रविवार, 30 अक्टूबर 2011

निराश उम्मीद

पहली तारीख को
वह बहुत खुश खुश ऑफिस जाता है।
क्यूंकि आज तनख्वाह का दिन है
आज उसे अपनी गृहस्थी चलाने
बच्चे को कपड़े दिलाने की
उम्मीद पूरी करने के लिए रुपये मिलेंगे ।
वह तनख्वाह जेब में धरकर बाहर निकलता है
यकायक वह निराश हो उठता है
सामने खड़ा हुआ साहूकार,
उसे देख कर मुस्कुरा रहा है
मगर उसके चेहरे की खुशी
यकायक गायब हो जाती है
क्यूंकि अब साहूकार
उसके बच्चे की
नए कपड़े की उम्मीद छीनने वाला है।

शनिवार, 29 अक्टूबर 2011

पाँच रोटियाँ


        (१)
भाई
रोटी दो प्रकार की होती हैं,
एक जो हम पूरी खा जाते हैं,
दूसरी जो हम थोड़ी खा कर फेंक देते हैं.
यह जो हम थोड़ी रोटी फेंक देते है ना....
उसे कुछ भूखे लोग
हमारी पहली रोटी की तरह
पूरी खा जाते हैं
बिलकुल भी नहीं फेंकते.

        (२)
मैं बचपन में
रोटी को लोती बोलता था.
फिर बड़ा होकर
मैंने उसे
रोटी कहना सीख लिया
लेकिन मैं आज भी
रोटी कमाना नहीं जान पाया हूँ.

         (३)
मैं सोचता हूँ कि अगर
भूख न होती
तब रोटी की ज़रुरत नहीं होती
तब ऐसे में क्या होता ?
आदमी क्या करता
क्या तब आदमी सबसे संतुष्ट होता
क्यूंकि रोटी के लिए ही तो मेहनत कर कमाता है आदमी.
लेकिन मेरे ख्याल से
आदमी तब भी मेहनत करता
रोटी कमाने के लिए नहीं,
सोना बटोरने के लिए
अपनी तिजोरी भरने के लिए
क्यूंकि
सोना बटोरने की भूख
तब भी ख़त्म नहीं होती.

          (४)
जब मैंने
अपने पैसे से
पहली रोटी खायी
तब मुझे खुशी के साथ साथ
यह भी एहसास हुआ
कि पिता
मेरे रोटी फेंक देने पर
क्यूँ नाराज़ हुआ करते थे.

             (५)
जब रोटी नहीं होती
हम रोटी मंगाते हैं
तब
माँ रोती है.















अपने

                 
जीवन में कई ऐसे पल आते हैं,
जब अपने हमको छल जाते हैं.
घन सा चल जाता है दिल पर,
आँखों में आंसू आ जाते हैं,
हम चाहें उनको जितना भी,
वह हमको उतना तड़पाते हैं.
सूर्योदय सूर्यास्त सा जीवन है,
हर रात के बाद अँधेरे आते हैं.
दुःख सुख में क्यूँ फर्क करे हम,
जिन्हें मिलना है वह मिल जाते हैं.

बुधवार, 26 अक्टूबर 2011

दीपावली पर

मैंने दीपावली की रात
एक दीपक जलाया ही था
कि तभी
तेज़ हवा का झोंका आया
लगा, नन्हा दीपक घबराकर काँप रहा है,
बुझने बुझने को है ।
मैंने घबराकर,
उसके दोनों ओर
अपनी हथेलियों की अंजुरी लगा दी।
हवा के प्रहार के साथ थोड़ा झूलने के बाद
दीपक की लौ स्थिर हो गयी
मैंने आश्वस्त होकर हथेलियाँ हटा ली।
यह देख कर दीपक ने पूछा-
तुम इतना घबरा क्यूँ गए थे?
अमावस की इस रात को
भरसक उजाला देने का दायित्व मेरा है
मुझे पूरी रात जलते रहने की कोशिश करनी है
रात भर ऐसे ही हवा के झोंके चलते रहेंगे
अभी तुम चले जाओगे
तब भी
हवा के ऐसे तेज़ झोंके आते और जाते रहेंगे
मुझे बुझाने की कोशिश करते रहेंगे
उस समय,
मुझे ही स्थिर रहना है,
विपत्तियों के इन झोंकों का
सामना करना है,
इन्हे परास्त करना है।
हो सकता है कि
जब तुम सुबह आओ
तो मुझे अधजला पाओ
मेरा तेल थोड़ा बचा, इधर उधर गिरा नज़र आए
ऐसे में तुम निराश मत होना।
बस इतना करना
बचे खुचे तेल में
नया तेल डाल कर
फिर से मुझे जला देना
आखिर
अंधकार को भगाने का प्रयास
कल भी तो करना है।
         (२)

जब दीवाली का
पहला दिया जलेगा,
तब रात्रि का अंधकार मिटेगा नहीं
लेकिन यह दिया
आशा का दीप होगा
जो अंधकार को मिटाने की प्रेरणा देगा।
फिर उस एक दीप से
अन्य दीप जलेंगे
और उनके प्रकाश में
अन्तर्मन तक अंधकार भाग जाएगा।

