास कर लेना चाहता हो
कि, सांस चल रही/या बंद हो गयी
जब विश्वास हो गया
तब बेटे ने
पत्नी के पास जाकर कहा-
सांस बंद हो गयी है
सुन कर
पत्नी ने भी पति की तरह
चैन की सांस ली।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)