बुधवार, 31 मई 2017

कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ?

कटप्पा ने अपने महिष्मति राज्य के महाराज और अपनी बहन के बेटे अमरेंद्र बाहुबली को क्यों मारा ? पूरे हिंदुस्तान को यह सवाल पूरे दो साल से मथ रहा था।  एस एस राजामौली ने फिल्म के अंत में कटप्पा से बाहुबली को मरवा कर, खुद उसी के मुंह से यह सवाल पुछवा दिया था कि मैंने बाहुबली को क्यों मारा ! यह इकलौता ऐसा सवाल था,  जिसे सभी पूछ रहे थे। इस  सवाल पर सभी भारतीय थे।  न कोई बिहारी था, न कोई बाहरी।  हर मुंह से अलग सवाल नहीं थे। अन्यथा हमारे देश में तीन तलाक़ क्यों ? बाबरी मस्जिद क्यों ढहाई गई ? बुर्के पर सवाल अलग।  बोलने की आज़ादी क्यों नहीं ? हिन्दू साम्प्रदायिकता और मुस्लिम साम्प्रदायिकता पर अलग अलग सवाल होते हैं।  यह सवाल ठेठ सांप्रदायिक होते हैं।  मसलन, किसी सवाल को केवल हिन्दू पूछता है तो किसी दूसरे सवाल को सिर्फ कोई मुसलमान ही या फिर सिर्फ सेक्युलर ही पूछता है। अब यह बात दीगर है कि कोई भी किसी सवाल का जवाब नहीं देना चाहता।  सिर्फ कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ही ऐसा इकलौता सवाल था, जो पूर्णतया सेक्युलर प्रकृति का था।  यानि इसे हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई और आईएसआईएस सभी पूछ रहे थे।  मज़े की बात यह थी कि सभी अपने अपने तई इसके जवाब भी दे रहे थे।  २८ अप्रैल को, जब बाहुबली का दूसरा हिस्सा प्रदर्शित हुआ, इस सेक्युलर प्रकृति के सवाल का जवाब हर सेक्युलर और कम्युनल को मिल गया।  सभी संतुष्ट भी थे।  हाँ बाहुबली को कटप्पा ने यो मारा ! यहाँ एक ख़ास बात और थी ! ख़ास बात यह कि फिल्म देख कर निकलने वाला हर शख्स सेक्युलर हो कर निकल रहा था। इस प्रकार कि निकलने वाले हर शख्स को मालूम था कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? लेकिन बाहर निकल कर सेक्युलर बना इस सवाल का जवाब देने के लिए तैयार नहीं था।  जब भी किसी से पूछा जाता, उसका जवाब एक ही होता- फिल्म देख लो, खुद जान जाओगे। अपने देश में इतनी एकता तो मैंने आजतक महात्मा गांधी तक पर भी नहीं दिखी।  
फिल्म देखने के बाद सभी संतुष्ट थे।  कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा ? ठीक ही मारा।  वह कंस मामा नहीं था।  भांजे को मारने वाला हर मामा कंस नहीं होता।  शकुनि उदाहरण हैं न ! बेशक अपने सौ भांजो को  मरवा दिया।  लेकिन द्युत क्रीड़ा में तो जितवा दिया।  आमिर खान भी है न ! अपने रद्दी टाइप एक्टर भांजे इमरान खान को पिछले दस सालों से थोपे पड़ा है।  महेश भट्ट भी कहाँ कम हैं।  उन्होंने तो भांजे की चांदी ही चांदी कर दी, मेरा मतलब है चुम्मी ही चुम्मी कर दी है।  एक्टिंग आती नहीं, सीरियल किसर बन कर चालीस  फिल्मों का हीरो बन चुका है।  नई नई हीरोइन तो छोडो, पुरानी हीरोइन भी उसके किस से बच नहीं सकी।  बिपाशा बासु से लेकर विद्या बालन तक सभी को चूम चुका है।  इस लिए पाठकों ! कटप्पा भी हिन्दू होते हुए भी कंस मामा की विरासत से नहीं था।  उसने बाहुबली को जिस कारण से मारा, उससे सभी संतुष्ट थे।  
लेकिन, इस दुनिया में केवल एक शख्स था, जो संतुष्ट नहीं था ! वह शख्स था खुद बाहुबली अमरेंद्र  ! अमरेंद्र बाहुबली  को विश्वास नहीं था कि मामा ने उसे सिर्फ इसलिए मारा।  यह कोई बात हुई कि हिंदुस्तान में सभी सेक्युलर बने कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा के जवाब से संतुष्ट नज़र आ रहे हैं ! कम से कम एक आदमी को तो इस जवाब पर सवाल उठाना चाहिए था। कांग्रेसी बनाने को कौन कर रहा है।  लेकिन, इस जवाब पर तो दिग्गी राजा की तरह व्यवहार करना चाहिए था।  इसलिए बाहुबली असंतुष्ट था।  
