दोस्त,
तुम वेटिंग रूम हो
वेटिंग रूम में
यात्री आते हैं, ट्रेन की प्रतीक्षा करते हैं
और ट्रेन आने पर
खिले चेहरे के साथ चले जाते हैं
पर वेटिंग रूम
कहीं नहीं जाता
वह बैठा रहता है एक जगह
देखता रहता है एकटक
यात्रियों को और ट्रेन को
आते और जाते
पूरी भावहीनता के साथ
न तो यात्रियों के आने पर खुश होता है
न ट्रेन आने के बाद
उनके चेहरे पर बिखरी प्रसन्नता का सहभागी बनता है
वह सिमटा रहता है
जन्म के समय लिख दिये गए
अपने एकाकीपन में ।
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शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013
अरे अमेरिका !
ऐ अमेरिका
तुमने मुझे बेइज्जत किया
इसलिए कि माइ नेम इज खान!
तुम ने शाहरुख को किया
मैंने कुछ नहीं कहा
क्योंकि वह नाचता गाता है
ऐसे भांड मिरासियों की क्या इज्ज़त
पर आइ एम पॉलिटिशन खान
मेरी तिजोरी में गिरवी हैं
एक प्रदेश के करोड़ों मुसलमान
मेरे पैरों में जन्नत ढूंढा करती हैं एक पूरी सरकार
पर तुमने मेरी तलाशी ली
इसलिए कि माइ नेम इज खान !
अरे मैं तुम्हारे देश बॉम्ब फोड़ने नहीं आया था
मेरी तमन्ना थी
उस हरवर्ड को देखने की
जिसे तुम लोगों ने मोदी को देखने नहीं दिया
सचमुच उस दिन बेहद खुशी हुई थी
पर मुझे मोदी की श्रेणी में क्यों रखा
भाई जान मैं वही हूँ
जिसे मोदी ने मरवाया था
और जिसका तुम्हें बुरा लगा था।
और जिसके कारण तुम मोदी को अपने देश घुसने नहीं देते
अरे अमेरिका
कुछ तो फर्क समझों
मोदी और खान का
हिन्दू और मुसलमान का!
तुमने मुझे बेइज्जत किया
इसलिए कि माइ नेम इज खान!
तुम ने शाहरुख को किया
मैंने कुछ नहीं कहा
क्योंकि वह नाचता गाता है
ऐसे भांड मिरासियों की क्या इज्ज़त
पर आइ एम पॉलिटिशन खान
मेरी तिजोरी में गिरवी हैं
एक प्रदेश के करोड़ों मुसलमान
मेरे पैरों में जन्नत ढूंढा करती हैं एक पूरी सरकार
पर तुमने मेरी तलाशी ली
इसलिए कि माइ नेम इज खान !
अरे मैं तुम्हारे देश बॉम्ब फोड़ने नहीं आया था
मेरी तमन्ना थी
उस हरवर्ड को देखने की
जिसे तुम लोगों ने मोदी को देखने नहीं दिया
सचमुच उस दिन बेहद खुशी हुई थी
पर मुझे मोदी की श्रेणी में क्यों रखा
भाई जान मैं वही हूँ
जिसे मोदी ने मरवाया था
और जिसका तुम्हें बुरा लगा था।
और जिसके कारण तुम मोदी को अपने देश घुसने नहीं देते
अरे अमेरिका
कुछ तो फर्क समझों
मोदी और खान का
हिन्दू और मुसलमान का!
शनिवार, 20 अप्रैल 2013
पसीज रही सड़क
साहब की भारी अटैची
सर पर रखे मजदूर
आगे आगे लगभग दौड़ रहे
साहब के पीछे है
उसके साथ हैं
उसके शरीर और चेहरे से बहता पसीना
माथे से गालों तक बहती पसीने की धार
मानो सहला रही, ठंडा कर रही
उसके बदन को
साहब की कार में रखता है
मजदूर अटैची
साहब निकाल कर देते हैं
पर्स से दस रुपये
चेहरे पर हिकारत और एहसान करने के भाव
पलट कर नहीं देखते
मजदूर के चेहरे की कातरता और पसीने की बूंदे
पर ज़मीन उसके साथ हैं
उसके पसीने से पसीज कर
पिघल रही है डामर की काली सड़क।
सर पर रखे मजदूर
आगे आगे लगभग दौड़ रहे
साहब के पीछे है
उसके साथ हैं
उसके शरीर और चेहरे से बहता पसीना
माथे से गालों तक बहती पसीने की धार
मानो सहला रही, ठंडा कर रही
उसके बदन को
साहब की कार में रखता है
मजदूर अटैची
साहब निकाल कर देते हैं
पर्स से दस रुपये
चेहरे पर हिकारत और एहसान करने के भाव
पलट कर नहीं देखते
मजदूर के चेहरे की कातरता और पसीने की बूंदे
पर ज़मीन उसके साथ हैं
उसके पसीने से पसीज कर
पिघल रही है डामर की काली सड़क।
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