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जनवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ठुल चेल यानि बड़ा बेटा

मैं पैदा हुआ घर में थाली बजाई गयी, मिठाइयाँ बांटी गयीं . रिश्तेदारों क्या पूरे मोहल्ले वालों ने माँ पिताजी को बधाइयाँ दीं, मिठाइयाँ कहें. फिर मेरे बाद दो भाई और दो बहने और हुईं. माँ मुझे लोगों से मिलातीं मेरे सर पर हाथ फेरते हुए परिचय करातीं,   यह मेरा ठुल चेल यानि बड़ा बेटा है. मैं घमंड से भर जाता. मैं पढ़ने में अच्छा था हमेशा टॉप आता, भाई बहन भी टॉप करते माँ पिता कहते ठुल चेल ने शुरुआत कर दी है, सभी बच्चे टॉप करेंगे. ऐसा ही हुआ भी। मैं पढ़ लिख कर ऑफिसर बन गया. माँ पिता का सीना फूल गया, उनका ठुल चेल ऑफिसर बन गया था. उन्होने कहा, ठुल चेल ने शुरुआत कर दी है। दोनों भाई भी ऑफिसर बन गए. दोनों बहनों का विवाह  हो गया.  मैंने बड़ा घर खरीदा दोनों भाइयों ने भी अपने मकान बना लिए माँ गर्व से भर गयीं, मेरे ठुल चेल ने शुरुआत कर दी थी. इसलिए दोनों बेटों ने भी घर बना लिए। फिर हम सबकी शादियाँ हो गयीं. पत्नियाँ घर आ गयीं एक दिन पत्नी ने कहा, सुनो जी, इतनी बड़ी गृहस्थी मुझसे नहीं सम्हलती तुमने मकान ...

माँ का स्पर्श

पत्थर तोड़ने के बाद पसीने से भीगी उस औरत के सीने से चिपकना किसी फूलों भरे बगीचे का अनुभव होता था. स्नेह भरे सर और बदन पर फिरते उसके हाथ कितना कोमल अनुभव देते थे. बाजरे की सूखी रोटी उसके हाथो से कितनी मीठी लगती थी. उसकी क्रोध से भरी डांट भी अपनेपन से भरपूर थी. बुखार से पीड़ित शरीर को उसकी प्रार्थना हल्का कर देती थी. ओ माँ !!! मेरा स्वर्ग छीन कर तुम क्यूँ चली गयी?

पलायन

अकेलेपन की चाह में मैं अपनों से भागता रहा। पर बावजूद इसके मेरे साया मेरे साथ था। मैं जितना भागता वह उतना तेज़ मेरे पीछे होता। इस से घबराकर में अंधेरे में घुस गया। कुछ देर बाद जब निकला तो न साथ अपने थे, न साया साथ था न उजाला ही रहा।

अधूरी माँ

माँ जब पिता पर ज्यादा ध्यान देतीं, उनकी सेवा करती, हमसे पहले उन्हें खाना देती, मैं माँ से नाराज़ हो जाया करता था कि, वह पिता को हमसे ज्यादा, अपने जनों से ज्यादा चाहती हैं, प्यार करती हैं. आज जब मेरे बच्चों की माँ मेरी ओर ज्यादा ध्यान देती है, मेरी सेवा करती है, बच्चों से पहले खाना देती है, तो बच्चे उससे नाराज़ हो जाते हैं कि, वह अपने जनों से ज्यादा मुझे प्यार करती है. आजकल के बच्चे मेरी तरह चुप रहने वाले नहीं एक दिन बेटे ने यह कह ही दिया. मैं उससे कहना चाहता था- बेटा, हमें अपनी देखभाल खुद ही करनी है, तुम्हारी माँ को मेरी और मुझे तुम्हारी माँ की सेवा करनी है. जबकि, तुम्हारी देखभाल करने को हम दोनों हैं. मैंने एक के न होने का फर्क देखा है. पिता मर गए, मुझे मिलने वाला प्यार आधा हो गया, सर पर हाथ फेरने वाला पिता का हाथ नहीं रहा. माँ को ही सब कुछ करना पड़ता था. मैंने देखा था मेरे बीमार होने पर रात रात देख भाल करतीं, थपक कर सुलाती अपनी माँ को. मैंने नज़रें बचा कर देखा है बेटा माँ को खुद के सर पर बाम लगाते हुए, अपने थके पैरों को मसलते हुए, बुखार...

विकास

मुझे मालूम नहीं था कि, विकास की आंधी ऐसी होती है जिसमे वन काट दिये जाते हैं, हरियाली खत्म हो जाती है। वनों में शांत विचरने वाला सिंह विकास के अभ्यारण्य में आकर आदमखोर हो जाता है और मार दिया जाता है। ऐसे कंक्रीट के जंगल में इंसान इंसान नहीं रहता भेड़िया बन जाता है।