बाहुबली स्वर्ग के द्वार पर जा बैठा।  वह इंतज़ार करने लगा कटप्पा के आने का ! कटप्पा ने बाहुबली को मार दिया था, इसलिए स्वभाविक ही बाहुबली स्वर्ग पहुँचने वाला पहला महिष्मति निवासी  था।  चूंकि, कटप्पा को बाद में मरना था इसलिए बाहुबली उसके मर कर स्वर्ग आने का इंतज़ार करने लगा।  
युद्ध में मारे जाने के बाद कटप्पा स्वर्ग पहुंचा।  बाहुबली ने कहा- आओ मामा कटप्पा ! आओ !! 
बाहुबली के बोलने का लहज़ा काफी कुछ शोले वाले गब्बर जैसा था।  सो कटप्पा सहम गया ! 
बोला- भांजे ! उसके बोलने का लहज़ा सीरियल महाभारत के शकुनि गूफी पेंटल के लहजे जैसा था।  वह बाहुबली से लिपट कर रोने लगा।  बाहुबली मामे को रोता देख कर थोड़ा खुश भी था।  अब यह कठोर दिल पिघल कर सब उगल देगा।  बाहुबली कटप्पा की गंजी टांट सहलाने लगा।  
कटप्पा बोला - भांजे अमरेंद्र बाहुबली ! मुझे माफ़ कर देना कि मैंने तुम्हे मार दिया।  एक मामा हो कर मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए थे।  
बाहुबली बोले - मामाआआआ ! हिंदुस्तान में तुम्हारे जैसे बहुत से मामा है।  इसलिए नाहक आंसू मत बहाओ।  बस मेरे एक सवाल का जवाब दो।  
कटप्पा बोला- पूछ भांजे ! 
बाहुबली - कटप्पा तुमने बाहुबली को यानि मुझे क्यों मारा ?
कटप्पा बोला- फिल्म में बताया तो न ! 
बाहुबली गरजा - मामा ! तुमने मुझे मामा समझा है क्या ! मुझे मामा मत बनाना।  मुझे वह जवाब नहीं असली जवाब चाहिए! मैं तुम्हारा भांजा हूँ,  हिंदुस्तानी दर्शक नहीं कि दो साल से जवाब के लिए चुटकुले, कवितायें और सवाल पे सवाल उछलता रहा हूँ और फ़िल्मी जवाब सुन कर खुश हो जाऊं ।  
कटप्पा मुस्कुराया।  ढाल और तलवार जमीन पर रख दी।  कवच कुण्डल, मुकुट उतार कर जमीन पर दे मारे।  फिर अपनी गंजी टांट पर हाथ फेरता हुआ बोला - सुन बेटा, मैंने तुझे क्यों मारा।  पिछले दो सालों से करोड़ों दर्शक इस सवाल का जवाब पूछ रहे थे।  सोशल साइट्स से लेकर सोशल गैदरिंग में यह सवाल पुछा जाता था।  'कटप्पा ने बाहुबली को क्यो मारा' पर जितने चुटकुले पिछले दो साल में बने, उतने चुटकुले पिछले कई सालों से सरदारों पर भी नहीं बने।  अगर बाहुबली द बेगिनिंग के आखिर में यह सवाल न उछाला जाता कि महाराजा अमरेंद्र बाहुबली को कटप्पा ने क्यों मारा तो दो साल तक हिंदुस्तान सिर्फ एक सवाल पर इतना सेंस ऑफ़ हुमूर रखने वाला कैसे बन पाता ! मैंने तुम्हे मारा, तभी तो इसे  जानने के लिए तमाम दर्शक हर दिन ज़्यादा से ज़्यादा बेकरार हो रहे थे।  तभी तो बाहुबली द कन्क्लूजन की बुकिंग खुलने के एक घंटे के अंदर दस लाख टिकट बिक गए।  मैंने तुम्हे इसी लिए मारा भांजे ताकि बाहुबली पहले दिन का...वीकेंड का....और पूरे हफ्ते का रिकॉर्ड तोड़े।  सबसे कम समय में सौ करोड़ और दो सौ करोड़ कमाने वाली फिल्म बन जाए।  इसी सवाल का जवाब बाहुबली को दो हजार करोड़ का ग्रॉस करने वाला बना रहा है ।  
अमरेंद्र बाहुबली मान गया - मामे ! तुम सचमुच मामा हो ! इतने सारे हिन्दुस्तानियों को मामा बना दिया।  
जय अमरेंद्र बाहुबली ! जय कटप्पा !! जय सवाल- कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा !!!
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राजेंद्र प्रसाद कांडपाल 
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मोबाइल - 09415560099 

मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

सवाल-जवाब

सवाल दस हैं
मैं अकेला
किससे पूछूं
सैकड़ों हैं
जवाब देने वाले। 

सोमवार, 10 अप्रैल 2017

पहली बार

सांझ ढले
तुम आये
और जब गये
रात हुई
पहली बार। 

सवाल

सवाल यह नहीं
कि
तब क्या होगा
लोग क्या कहेंगे
मैं क्या कहूंगा
सवाल यह है
सबसे अहम् सवाल
कि,
तुम सवाल क्या करोगे ?

विचार

जहाँ जहाँ मैं गया
निशान छोड़ता गया
जहाँ मैं नहीं गया
वहां भी पहुंचा
एक मुंह से दूसरे मुंह
एक दिमाग से दूसरे दिमाग
पहुंच गया
विचार क़ी तरह 

तुम भ्रमित !

तुम्हे दिशा भ्रम होता
तो तुम
त्रिशंकु लटके होते
अंतरिक्ष में
यह तो मतिभ्रम है
जो औंधे पड़े हो
ज़मीन पर।  

रविवार, 2 अप्रैल 2017

जब क्रोध आये तो......!

क्रोध किसे नहीं आता ! मुझे भी आता है।  आपको भी आता होगा।  क्रोध को इंग्लिश में एंगर और उर्दू में  नाराज़गी कहते हैं।  सेक्युलर अंग्रेजी बोलते हैं।  कहते हैं मुझे एंगर आ रहा है।  मैं एंग्री हूँ।  हिन्दू क्रोध करते हैं और मुसलमान तथा अन्य अल्पसंख्यक नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं।  इसी कारण से हिंदुस्तान में सभी लोग एंग्री यंग या ओल्ड/ मेन/वीमेन हैं।  इस लिहाज़ से यह भी कहा जा सकता है कि क्रोध का कोई धर्म नहीं होता।  वह किसी को भी आ सकता है।  कहीं भी आ सकता है।  लोग स्कूल-कॉलेज, सड़क, दूकान, पार्क या फिर मंदिर और मस्जिद के बाहर भी लड़ सकते हैं।  मंदिर और मस्जिद के बाहर लड़ने के लिहाज़ से एंग्री मेन दो केटेगरी में आ जाते हैं।  जो मंदिर के लिए लड़े, वह सांप्रदायिक होता है।  वह दूसरे धर्म के लोगों को चैन से नहीं रहने दे सकता।  इसे सेक्युलर कथन कह सकते हैं।  मस्जिद के लिए लड़ने वाले लोग शतप्रतिशत सेक्युलर होते हैं।  इनका समर्थन करने  वाले लोग भी सेक्युलर होते हैं।  मस्जिद के लिए की जानी वाली लड़ाई देश को  टुकड़े टुकड़े होने से रोकने के लिए लड़ी जाती है।  इसलिए यह शतप्रतिशत सेक्युलर है और जायज़ है।  इस प्रकार का एंगर कभी सांप्रदायिक व्यक्ति को नहीं आ सकता।  सेक्युलर एंग्री मेन कभी कम्युनल नहीं हो सकता।
