बुधवार, 25 दिसंबर 2013

कुर्सी

वह खड़े थे
मेरी मुखालफत में
मैंने कुर्सी दी
वह बैठ गए.
२-
कुर्सी में
वह सिफत है यारों
बेपेंदी के लोटे भी
लुढक लेते है.
३-
कुर्सी  के
चार पाएं होते हैं
तभी तो
अच्छा खासा लीडर
लोमड़ी बन जाता है.
४- 
काम करने के लिए
होती है कुर्सी
मैंने
गद्दी लगा ली
और राज करने लगा
५-
कुर्सी
लकड़ी की होती है
तभी
पत्थर दिल
बैठ पाता  है
६-
'आप' को
कुर्सी मिली
'मैं' बैठ गया.


मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

खिड़की वाले सांता

बच्चे ने
माँ से कहा-
सांता क्लॉज़ आये
चले गए
हैप्पी न्यू इयर
आने वाले हैं
माँ
यह कौन लोग है
जिनके आने से
सामने का घर रोशन रहता है
हमारे यहाँ अँधेरा
माँ बोली-
यह बड़ों के बड़े लोग है
सांता का छोटा भाई
हैप्पी न्यू इयर है
जहाँ सांता जाता है
वहीँ हैप्पी भी
खुशियों का उपहार देने
सांता को चाहिए
एक अदद खिड़की
उपहार उड़ेलने के लिए
पर हमारे पास
छत तक नहीं.
इसलिए
सांता और हैप्पी
खिड़कियों वाले घर ही जाते हैं. 

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

सर्दी में

सर्दी में जो लोग
कुछ नहीं पहनते
वह जाडा खाते हैं
लेकिन,
जो कपडे नहीं पहन पाते
जाड़ा उन्हें खा जाता है.
देखा,
सर्दी भी
कपड़ों का फर्क समझती है!          

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

जीवन

आँख खुली
भाव चेहरे पर आये
शब्द कुनमुनाए
आह ! सुबह हो गयी !!!
२-
हवा
चेहरा छूती
बदन सहलाती
बढ़ जाती
आगे
कहीं बहुत दूर
मुझसे
३-
सूरज निकला
चिड़ियाँ बोली
पहले एक इंसान ने
आँखें खोली
फिर दूसरे, तीसरे और...
जीवन जाग गया.
४-
ट्रेन
बस
जहाज
मनुष्य चलाता हा
मनुष्य बैठता है
तब
क्यों नहीं यह तीनों इंसान
क्योंकि, इनसे
मनुष्य  उतर जाता है .
५-
आदमी
आता है
आदमी
जाता है
जाने के बाद
फिर वापस आता है
तभी तो
एक मकान
घर बन जाता है.

तीन खिलौने

खिलौना
टूट गया
पर खेला कौन !
२-
खिलौना
आदमी की तरह
मिटटी का होता है
मिटटी में मिल जाता है .
३-
बेटी रो रही थी
मुझे याद आया
कभी मेरे हाथों से छूट कर
खिलौना टूट गया था
मैं इसी तरह
फूट फूट कर रो रहा था
मैंने बेटी को खिलौना ला दिया
बेटी मुस्कुरा पड़ी
पर मेरी आँखे गीली थीं
क्योंकि,
मुझे किसी ने
खिलौना नहीं दिया था.

पांच क्षणिकाएं

१-
प्रीतम
मेरे वियोग के
दिन गिनना
पर
दिन मत गिनना.
२-
मुझे
जब तुम मिले
मैं मिल लिया
खुद से.
३-
ओह
सड़क
इतनी खामोश क्यों है
सवेरा !
४-
दो प्रकार की होती है
भूख
दो लोगों की
मिटाती है
और मिटती है .
५-
हर झुकी आँख
शर्म नहीं होती
कुछ लोग
आँख नहीं मिलाते .

पांच हाइकू

ठंडी  हवाएं
उनकी आहट है
कानों को लगी.
२-
पीला सूरज
थके हुए चेहरे
शाम वापसी .
३-
पेट की भूख
सूखे पड़े हैं खेत
अनाज कहाँ .
४-
पिया न आये
मुंडेर पर कौव्वा
प्रतीक्षा ख़त्म .
५-
दरवाज़ा खुला
प्राण निकल गए
डॉक्टर आया.