वसंत

मैं आजतक नहीं समझ पाया, कि, वसंत ऐसा क्यूँ होता है? उसके आने से पहले पेड़ पर पत्ते सूख जाते हैं, अपनी साखों से झड़ जाते हैं। फिर मादक वसंत आता है, हरे पत्तों, सुंदर सुंदर पुष्पों और चारों ओर हरियाली के साथ जग को हर्षाता है, मन गुदगुदाता है। मगर ऐसा क्यूँ होता है कि, उसके जाने के बाद ग्रीष्म ऋतु आती है क्रोधित सूरज आग उगलने लगता  है वनस्पति, जीव और जन्तु कुम्हला जाते हैं, व्याकुल हो जाते हैं। हे प्रकृति ! वासंतिक सौंदर्य का यह कैसा प्रारंभ यह कैसा अंत।

बूढ़ी

टिमटिमाती लालटेन की रोशनी एक बूढी औरत लालटेन की रोशनी की तरह खाना बना रही अपने, पति और बच्चों के लिए . मंद प्रकाश के कारण, खदबदाती भदेली में झांकती जाती है कि खाना कितना पका. रोटी बनाते समय हाथ जल जल जाते हैं क्यूंकि काले तवे और अन्धकार में फर्क कहाँ सब आते हैं, खाना खाते हैं बूढ़ी भी खाना  खाती है बर्तन और चौका साफ़ कर सहेज देती है सभी सो गए हैं लालटेन की रोशनी धप्प धप्प कर रही है और बूढ़ी की नींद में डूबी पलकें भी, रात के अँधेरे में ग़ुम हो जाने के लिए .

पतझड़

दरवाज़े पर खडखडाहट हुई किसी के आने की आहट हुई मैंने दरवाज़ा खोला बिखरे सूखे पत्तों के साथ पतझड़ खड़ा था. मेरे मुंह से अनायास निकल गया- आहा, पतझड़ आ गया. यकायक पतझड़ खड़ खड़ाया उदास स्वर में बोला- मैं पिछले एक महीने से पीले पत्तों सा बिखरा घर घर जा रहा हूँ मुझे देखते ही हर मनुष्य भयभीत हो जाता है दरवाज़ा क्या खिडकी भी बंद कर लेता है केवल तुम हो जो प्रसन्न हो. मैंने कहा- तुम संदेशवाहक हो, तुम शरीर की नश्वरता के प्रतीक हो कि ऊंचे पेड़ों की डाल पर चढ़े पत्तों को भी पीला हो कर बिखर जाना है धरा में गिर कर मिटटी में मिल जाना है. लेकिन तुम वसंत के आने का सन्देश भी लाते हो तुम जाओगे तो वसंत आएगा. नए नए पत्ते हरियाली बिखेरेंगे और फूल खिल कर रंग बिखेरेंगे तुम तो जीवन के प्रतीक वसंत के संदेशवाहक हो. इसलिए मैं तुम्हे देख कर भयभीत नहीं. आओ पतझड़ आओ!!!

बड़ा साँप

एक आदमी को साँप ने काट लिया क्रोधित आदमी ने पलट कर साँप को काट लिया और फिर चमत्कार हुआ जब आदमी के काटने से साँप मर गया आज आदमी ज़िंदा है आदमी  जिसे काटता है वह मर जाता है। सबसे बड़ा साँप बन गया है आज आदमी।

राहगीर

राहगीर जब चलने लगा तो रास्ते ने उस से पूछा- मित्र, मैं तुम्हारा साथ देता हूँ तुम्हे राह दिखाता हूँ और तुम हो कि मुझे छोड़ कर जा रहे हो क्यूँ मेरा साथ नहीं देते? क्यूँ हम साथ साथ नहीं रहते? राहगीर ने कहा- तुम मेरे पथ प्रदर्शक हो मुझे लक्ष्य तक पहुंचना है मैं तुम पर चल कर अपने लक्ष्य पर पहुंचूंगा इसलिए मुझे तो जाना ही होगा लेकिन, तुम अकेले कहाँ हो? अभी और राहगीर हैं जो आएंगे, तुमसे रास्ता पाएंगे आगे बढ़ने का. तुम अगर मेरे साथ चलोगे तो बेशक मैं राह पा जाऊँगा अपनी मंजिल तक पहुँच जाऊंगा लेकिन, बाक़ी का क्या होगा? उन्हें रास्ता दिखाना और मंजिल तक पहुंचाना है तुम्हे इसे तुम तभी कर सकते हो जब तुम यही रहो मेरे साथ चल कर तो तुम राह नहीं राहगीर बन जाओगे ऐसे में मार्गदर्शन के बिना खुद तुम भी भटक जाओगे .

पियक्कड़

मेरे पियक्कड़ मित्र तुम मुझे नशे में चूर झूमते, लड़खड़ाते, बहकते और गाली बकते अच्छे लगते हो. अच्छे लगते हो, लड़खड़ा कर गिरते किसी नाले या गड्ढे में और फिर निकलते यह बडबडाते हुए - अरे, यह गड्ढा कहाँ से आ गया ? मुझे अच्छा लगता है क्यूंकि, तुम सत्ता या दौलत के नशे में नहीं झूम रहे तुम किसी कमज़ोर को गाली नहीं बक रहे अपने लड़खड़ाते क़दमों के नीचे रौंद नहीं रहे तुम अनायास आये गड्ढे में गिरने के बावजूद उनसे अच्छे हो जो मदमस्त होकर कुछ इस तरह गिरते हैं कि फिर उठ नहीं पाते अपने बनाए खड्ड में गिरकर निकल नहीं पाते.