मुद्दा यह नहीं कि किसे क्रोध आता है या किसे नहीं।  मुद्दा यह भी नहीं कि क्रोध या क्रोधी व्यक्ति सेक्युलर हैं या कम्युनल ! यह शब्द तो मौके की नज़ाकत और लोगों की सोच के अनुसार उपयोग किया जाते हैं।  मुद्दा यह है कि क्रोध आ गया तो क्या करें ? कहाँ जाये ? कैसे आये चैन ? अब फिर सेकुलरिज्म और कम्युनलिस्म का मुद्दा खड़ा हो गया।  क्रोध आने पर क्या होगा ? आदमी ज़ोर ज़ोर से चिल्लायेगा- चीखेगा।  दीवार पर हाथ दे मारेगा।  ऐसा व्यकित अहिंसा का पालन करने वाला ही हो सकता है।  ऐसा आम तौर पर, घर में लड़ाई झगड़े के दौरान ही  क्रोधी व्यक्ति अहिंसक हो सकता है। क्रोध बाहर आ जाये तो ! तब तो बहुत कुछ हो सकता है।  पार्क में बच्चों के बीच झगड़े में बच्चों को समझाने के बजाय बड़ों का बच्चों की तरह भिड़ जाना, निहायत अहमकाना और बचकाना कहा जा  सकता है।  यह हिंसक क्रोध होता है।  यानि ऐसे एंग्री मेन केवल मुंह जबानी नहीं, हाथ पांवों से भी भिड़ लेते हैं।  अब अगर क्रोध मंदिर मस्जिद को लेकर आ जाये तो दंगा हो जाता है।  यह दंगा सांप्रदायिक कहलाता है। ऐसे दंगों को कोई भी सेक्युलर या कम्युनल खिताब नहीं देता।  मगर लाशें ज़रूर गिनी जाती हैं।  फलां दंगे में कितने मरे ! इसमें से कितने मुसलमान थे या कितने हिन्दू थे।  अगर मरने वालों में मुसलमानों की संख्या ज़्यादा है तो हिन्दू खुश होगा।  अगर मरने वालों में हिन्दू ज़्यादा हैं तो मुसलमान खुद को जेहादी समझ लेगा।
बहरहाल, मेरा मकसद क्रोध नियंत्रित करने या एंगर मैनेजमेंट के बारे में जानना और बताना है।  क्रोध आता है तो क्या करें ? अलग अलग लोग, अलग अलग तरीके से एंगर मैनेजमेंट करते हैं।  कहा जाता है कि क्रोध आने लगे तो एक से दस तक गिनती गिनना शुरू करो।  क्रोध ख़त्म हो जायेगा।  लेकिन, अब यह तरीका कारगर नहीं रहा।  अब तो लोगों की गिनतियों की संख्या १०० को पार कर जाती है, क्रोध का पारा १०० डिग्री सेल्शियस पहुँच जाता है।  कुछ टीवी देखने लगते हैं। इसमें टीवी टूटने का भय बना रहता है।  कुछ टहलने बाहर निकल जाते हैं।  यह कारगर हो सकता है, लेकिन कभी पूरी रात भी बाहर गुजर सकती है।  ऐसे में सवाल उठता है कि दूसरे इंडोर उपाय क्या हैं? मैं तो भाई फेसबुक पर जाने लगा था।  वहां भड़ास निकाल दो।  मगर यह तरीका कारगर साबित नहीं हुआ।  एक तो फेसबुक पर गुस्सा दिलाने वाली ऐसी पोस्टें लगी रहती हैं कि क्रोध नियंत्रण क्या होगा ! जी करने लगता है कि लैपटॉप ज़मीन पर चकनाचूर कर दो।  ऎसी कोई पोस्ट नहीं मिली तो भी आपकी पोस्ट पर ऐसे कमैंट्स आ सकते हैं कि आप क्रोध में अपने बाल नोचने लगे।  जो लोग अपने घर को नहीं सम्हाल सकते, वह मोदी जी को देश को सम्हालने के नुस्खे बताने लगते हैं। आपको भी ऐसे ही नुस्खे देने लगते हैं।  