गुरुवार, 14 नवंबर 2013

चाचा नेहरु

आटे का दूध पीता 
चावल का माड़ गटकता 
बासी रोटी को
ताज़ी के अंदाज़ में चबाता 

कोई न कोई बच्चा
आज यह ज़रूर पूछेगा-
माँ,
हमारे चाचा क्या करते थे !
तब माँ कहेगी-
बेटा, वह देश चलाते थे
दुनिया को शांति का सन्देश देते थे
उन्होंने ही
दुनिया को शीत युद्ध से बचाया
गुट निरपेक्षता का सन्देश दिया
वह लालों के लाल थे
जवाहर लाल थे .
तब क्या
बेटा यह न पूछेगा कि
माँ...मेरी प्यारी माँ
चाचा देश चलाते थे,
पिता जी रिक्शा क्यों चलाते हैं
उन्होंने दुनिया को शांति का सन्देश दिया
हमें रोटी क्यों नहीं दे सके
दुनिया को गुट निरपेक्षता की
अहमियत बताने वाले चाचा
देश में गरीब और गरीबी की
अहमियत क्यों नहीं समझे
उन्होंने दुनिया को शीत युद्ध से बचाया
हमें शीत से युद्ध करने के लिए क्यों छोड़ दिया
वह लालों के लाल जवाहर लाल थे
तो पिता कंगाल क्यों थे
क्या कहेगी माँ !









गुरुवार, 7 नवंबर 2013

पत्थर

रास्ते में पडा
एक पत्थर
रूकावट और ठोकर
या
पूजा
गढ़ कर ईश्वर
२-
पत्थर
खुद नहीं लगता
उठ कर ज़मीन से
एकाधिक हाथ
उसे फेंकते हैं सामने
यह भूलते हुए कि,
पत्थर
वापस आ सकते हैं.
३-
ईश्वर
हो सकता है
पत्थर
और पत्थर
हो सकता है
ईश्वर
तब
क्यों खाता है
पत्थर
ठोकर.
४-
पाँव
मनुष्य के
मारते हैं  ठोकर
हाथ
मनुष्य के
उठाते हैं
पत्थर
और
बना देते हैं भगवान्
इतना अंतर क्यों है?
एक ही मनुष्य के
पैर और हाथ में.
५-

नदी ने
पत्थर को
इधर उधर लुढ़काया
लेनी चाही परीक्षा
उसकी सहनशक्ति की
सहनशील पत्थर
शिव बन गया
आज
चढ़ाया जा रहा है जल
उसी नदी का.




बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

प्रकृति और मनुष्य

मैं कितना गहरा हूँ
नापने चले वह
थाह पाने के जूनून में
डूबते चले गए.
२-
समुद्र
अगर उथला होता
किनारों से
टकराए बिना
सोता रहता
३-
हवा
ठंडी थी
सिहरा गयी
मैंने
थोड़ी भींच ली
मुट्ठी के साथ
जेब में.
४-
आसन नहीं
अँधेरे को रोकना
जब
खुद उजाला
मुंह छिपाए.
५-
चन्द्रमा
और सूरज
दुनिया के चौकीदार
बारी बारी
जगह लेते
सुलाने और जगाने के लिए
दुनिया को.

गुरुवार, 24 अक्तूबर 2013

खंडहर

आओ दोस्तों !
सोते हैं
इस खंडहर में
देखते हैं
सपने
कि,
इमारत
कभी बुलंद थी.
२-
खंडहर
विरासत नहीं होते
यह प्रतीक होते है
कि, हमने
फिक्र नहीं की
कभी
विरासत की .
३-
खंडहर
कहर नहीं
किसी आक्रान्ता के
गवाह नहीं
किसी अत्याचार के
व्यतीत नहीं
किसी खुशहाली के
यह सन्देश हैं
कि,
आओ
फिर से करें
पुनर्निर्माण .
गवाह बना कर
इस खंडहर को.

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

बाबाओं को सोना चाहिए

बाबाओं को सोना चाहिए
सोयेंगे तो दो बाते होयेंगी
बाबा अगर सोयेंगे
तो स्वप्न देखेंगे
स्वप्न में खजाना देखेंगे
खजाने से देश
मालामाल हो या न हो
सरकार मालामाल होगी
सरकार मालामाल होगी
तो नेता और ऑफिसर
घूस बटोरने के विकास कार्यक्रम चला पायेंगे
इस प्रकार वह मालामाल होंगे.
लेकिन दोस्तों
मुझे नेताओं-अफसरों का खैरख्वाह न समझो
मैं खैरख्वाह हूँ
इस देश की जनता का
जनता की माँ बहनों का
बाबा सोयेंगे
तो न प्रवचन करेंगे
न मौका लगते ही आसाराम बनेंगे.

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2013

मेरी माँ तुम्हारी माँ

मेरी माँ
बीमार है.
बीमार
तुम्हारी माँ भी होगी.
पर मेरी माँ माँ है
मेरी माँ के सामने
तुम्हारी माँ की क्या बिसात
मेरी माँ ने दिया है मुझे
ऐश और शोहरत
बैठे ठाले की सत्ता
तुम्हारी माँ ने
तुम्हे क्या दिया!
गरीबी और रुसवाई
मुफलिसी और भूख
जबकि,
मेरी माँ ने
तुम्हे भी दिया है
सब्सिडी पर फ़ूड.

बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

आंसू

आज अभी निकाल दिया दिल से अपने मुझ को
एक पल न सोचा कि अँधेरा हो जायेगा दिल में.
शांत झील में कंकड़ फेंक कर खुश हो जाते तुम,
भूल जाते कि कंकडों को डूबने का दुःख होता है.
३ 
जो हंसते नहीं उन्हें मुर्दा दिल न समझो,
न जाने कितनी रुसवाइयां झेलीं हैं उन ने.
कुरेद कुरेद कर दिल के घाव तुम तो
नेल पोलिश का बिज़नस कर रहे हो.
मेरी ईमानदारी को तराजू पर मत तौलो
ज़मीर के बटखरे ही इसे तौल पाएंगे.
मेरे आंसुओं को इतना तवज्जो मत देना
नज़र-ए-बीमारी का सबब है कि बहती हैं.


दीवाली

नहीं चांदनी
घनी रात में
दीपों का उजियारा.
टिम टिम टिम
दीपक चमके
अन्धकार का
सीना छल के
भागा दूर
घना अंधियारा . 
दीप जलाएं
खील उड़ायें
धूम पटाखे की
मच जाए
फुलझड़ियों से 
झरा उजियारा.
आओ आओ
रामू भैया
ठेल गरीबी
खील खिलैया
खा कर हर्षो
जग प्यारा.

सोमवार, 14 अक्तूबर 2013

रावण का पुतला

रावण !
तने क्यों खड़े हो
घमंड भरी मुद्रा में
जलने के लिए तैयार
जल जाओगे
क्या फायदा होगा

धुंवा और कालिख बन कर
घुल जाओगे हवा में
मिल जाओगे धूल में
इकठ्ठा लोग
चले जायेंगे
तुम्हारी राख रौंदते हुए
क्या फायदा होगा !
आओ
मुझ में समा जाओ
मेरे ख़ून में घुल जाओ
मैं पालूंगा तुम्हे
अगले साल तक
फिर से
खड़ा कर दूंगा
जलने के लिए
पुतले के रूप में .

राजनीति

सत्ता
शराब नहीं पीती
घमंड नहीं करती
क्योंकि, सत्ता
खुद शराब है
चढ़ कर बोलती है
सर पर
घमंड से .

२-
नेता
बनाते हैं मोर्चा
और देश को
लगाते हैं
मोरचा .

३-
गांठों के समूह के
मिलने को
कहते हैं
गठबंधन.

४-
कई पतियों से
तलाक ले चुकी
वामा
यानि
वाम पंथी .

५.
सेक्युलर
बिना पैजामे का
नाड़ा .

मेला- पांच भाव

मेले में
भगदड़ मची
मरने लगे लोग
अधिकारी
गिनने लगे
मरे हुए लोग
और लगाने लगे हिसाब
मुआवज़े के लिए बनने वाली
और फिर 
मिलने वाली रकम का.

२-
मेले में
माँ के हाथ से
बेटे का हाथ छूट गया
दोनों ढूढ़ रहे थे
एक दूसरे को
माँ सोच रही थी
बेटा बिछड़ गया
बेटा रो रहा था
मैं खो गया .

३-
मेले में
आदमी अकेला
उसे
वापस जाना है
अकेला ही.

४-
जब
जुट जाते हैं
बहुत से अकेले
तो
बन जाता है
मेला.

५-
अपनों के
परायों के मिलने
और फिर
बिछुड़ जाने को
कहते हैं
मेला . 


शनिवार, 12 अक्तूबर 2013

समुद्र- पांच क्षण

छलक आईं
मेरी ऑंखें
समुद्र के किनारे
पास चला आया
समुद्र
मुझे समझाने .

२-
याद आ गया
गुज़रा ज़माना
आ गया
समुद्र में
ज्वार.

३-
नीला समुद्र
भूरा आसमान
मेरे पास
और आसमान पर
चाँद
ज्वार आ गया.

४-
रूठी
चली गयी

रेत की तरह
फिसल गयी

५-
मैं बैठा रहा
समुद्र के किनारे
तुमने डुबकी लगाई
तुम मोती ढूंढ लाये
मैं खारा हो चला .


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

निरंकुश कलम

कुछ  लोग
कुछ भी लिख डालते है
बिन सोचे विचारे
क्योंकी,
उनके हाथ  में  कलम है
वह  इसका
 जैसा भी चाहे इस्तेमाल कर सकते है
नही  सोचते कि,
निरंकुश कलम
तलवार को मौका देती है
काट ने  का गरदनो के साथ
निरंकुश हाथ भी.

गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

समंदर

बहुत थोड़ा जीवन है, आशाओं का समंदर
छोटी सी नौका है, तूफान का है मंजर ।
छोड़ के चल देते हैं, सवार इतने सारे
पार वही लगता है इंसान जो सिकंदर।
राजेंद्र कांडपाल
03 अक्टूबर 2013 
Bahut Thoda Jeewan hai, aashaaon ka samandar,
chhoti sii nauka hai, toofan ka hai manjar.
chhod ke chal dete hain, sawaar itane saare,
paar wahii lagata hai insaan jo sikandar.
Rajendra Kandpal
03 October 2013

बुधवार, 2 अक्तूबर 2013

नेता जी

नेता जी,
कल जब आप
जेल में होंगे
फटे मैले कंबल के बिस्तर पर
लेटे होंगे।
आम हिन्दुस्तानी की तरह
तालियाँ बजाते हुए
मच्छर मारते
आपकी रात गुजरेगी
खटमलों के आक्रमणों से
आपकी कोमल त्वचा
आपको घायल लगेगी ।
पतली दाल,
घास फूस से बनी सब्जी
और रोटी
दलिया और चाय का नाश्ता
आपको देगा
जनता का वास्ता
जिन्होने कभी आप के लिए
ऐसे ही तालियाँ मारी थीं
और बदले में आपने !
छीना था उनका नाश्ता
मच्छरों और खटमलों की तरह
चूसा था उनका खून
आज शायद आप
इसे समझ पाये हों कि
आपके भ्रष्टाचार ने
देश को बना दिया है
आपको मिली
जेल से ज़्यादा
गंदी, भ्रष्ट और नारकीय जेल 
इसलिए
हे नेताजी
आप इसी जेल में रहना
बाहर न आना
देश को अब और
नरक नहीं बनाना  !

http://mail-attachment.googleusercontent.com/attachment/?ui=2&ik=136e54ebdd&view=att&th=141a774765465de5&attid=0.1&disp=inline&realattid=f_hmndr7lj0&safe=1&zw&saduie=AG9B_P83I_uKDyjMONkv8T_YiKvK&sadet=1381498447909&sads=_fk0oBxhGtjWSy-MeVb8Kj0gh_Q

बुधवार, 25 सितंबर 2013

अनुभूति २० मई २०१३


मैने नीम से पूछा
 

 
मैंने नीम से पूछा-
तू इतनी कड़वी क्यों है?
जबकि, तू
सेहत के लिए फायदेमंद है।
नीम झूमते हुए बोली-
अगर मैं कड़वी न होती
तो, तुझे
कैसे मालूम पड़ता
कि कड़वेपन के कारण
सेहतमंद नीम की भी
कैसे थू थू होती है.

-राजेन्द्र कांडपाल
२० मई २०
१३

अनुभूति 17 june 2013

गंगा- कुछ क्षणिकाएँ
 




गंग जमुन की बहती धार
प्यास बुझाए
खेत हजार
अन्न लहलहाए
सींचे धरती बारम्बार

-मंजुल भटनागर



खिल खिल करती
मचलती, खेलती
आह्लादित उर्मियों को
अपने सीने पर
बच्ची सी चढ़ाये, चिपकाए
मस्ती में झूमती, इठलाती
बहने वाली गंगा
खो गयी है
जाने कहाँ ?

-अनिल कुमार मिश्र



गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।

-राजेंद्र कांडपाल



इस देश की बुद्धिमत्ता
कुम्भकर्ण की नीद सो रही है
उसे पता ही नहीं
कि गंगा बीमार हो रही है

-त्रिलोक सिंह ठकुरेला
१७ जून २०१३

शनिवार, 7 सितंबर 2013

खामोशी

 जहां लोग
आपस में नहीं बोलते
वहाँ,
खामोशी बोलती है
चीखती हुई
इतनी, कि
कान बहरे हो जाते हैं
कुछ सुनाई नहीं पड़ता।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

जन्म लो कृष्ण !!!

हे कृष्ण !
जब तुम जन्म लेना
तब
मथुरा वृन्दावन तक न रहना
बाल रूप में
गरीबों की झोपड़ी में जाना
गंदी बस्ती में रहना और खाना
जहाँ
बच्चे माखन खाना तो दूर
उसका नाम तक नहीं जानते
रंग कैसा होता होगा
नहीं पहचानते
बड़े होकर
कंस का वध करने
केवल मथुरा न जाना
महंगाई, भ्रष्टाचार
अन्याय और अनाचार के कंस
सड़क से संसद तक हैं
नाश करने के लिए उनका
धर्म की हानि की
प्रतीक्षा मत करना
धर्म शेष ही कहाँ है !
तुमने
शिक्षा देने के लिए
नग्न नहाती गोपिकाओं के वस्त्र हरे थे
पर द्रौपदी की लाज भी बचाई थी
आज नकली कृष्ण बने लोग
वस्त्र हरण कर रहे हैं
और शकुनि बने द्रौपदी का
चीर हरण कर रहे हैं
तुमने बजाई होगी
सुख और शांति के लिए बांसुरी
 मगर आज
जनता परेशां, बदहाल और भूखी है
राजा बजा रहे हैं
चैन की बांसुरी
क्या  इस बार तुम आओगे
इस भारत को
कुरुक्षेत्र बनाओगे !
आ जाओ कृष्ण
जन्म लो कृष्ण
जन्म लो गीता के कृष्ण !!!!
रच दो एक और महाभारत
बना दो देश को
मेरा भारत महान !