                (३)
तेज़ हवा से काँपते दीपक की तरह
बीमार दादा जी का जीवन दीपक बुझ गया है।
मेरे लिए अच्छी खबर यह है कि
उनका बचा हुआ तेल
जो लाखों की जायदाद के रूप मे है
मेरे लिए बच गया है।


                (४)
दिए की बाटी
अपना मुंह जलती है
तेल की एक एक बूँद सोख कर
प्रकाश फैलाती है.
अपने लिए कुछ भी नहीं बचाती
उसके जलने से दिया दीपक बनता है
पूरा जल जाने के बावजूद
उसका अस्तित्व उसके त्याग की याद दिलाता है.
वही दिया
अपना स्वार्थ देखता है
अपने में पड़ा तेल
सोख लेता है.
बाटी के माध्यम से
बिखरने वाली प्रकाश की आयु
कम कर देता है
इसलिए मट्टी का दिया
मिटटी में मिल जाता है.

            (५)
अमावस की रात
काली अंधियारी होती है
हाथ को हाथ नहीं सूझता
पर अमावस का एक सन्देश है
मैं अंधेरी काली हूँ
ताकि,
तुम नन्हे नन्हे ढेरों दीप जला सको.
उनके प्रकाश में
अपनी और दूसरों की
राह जगमगा सको

शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

अपने अपने कर्तव्य




cM+s cqtqxZ
;g D;ksa dgrs gSa fd
thrs jgks A
;g D;ksa ugh dgrs fd
[kkrs jgks
vkSj ihrs jgks A
'kk;n
thou nsuk
vkSj thrs jgus dk vk'kkhokZn nsuk
mudk drZO; gS A
vkSj
dSlk [kkuk gS]
dSlk ihuk gS
vkSj dSlk thuk gS
;g r; djuk
gekjk QtZ gS A

गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011

छोटी दुनिया

दुनिया कितनी छोटी है
दो कदम तुम चलो
दो कदम वह चलें
और दोनों मिल जाते हैं .


लकड़ी

मैं सीली लकड़ी नहीं
कि, खुद
तिल तिल कर सुलगूँ
और दूसरों को
धुआं धुआं करूँ .
मैं सूखी लकड़ी हूँ
धू धू कर सुलगती हूँ
खुद जलती हूँ
और किसी को भी जला सकती हूँ
अब यह तुम पर है
कि तुम मुझसे
अपना चूल्हा जलाते हो
या किसी का घर !

आसमान

करोड़ों सालों से
आसमान तना हुआ है
हम सब के सर पर होते हुए भी
वह हम पर गिरता नहीं है
क्या आपने सोचा कि ऐसा क्यूँ?
क्यूंकि वह बिल्कुल हल्का है
अपने अहम के भार के बिना
तब हम क्यूँ
करोड़ों साल के इस सत्य को स्वीकार नहीं करते
क्यूँ अपने ही भार से गिर गिर पड़ते हैं?

सोमवार, 3 अक्टूबर 2011

डरपोक बिल्ली


मुझे छेड़ो नहीं,
मुझे घेरो नहीं,
मैं डरपोक बिल्ली सा हूँ।
तुम्हारी छेड़ छाड़ और घेर घार से भागता हुआ।
मेरे पास लंबे नुकीले, मजबूत नाखून हैं
इसके बावजूद मैं पलटवार नहीं करता
तुम पर प्रहार नहीं करता
क्यूंकि मैं खुद भी जीना चाहता हूँ
और तुम्हें भी जीने देना चाहता हूँ
लेकिन ख्याल रहे
अगर तुमने मेरा पीछा न छोड़ा
मुझे घेरना ना छोड़ा
तो मैं डर जाऊंगा
इतना डर जाऊंगा कि मर जाऊंगा
ऐसे में जबकि मुझे जीना है
तो मुझे तुम्हें मारना होगा
अपने तीखे नाखूनों से फाड़ना होगा
क्यूंकि
मैं एक डरपोक बिल्ली हूँ।

रविवार, 2 अक्टूबर 2011

गांधी


गांधी
हमारे देश के नहीं थे भाई
गांधी
हमारे देश के कैसे हो सकते हैं।
कहाँ हम लक़दक़ कपड़ों में घूमने वाले इंडियन
कहाँ लंगोटी बांधे भारत की गली गली घूमता फकीर
कहाँ हम महंगी घड़ी बांधे फॉरवर्ड
कहाँ लाठी पकड़े अंग्रेजों को हकाने वाला बॅकवर्ड
कहाँ हम फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलने पर गर्व करने वाले अँग्रेज़ीदाँ
कहाँ भारतीय भाषाओं के बल पर अंग्रेजों को झुकाने वाला हिंदुस्तानी।
वह इंडिया के लायक नहीं था
तभी तो आज़ादी के बाद
गोडसे ने उसे शरीर से मारा
हमने उसे विचारों से भी मार दिया।
अरे भाई कह दिया न
गांधी हमारे देश के लिए नहीं थे

गांधी जयंती २ अक्टूबर