बुधवार, 1 नवंबर 2023

नाम

क्या तुम  मुझे जानते हो !

 

नहीं बिलकुल नहीं

 

तुम मुझे नहीं जानते

 

तुम मेरा नाम जानते हो बस !

 

 

 

२-

 

नाम क्या है ?

 

उसने जग में बड़ा नाम किया

 

उसने नाम बदनाम कर दिया

 

पर यहाँ नाम था

 

तुम्हारा दिया हुआ

 

वास्तव में यह नाम नहीं था.

 

 

 

३-

 

रावण कौन था ?

 

इस प्रश्न के भिन्न उत्तर मिलेंगे

 

रावण प्रकांड पंडित था

 

रावण दुष्कर्मी था

 

राक्षस था

 

असल में वह क्या था

 

उसका नाम कोई नहीं जानता !

 

 

 

४-

 

नाम क्या है ?

 

नाम अपने आप में अर्थ है

 

कर्मों का

 

जो आप कर जाते है। 

 

 

 

 

 

५-

 

नयनसुख अँधा है

 

दरिद्र नारायण सेठ है

 

नेता वाचाल है

 

बहरा श्रोता है

 

लखपत की एक पत्नी है

 

नाम में क्या रखा है ?

शुक्रवार, 22 सितंबर 2023

विषय

हास्य का अंत है 

इति'हास 

यानि अतीत का रोनाधोना. 

२ 

गणित 

अंकों का जोड़-घटाना-गुणा-भाग 

ठीक रिश्तों की तरह 

जहाँ अंततः 

रिश्तेदार भाग जाते है। 


गुरुवार, 21 सितंबर 2023

कौन सी धूप हो!



एक धूप होती है 

जमीन से उठ कर 

चढ़ती जाती है 

राहगीर के सर तक 

ग्रीष्म मे यह धूप 

व्याकुल कर देने वाला ताप देती है

फिर धराशायी हो जाती है 

शरद ऋतु में धूप 

नर्म ताप देती है 

राहत देने वाला 

यह धूप भी 

धराशायी हो जाती है 

पर यात्री को 

प्रतिक्षा रहती है 

शरद की धूप की। 

तुम  क्या हो ?

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

यह कैसी दूरियां !

उस दिन बेटी को ऑफिस से कन्फर्मेशन लेटर मिला था।





दो तीन दिन से घर का माहौल टेंस था।  ऐसा लगा कि ऑफिस में सब कुछ ठीक नहीं है। कदाचित इसलिए तनावपूर्ण वातावरण स्वाभाविक भी था।  ऐसे में कौन अप्रभावित रह सकता है! माँ भी अछूती नहीं थी। 



माँ, अपनी बेटी के साथ, पति की इच्छा के विरुद्ध अपना प्रदेश, अपना नगर छोड़ कर, प्रदेश प्रदेश, नगर नगर साथ साथ या पीछे पीछे चल रही थी।  बेटी के जीवन को सुगम और सुचारु चलाने के लिए।  ऐसे में बच्चों से अपेक्षाएं भी हो जाती है।

 


यहाँ बता दूँ कि बेटी विवाहित थी।  एक बेटी की माँ।  आठ साल की बेटी।  स्कूल जाने वाली। माँ इन सब को सम्हाले रहती।  अस्वस्थता और शारीरिक कष्ट के बाद भी चौका बर्तन सम्हाले रहती।  नातिन को पुचकारती, सम्हालती, स्कूल के लिए तैयार करती।  ऐसे में स्वाभाविक था कि दूसरी ओर से भी अपेक्षाएं  होना 

 


उस दिन बेटी को कन्फर्मेशन मिला। उस दिन  वह घर आई।  खाना खाया। और  पति और बेटी के साथ घर से बाहर निकल गई।  पैर का कष्ट झेल रही माँ थोड़ी देर में सो गई।

 


सुबह आँख खुली।  मोबाइल पर दृष्टि गई।  व्हाट्सएप्प पर सन्देश का चिन्ह दिखाई दिया।  मैसेज खोला ।  सात पेज का, जेपीजी फाइल वाला।  उन फाइलों में, ऑफिस के उच्च अधिकारियों ने मूल्यांकन किया था।  अंत में उसे कन्फर्म किये जाने की बात कही गई थी। माँ का मन प्रसन्न हो गया।  बेटी को बधाई सन्देश लिखित में भी भेज दिया।

 


यकायक माँ विचलित हो गई। यकायक विचार आया।  मैं पिछले दस सालों से बेटी के साथ अपना प्रदेश और नगर छोड़ कर पति की इच्छा के विरुद्ध प्रदेश प्रदेश नगर नगर जा रही हूँ।  स्पष्ट है कि भावनात्मक लगाव है।  माँ के साथ ऐसा होना स्वाभाविक भी है।

 


पर...पर... बेटी भी माँ है।  बेटी माँ से और माँ बेटी से भावनात्मक सम्बन्ध रखती होगी। नातिन जब भी स्कूल में कुछ अच्छा करती तो सबसे पहले माँ को आ के बताती।  माँ भी बेटी से सबसे पहले ऐसा सुना जाना पसंद करती।

 


पर क्या बेटी को यह समझ नहीं।  क्या वह नहीं समझती कि जैसे वह चाहती है कि उसकी बेटी  अपना शुभ सबसे पहले माँ को बताये तो वह यह क्यों नहीं समझती कि वह अपना शुभ सबसे पहले माँ को न सही, बाद में, माँ को भी बताये।


 

पर... बेटी तो ऑफिस से आई।  चौके से खाना परोसा और ड्राइंग रूम में खा कर अपने पति और बेटी के साथ सेलिब्रेशन को निकल गई। उससे चार फुट की दूरी पर कर कमरे में आ कर माँ को अपना शुभ बताना नहीं हो सका।  कैसे है यह दूरी।  कैसे उपज गई !!


 

माँ सोचती रही देर तक !!!