 

रविवार, 18 अगस्त 2013

हाथ - पांच क्षण

किसी के मरने पर लोग 
चाकू को दोष  देते हैं
उसकी धार कुंद कर देते हैं
लेकिन, हाथ !
वह सदा हमारे साथ.   

२ )
बनाने के लिए
घरौंदा
जुटते हैं दोनों हाथ
गिराने के लिए
घरौंदा
काफी है एक ही हाथ  .

३)
चढते सूरज को
जोड़ते हैं दोनों हाथ
जलने से
कौन नहीं डरता

४)
माता पिता
दामाद को
थमा देते हैं
बेटी का हाथ
फिर नहीं देते
बेटी का साथ। 

५)
पौंधा रोपने के लिए
हाथ सहेजते हैं
पौंधे को
पेड़ काटने के लिए
हाथ पकड़ते हैं
कुल्हाड़ी को !

शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

सान

कातिलों के बाजुओं की फिक्र नहीं मुझे,
हथियारों में उनके इतनी सान नहीं होती है।
डर लगता है उन बददुआओं के नश्तरों से मुझे
जिन बेबसों की कोई जुबान नहीं होती है।

पांच क्षणिकाएं

किसी ने देखा नहीं
कोई देखता भी नहीं
लेकिन देखो तो
तुम्हारी चौपाल में
कैसे कैसे लोग
कैसे कैसे फैसले लेते हैं
लोकतंत्र हत्यारे
अपराधियों को बचाते हैं
खुद को लोक सभा कहते हैं.

(२)
सेनाएं
कभी नहीं हारतीं
हारते हैं वह लोग
जो डरते हैं
मौत से। 

(३)
प्रधानमंत्री ने
आज़ाद कर दिया
रस्सी खींच कर
हवा में
झंडे को। 

(४)
मांसाहारी होते हैं
वो
जो लोगों को
समझते हैं
भेड़ बकरी।

(5)
आम तौर पर
मरते हुए लोग
आँख खोल कर
इसलिए नहीं मरते, कि,
उन्हे मोह है रहता है
इस दुनिया का !
बल्कि,
खुली रहती है उनकी आँखें
इस आश्चर्य में कि
इतने सारे लोग
 फिर भी ज़िंदा रहेंगे।

जो शाम निकले थे सुबह की किरण ढूँढने
रात सो कर सुबह के उजाले में खो गए।

जिन्होंने जलाये रात जाग जाग कर सूरज
हजारों ख्वाबों हो गये. 

 

सोमवार, 29 जुलाई 2013

मूंछ नहीं पूंछ

अफसोस !
मेरे एक पूंछ नहीं
मूंछ है
पूंछ होती तो हिला लेता
भ्रष्टाचार के महाकुंभ में
कुछ कमा लेता
मूंछ मूंछ होती है
आज के जमाने में
पूछ नहीं होती है
तभी तो
तमाम मूंछ वाले
मूंछे कटा कर
दुम बना कर
सत्ता के आगे पीछे
हिला रहे हैं
भ्रष्टाचार के कुम्भ में जा कर
पाप नाशनी गंगा में नहा कर
हर हर चिल्ला रहे हैं
जनता की कमाई हर कर 
खूब कमा रहे हैं। 

 

शनिवार, 13 जुलाई 2013

कुत्ते की मौत पर

मेरी गाड़ी से कुचल कर
एक कुत्ता मर गया
मैं दुखी था
कुत्ते की मौत पर
मगर  दुखी नहीं हो सकता था
क्योंकि,
मेरे मोहल्ले में
सभी धर्मों
और उनके अंदर
जातियों के लोग रहते हैं
और सेकुलर भी।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

माँ का चैन

बच्चों के स्कूल खुल गए हैं,
माँ सुबह उठ कर
जल्दी कुल्ला मंजन कर
चौके में घुस गयी है
वह नाश्ता बनाती,
टिफ़िन पैक करती है
फिर
बच्चों को ड्रेस पहना कर
टिफिन बस्ते में ठूंस देती है
बच्चे
माँ के गालों को चूम कर
चिल्लाते हुए टाटा टाटा कह कर
चले जाते हैं
माँ पसीना पोंछती हुई
सोफ़े पर बैठती है
और ज़ोर से चैन की सांस लेती है ।
बच्चों के जाने के बाद
माँ क्यों लेती है
चैन की सांस !     

