शनिवार, 15 नवंबर 2014

एब्सॉल्यूट इंडिया मुंबई में दिनांक १६ नवंबर २०१४ को प्रकाशित सर्दी पर १० हाइकू


शीत पर १० हाइकू

इस जाड़े में
आँखें कहाँ खुलती
भोर देर से।
२-
उषा किरण
नन्हे की नाक लाल
इतनी ठण्ड !
३-
हवा का झोंका
नाक बह रही है
प्रकृति क्रीड़ा।
४-
सूर्य उदय
श्रमिक जा रहे हैं
रुकता कौन !
५-
बर्फ गिरती
सब सोये हुए हैं
चादर तनी।
६-
शीत का सूर्य
बच्चा आँगन खेले
अच्छा लगता।
७-
सूर्य कहाँ है
घूमने कौन जाये
दुबके सब।
८-
पत्ते पीले हैं 
बाबा भी बीमार है
क्या बचेंगे ?
९-
हो गयी शाम
खिल गए चेहरे
निशा आ गयी।
१०-
चन्द्रमा खिला
संध्या थक गयी है
गुड नाईट ।             

बुधवार, 12 नवंबर 2014

बेटी जैसी खुशी

कभी
खोई थी बेटी
ढूंढता रहा था
बेहाल
इधर उधर
जब मिली
कैसा खिल गया था
चेहरा आदमी का
ऐसे ही
खोजनी पड़ती हैं
खुशियां ! 

गुरुवार, 6 नवंबर 2014

शेष रास्ता

रास्ता
ख़त्म नहीं होता
कभी। 
दुरूह होता है
दुर्गम हो सकता है
पर मिलेगा
ज़रूर 
ढूंढो तो सही
ख़त्म होने के लिए
नहीं बनते
रास्ते

लक्ष्य के बाद भी
शेष रहते हैं
रास्ते


आगे जाने वाले
मुसाफिर के
वास्ते
वहीँ ख़त्म होते हैं
रास्ते/जहाँ
खड़ी कर दी जाती है
दीवार।
२-
पगडण्डी
और
रास्ते का फर्क
पगडण्डी पर
नहीं बनायी जा सकती
दीवार।