जब कोई बात गुजर जाए, पानी सर के ऊपर चला जाये तो समझ लेना यार कुछ गड़बड़ है।  यह सोच कर मैं अपने दास मलूका दोस्त से मिलने पहुँच गया। अमूमन समस्या समाधान के लिहाज़ से मैं दास मलूका के पास ही जाता हूँ।  इन्ही दास मलूका दोस्त के कारण मैं चाकरी और अजगर का रिलेशन  जान सका ।   नौकरी में हरामखोरी का कारण जान पाया। मैं दास मलूका की अँधेरी कोठारी में घुसा।  यकीन जानिये दास मलूका का एंगर मैनेजमेंट का फार्मूला गजब का साबित हुआ।   दास मलूका ने चरस में  डूबी  अपनी आँखों को आधा खोला ।  मुझे देख कर मुस्कुराये।  बोले, "सिगरेट  लाया है ?" मैं, सिगरेट के लिहाज़ से नितांत सूफी व्यक्ति भी, दास मलूका से मिलने के लिए जेब में सिगरेट धर कर जाता था।  मैंने सिगरेट आगे कर दी।  दास मलूका ने सिगरेट जला कर एक कश मारा और आँखे बंद किये ही पूछा, " तू बेमतलब तो मुझे सिगरेट पिला नहीं रहा होगा ?" मैं जल भुन गया। जी चाहा कि इस मलूका की दाढ़ी जला दूँ। पर एंगर मैनेजमेंट करता हुआ बोला, "नहीं, आपकी याद बहुत आ रही थी।" मलूक उवाचे, "ठीक है।  अब बता क्यों याद आ रही थी ?" मैंने अपना सवाल सामने रख दिया कि एंगर मैनेजमेंट कैसे करें!
दास मलूका ने एक लंबा कश खींचा।  फिर दो मिनट के पॉज के बाद बोले, "जब क्रोध आये तो याद कर अपनी पैदाइश को।  याद कर तेरे जन्म लेने पर तेरे माता-पिता और प्रियजन खुशियां मना रहे थे।  लेकिन तू सदा का विघ्न संतोषी चींख चींख कर रोने लगता था ।  होना तो यह चाहिए था कि तेरे माँ-बापू में से कोई तेरे कान के नीचे बजा देता।  लेकिन,  तेरे बड़े होने पर तेरी छड़ी से पिटाई करने वाले तेरे पिता बिलकुल क्रोधित नहीं थे।  वह तुझे दुलार रहे थे, 'नांय नांय लोते नई'  पुचकार रहे थे, 'बिलकुल अपनी माँ पर गया है।  चुप ही नहीं होता।' अगर उन्हें उस समय क्रोध आया होता तो तू आज सवाल पूछने के लिए बाकी नहीं होता।  इस बात को क्रोध आने पर याद कर।  एंगर मैनेजमेंट शतप्रतिशत हो जायेगा।"  
मेरे ज्ञान चक्षु खुल चुके थे।  मैंने मलूक दास की इस सीख को अखबार के लिए लेख बद्ध कर दिया। अपनी फेसबुक पेज पर डाल दिया।  सभी केटेगरी के क्रोधी, नाराज़ और एंग्री मेन लोग इस तरह एंगर मैनेजमेंट करें।

गुरुवार, 19 जनवरी 2017