रविवार, 30 जून 2013

माँ का व्रत

माँ हमेशा व्रत रखतीं
कभी पति के लिए
कभी लड़का पैदा होने के लिए
कभी संतान की मंगलकामना के लिए
तो कभी घर की खुशहाली के लिए
मैं सोचता-
माँ अपने लिए व्रत क्यों नहीं रखती
हम लोगों के लिए व्रत रखने वाली
हमे भरपेट खिला कर
आधा अधूरा खा कर
रह जाने वाली माँ
व्रत ही तो रखती थी!

शुक्रवार, 28 जून 2013

नियंत्रण

सुबह सुबह
घड़ी ने
चीखते हुए कहा-
उठो उठो, शायद तुम्हें कहीं जाना है।
आज
उसकी चीख से झल्लाया हुआ मैं बोला-
ऐ घड़ी, तू मशीन होकर
मुझे निर्देश देगी!
घड़ी बोली-
तुमने
खुद ही तो सौंपा है
अपना नियंत्रण मुझे।

मंगलवार, 18 जून 2013

भूकंप

इस शहर में
जब आता है भूकंप
निकल आते हैं लोग
अपने अपने घरों से
कुछ लोग इधर
तो काफी लोग उधर
भाग रहे होते हैं
मगर भगदड़ नहीं होती यह
क्योंकि लोग
लूटने जा रहे होते हैं
एक टूटी दुकान का सामान
और ले जा रहे होते हैं
सुरक्षित अपने ठिकाने में।
तब कुछ ज़्यादा
काँप रही होती है धरती
भूकंप के बाद।

रोक न सकूँगा

प्रियतमा!
उदास मत हो
मेघ
कुछ ज़्यादा घुमड़ आते हैं।
बहाने लगते हैं
भावनाओं के सैलाब
नियंत्रण का बांध
तोड़ जाते हैं।
नहीं रोक सकूँगा
तुम्हें बाहों में
बह जाऊंगा
तुम्हारे साथ
गहराई तक
तुम्हारी रिमझिम
आँखों में।
फिर जाऊंगा कैसे
तुम्हारे अंतस में
तुम्हें यूं उदास छोड़ कर
रोक न सकूँगा खुद को
तुम्हारे साथ रोने से
इस बारिश की तरह।

बरसता पसीना

रुक गयी बारिश
पर बरस रहा मैं
अपने चू रहे घर की
दरार को भरने में
हो कर
पसीना पसीना।

शनिवार, 15 जून 2013

बारिश में नाव

याद आ गया बचपन
भीग गया तन मन
बारिश  में।
बादलों की तरह
घर से निकल आना
मेघ गर्जना संग
चीखना चिल्लाना
नंगे बदन सा मन
भीग गया
बारिश में।
कागज़ की नाव का
नाले में इतराना
दूर तलक हम सबका
बहते चले जाना
अब तो बाल्कनी से
देखते हैं
बारिश में।
अपनी नाव के संग
दौड़ हम लगाते
डूबे किसी की  नाव
सभी खुश हो जाते
कहाँ दोस्त, नाव कहाँ
अकेले खड़े हम
बारिश में।






किसान

मिट्टी को गोड़ कर
घास को तोड़ कर
खेत बनाता है
किसान।
खाद को मिलाता है
खेत को निराता है
श्रम का पसीना
इसमे बहाता है
बीज का रोपण  कर
पौंध बनाता है
किसान।
सुबह उठ जाता है
खेतों पर जाता है
श्रम उसका फल जाये
मन्नत मनाता है
पौंधा खिलने के साथ
खुश हो जाता है
किसान।
श्रम का प्रतीक है
जीवन का गीत है
आस्थाओं से अधिक
पौरुष का मीत  है
हर कौर के साथ
याद हमे आता है
किसान।


गुरुवार, 13 जून 2013

चुभन

कांटे अगर फूल होते
धूप से मुरझा जाते,
तेज़ हवा से बिखर जाते
ज़मीन पर गिर कर
पैरों की ठोकर पाते
पर/कांटे-
पूरी बहादुरी से
धूप और हवा का मुकाबला करते हैं
मुरझाते नहीं
कभी ज़मीन पर नहीं गिरते/मसले नहीं जाते
 लेकिन, इसके बावजूद 
बहादूरों की प्रेरणा  कांटे
बदनाम हैं
क्योंकि,
वह चुभते हैं।

शनिवार, 8 जून 2013

गंगा, मेरी माँ!

