रविवार, 26 दिसंबर 2010

सृजन

मैं सृजन करना चाहता हूँ
इसलिए लिखता हूँ।
मैं भजन करना चाहता हूँ
इसलिए पूजा करता हूँ।
कोई चाहे जो समझे
एक नहीं कर पाऊँ तो
काम दूजा करता हूँ।

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

पाँव


मेरे पांव नंगे हैं,

उनमें बिवाई पड़ी हुई है,

बुरी तरह से फटे हुए,

बेजार से हैं

लेकिन,

फिर भी खुश हैं,

उन पैरों से अधिक

जो,

बेहद साफ़ सुथरे हैं

कारों पर

जूते पहन कर

बैठे रहते हैं।

कभी

ज़मीन पर चलते नहीं।
मेरे पाँव
मेरा बोझ धोते हैं,
मुझे ज़मीन पर रखते हैं।



मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

टिप्पणी

यारों
मैं अपनी टिप्पणी वापस लेता हूँ।
मैंने जो कहा गलत कहा,
सो,
आपने जो सुना, गलत सुना
दरअसल,
पिछले ६३ सालों से,
टिप्पणी और वादे करते
और फिर उन्हें
वापस लेने या
पूरा नहीं करने की
आदत सी हो गयी है।
इसलिए,
मैं टिप्पणी करता हूँ
और वापस लेता हूँ।
यारों इसे गंभीरता से न लेना,
मैं नेता हूँ।