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अक्टूबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

निराश उम्मीद

पहली तारीख को वह बहुत खुश खुश ऑफिस जाता है। क्यूंकि आज तनख्वाह का दिन है आज उसे अपनी गृहस्थी चलाने बच्चे को कपड़े दिलाने की उम्मीद पूरी करने के लिए रुपये मिलेंगे । वह तनख्वाह जेब में धरकर बाहर निकलता है यकायक वह निराश हो उठता है सामने खड़ा हुआ साहूकार, उसे देख कर मुस्कुरा रहा है मगर उसके चेहरे की खुशी यकायक गायब हो जाती है क्यूंकि अब साहूकार उसके बच्चे की नए कपड़े की उम्मीद छीनने वाला है।

पाँच रोटियाँ

        (१) भाई रोटी दो प्रकार की होती हैं, एक जो हम पूरी खा जाते हैं, दूसरी जो हम थोड़ी खा कर फेंक देते हैं. यह जो हम थोड़ी रोटी फेंक देते है ना.... उसे कुछ भूखे लोग हमारी पहली रोटी की तरह पूरी खा जाते हैं बिलकुल भी नहीं फेंकते.         (२) मैं बचपन में रोटी को लोती बोलता था. फिर बड़ा होकर मैंने उसे रोटी कहना सीख लिया लेकिन मैं आज भी रोटी कमाना नहीं जान पाया हूँ.          (३) मैं सोचता हूँ कि अगर भूख न होती तब रोटी की ज़रुरत नहीं होती तब ऐसे में क्या होता ? आदमी क्या करता क्या तब आदमी सबसे संतुष्ट होता क्यूंकि रोटी के लिए ही तो मेहनत कर कमाता है आदमी. लेकिन मेरे ख्याल से आदमी तब भी मेहनत करता रोटी कमाने के लिए नहीं, सोना बटोरने के लिए अपनी तिजोरी भरने के लिए क्यूंकि सोना बटोरने की भूख तब भी ख़त्म नहीं होती.           (४) जब मैंने अपने पैसे से ...

अपने

                  जीवन में कई ऐसे पल आते हैं, जब अपने हमको छल जाते हैं. घन सा चल जाता है दिल पर, आँखों में आंसू आ जाते हैं, हम चाहें उनको जितना भी, वह हमको उतना तड़पाते हैं. सूर्योदय सूर्यास्त सा जीवन है, हर रात के बाद अँधेरे आते हैं. दुःख सुख में क्यूँ फर्क करे हम, जिन्हें मिलना है वह मिल जाते हैं.

दीपावली पर

मैंने दीपावली की रात एक दीपक जलाया ही था कि तभी तेज़ हवा का झोंका आया लगा, नन्हा दीपक घबराकर काँप रहा है, बुझने बुझने को है । मैंने घबराकर, उसके दोनों ओर अपनी हथेलियों की अंजुरी लगा दी। हवा के प्रहार के साथ थोड़ा झूलने के बाद दीपक की लौ स्थिर हो गयी मैंने आश्वस्त होकर हथेलियाँ हटा ली। यह देख कर दीपक ने पूछा- तुम इतना घबरा क्यूँ गए थे? अमावस की इस रात को भरसक उजाला देने का दायित्व मेरा है मुझे पूरी रात जलते रहने की कोशिश करनी है रात भर ऐसे ही हवा के झोंके चलते रहेंगे अभी तुम चले जाओगे तब भी हवा के ऐसे तेज़ झोंके आते और जाते रहेंगे मुझे बुझाने की कोशिश करते रहेंगे उस समय, मुझे ही स्थिर रहना है, विपत्तियों के इन झोंकों का सामना करना है, इन्हे परास्त करना है। हो सकता है कि जब तुम सुबह आओ तो मुझे अधजला पाओ मेरा तेल थोड़ा बचा, इधर उधर गिरा नज़र आए ऐसे में तुम निराश मत होना। बस इतना करना बचे खुचे तेल में नया तेल डाल कर फिर से मुझे जला देना आखिर अंधकार को भगाने का प्रयास कल भी तो करना है।          (२) जब दीवाली का...

लकड़ी

मैं सीली लकड़ी नहीं कि, खुद तिल तिल कर सुलगूँ और दूसरों को धुआं धुआं करूँ . मैं सूखी लकड़ी हूँ धू धू कर सुलगती हूँ खुद जलती हूँ और किसी को भी जला सकती हूँ अब यह तुम पर है कि तुम मुझसे अपना चूल्हा जलाते हो या किसी का घर !

आसमान

करोड़ों सालों से आसमान तना हुआ है हम सब के सर पर होते हुए भी वह हम पर गिरता नहीं है क्या आपने सोचा कि ऐसा क्यूँ? क्यूंकि वह बिल्कुल हल्का है अपने अहम के भार के बिना तब हम क्यूँ करोड़ों साल के इस सत्य को स्वीकार नहीं करते क्यूँ अपने ही भार से गिर गिर पड़ते हैं?

डरपोक बिल्ली

मुझे छेड़ो नहीं, मुझे घेरो नहीं, मैं डरपोक बिल्ली सा हूँ। तुम्हारी छेड़ छाड़ और घेर घार से भागता हुआ। मेरे पास लंबे नुकीले, मजबूत नाखून हैं इसके बावजूद मैं पलटवार नहीं करता तुम पर प्रहार नहीं करता क्यूंकि मैं खुद भी जीना चाहता हूँ और तुम्हें भी जीने देना चाहता हूँ लेकिन ख्याल रहे अगर तुमने मेरा पीछा न छोड़ा मुझे घेरना ना छोड़ा तो मैं डर जाऊंगा इतना डर जाऊंगा कि मर जाऊंगा ऐसे में जबकि मुझे जीना है तो मुझे तुम्हें मारना होगा अपने तीखे नाखूनों से फाड़ना होगा क्यूंकि मैं एक डरपोक बिल्ली हूँ।

गांधी

गांधी हमारे देश के नहीं थे भाई गांधी हमारे देश के कैसे हो सकते हैं। कहाँ हम लक़दक़ कपड़ों में घूमने वाले इंडियन कहाँ लंगोटी बांधे भारत की गली गली घूमता फकीर कहाँ हम महंगी घड़ी बांधे फॉरवर्ड कहाँ लाठी पकड़े अंग्रेजों को हकाने वाला बॅकवर्ड कहाँ हम फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने पर गर्व करने वाले अँग्रेज़ीदाँ कहाँ भारतीय भाषाओं के बल पर अंग्रेजों को झुकाने वाला हिंदुस्तानी। वह इंडिया के लायक नहीं था तभी तो आज़ादी के बाद गोडसे ने उसे शरीर से मारा हमने उसे विचारों से भी मार दिया। अरे भाई कह दिया न गांधी हमारे देश के लिए नहीं थे गांधी जयंती २ अक्टूबर