माँ
और गंगा जल
समाता है
जिनकी गोद में
आदमी।

2
गंगा
और माँ
एक पवित्र
दूसरी पतिव्रता।

3
गंगा माँ
और माँ
सब याद करें
दुख में।

4
माँ कहाँ
गंगा में प्रदूषण
सबने कहा
गंगा मर गयी।

5
गंगा
और माँ
जीवनदायनी।

6
हिमालय से निकली गंगा
शिव ने समेटा
घर से विदा हुई माँ
पति ने स्वीकारा
फिर दोनों ने छोड़ दिया
बच्चों के पालन के लिए।

7
गंगा है
माँ की माँ
तभी तो
समा जाती है
गंगा की गोद में
एक दिन माँ भी।

8
गंगा और माँ में अंतर
एक में फेंकते हैं कचरा
दूसरी को समझते हैं
कचरा ।

9
गंगा सूख रही है
माँ मर गयी है
हम कह रहे हैं
कहाँ हो माँ!

10
जहां गंगा बहती है
जहां माँ रहती है
वहीं बसता है
जीवन।











उन्हे टूटना होता है

जो फसलें
हरी होती हैं
उन्हे पकना होता है
जो पक जाती हैं
उन्हे कटना होता है
बिना फलों का पेड़
तना होता है
फलदार पेड़ों को
झुकना होता है।
खासियत इसमे नहीं
कि आप
हरे हैं या तने हैं
जो दूसरों के काम आए
उसे मिटना होता है।
जो खामोश रहते हैं
वह बुत होते हैं
वक़्त बीतते ही
उन्हे टूटना होता है।

गुरुवार, 6 जून 2013

बरसना

मेघों ने चाहा था
धरती पर बरसना
पर
पानी बन कर
बह गए।

2
बचपन में
जब मैं गिरता था
माँ की आँखों में
करुणा बरसती थी
जबसे /बड़े होकर /मैंने
गिरना शुरू किया है
माँ की आँखों से
आंसुओं की गंगा बहती है।

3
ज़रूरी नहीं कि झुंड में
भेड़िये ही मिले
झुंड में लुटेरे भी चलते  हैं ।
लूट एक जशन  है
नेताओं का टशन है
खरीदारों की बस्ती में
बाज़ार ए हुस्न है।

4


 

सोमवार, 3 जून 2013

बाबू जी की सांस

बाप मर गया था शायद
बेटे ने निकट आकर
पहले धीमे से पुकारा
फिर ज़ोर से आवाज़ दी-
बाबू जी...बाबू जी।
बाबू जी की बंद पलकें नहीं काँपी
कृशकाय शरीर में
कोई थरथराहट नहीं हुई
फिर बेटे ने
बाबूजी की नाक के आगे हाथ रख दिया
हाथ को साँसों की गर्मी महसूस नहीं हुई
फिर भी
हाथ नहीं हटाया
मानो विश्वास कर लेना चाहता हो
कि, सांस चल रही/या बंद हो गयी
जब विश्वास हो गया
तब बेटे ने
पत्नी के पास जाकर कहा-
सांस बंद हो गयी है
सुन कर
पत्नी ने भी पति की तरह
चैन की सांस ली।

शनिवार, 18 मई 2013

हवा

हवा बहती है
हवा कुछ कहती है
हवा, किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती
तब भी नहीं,
जब वह/बहुत तेज़ बहती है
केवल बालों से खेलती है
कपड़ों को अस्त व्यस्त कर देती है
फिर भी, नुकसान नहीं पहुंचाती
उस समय  भी नहीं
जब वह आँधी होती है
तब वह उखाड़ फेंकती है
उन कमजोर पेड़ों और वस्तुओं को
जो/नाहक अपने अहंकार में
उसका रास्ता रोकने की कोशिश करते हैं
ऐसे ही कमजोर और अपनी जड़ से उखड़े हुए
दूसरे कमज़ोरों को नुकसान पहुंचाते हैं
हवा मंद मंद हो
या तीव्र
एक ही संदेश देती है
फुसफुसाते हुए या गरजते हुए-
रास्ता मत रोको
खुद भी आगे बढ़ो
दूसरों को भी बढ़ने दो
बाधाओं को जड़ से उखड़ना ही है।

 

बुधवार, 8 मई 2013

नीम

मैंने नीम से पूछा-
तू इतनी कड़वी क्यों है?
जबकि, तू
सेहत के लिए फायदेमंद है।
नीम झूमते हुए बोली-
अगर मैं कड़वी न होती
तो, तुझे
कैसे मालूम पड़ता
कि कड़वेपन के कारण
सेहतमंद नीम की भी
कैसे थू थू होती है।

बुधवार, 1 मई 2013

मैं

मैं पंडित हूँ, लेकिन लिखता नहीं,
मैं मूर्ख हूँ, लेकिन दिखता नहीं।
ताकत को मेरी तौलना मत यारो,
महंगा पड़ूँगा कि मैं बिकता नहीं।

2
तुम जो साथ होते हो, साल लम्हों में गुज़र जाता है।
जब पास नहीं होते लम्हा भी साल बन जाता है।

3
लम्हों की खता में उलझा रहा मैं सालों तक,
होश तब आया जब बात आ गयी बालों तक।


4
ज़रूरी नहीं कि हम सफर ही साथ चले,
कभी राह चलते भी साथ हो जाते हैं।
अजनबी तबीयत से उबरिए मेरे दोस्त,
कुछ दोस्त ऐसे भी  बनाए जाते।
5
मैं पगडंडियों को हमसफर समझता रहा,
जो हर कदम मेरा साथ छोड़ती रहीं।
6.
इस भागते शहर में रुकता नहीं कोई
केवल थमी रहती है राह सांस की तरह ।

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

वेटिंग रूम

दोस्त,
तुम वेटिंग रूम हो
वेटिंग रूम में
यात्री आते हैं, ट्रेन की प्रतीक्षा करते हैं
और ट्रेन आने पर
खिले चेहरे के साथ चले जाते हैं
पर वेटिंग रूम
कहीं नहीं जाता
वह बैठा रहता है एक जगह
देखता रहता है एकटक
यात्रियों को और ट्रेन को
आते और जाते
पूरी भावहीनता के साथ
न तो यात्रियों के आने पर खुश होता है
न ट्रेन आने के बाद
उनके चेहरे पर बिखरी  प्रसन्नता का सहभागी बनता है
वह सिमटा रहता है
जन्म के समय लिख दिये गए
अपने एकाकीपन में ।

अरे अमेरिका !

ऐ अमेरिका
तुमने मुझे बेइज्जत किया
इसलिए कि माइ नेम इज खान!
तुम ने शाहरुख को किया
मैंने कुछ नहीं कहा
क्योंकि वह नाचता गाता है
ऐसे भांड मिरासियों की क्या इज्ज़त
पर आइ एम पॉलिटिशन खान
मेरी तिजोरी में गिरवी हैं
एक प्रदेश के करोड़ों मुसलमान
मेरे पैरों में जन्नत ढूंढा करती हैं एक पूरी सरकार
पर तुमने मेरी तलाशी ली
इसलिए कि माइ नेम इज खान !
अरे मैं तुम्हारे देश बॉम्ब फोड़ने नहीं आया था
मेरी तमन्ना थी
उस हरवर्ड को देखने की
जिसे तुम लोगों ने मोदी को देखने नहीं दिया
सचमुच उस दिन बेहद खुशी हुई थी
पर मुझे मोदी की श्रेणी में क्यों रखा
भाई जान मैं वही हूँ
जिसे मोदी ने मरवाया था
और जिसका तुम्हें बुरा लगा था।
और जिसके कारण तुम मोदी को अपने देश घुसने नहीं देते
अरे अमेरिका
कुछ तो फर्क समझों
मोदी और खान का
हिन्दू और मुसलमान का!

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

पसीज रही सड़क

साहब की भारी अटैची
सर पर रखे मजदूर
आगे आगे लगभग दौड़ रहे 
साहब के पीछे है
उसके साथ हैं
उसके शरीर और चेहरे से बहता पसीना
माथे से गालों तक बहती पसीने की धार
मानो सहला रही, ठंडा कर रही
उसके बदन को
साहब की कार में रखता है
मजदूर अटैची
साहब निकाल कर देते हैं
पर्स से दस रुपये
चेहरे पर हिकारत और एहसान करने के भाव
पलट कर नहीं देखते
मजदूर के चेहरे की कातरता और पसीने की बूंदे
पर ज़मीन उसके साथ हैं
उसके पसीने से पसीज कर
पिघल रही है डामर की काली सड़क।

रविवार, 24 मार्च 2013

बाहर की दुनिया

एक घर में
दो दुनिया होती हैं
बेटे के कमरे के अंदर  एक
और
बेटे के कमरे के बाहर दूसरी
कमरे के अंदर
बेटे के साथ उसकी पत्नी
और बेटा  होते हैं
वह बच्चे से खेलता, हँसता और लाड़ करता है
बीच बीच में
पत्नी को भीनी मुस्कुराहट के साथ देखता
आँखों ही आँखों में शरारत भरे संदेश देता है
पत्नी उसी प्रकार से
जवाब देती है, मुस्कुरा कर, नाज़ दिखा कर नखरे करते हुए
लेकिन,
बेटे के कमरे के बाहर की दुनिया.....!
बिल्कुल अलग होती है
इस दुनिया में
एक बूढ़ी, कमजोर और टूटी हुई माँ रहती है
जो सब खो चुकी है
पति, खुशी और स्वास्थ्य
उसे नहीं मिलता बेटे का स्नेह और बहू का सम्मान
पोता भी उसे मुंह बिचका कर देखता है
वह पकड़ना चाहती है
पर वह तेज़ी से निकल जाता है, पकड़ से बाहर
कमरे के अंदर से आती हंसी और उल्लास की ध्वनि
माँ के कानों को अच्छी लगती है
उसके चेहरे पर तिर जाती है
वह पुरानी शर्मीली मुस्कुराहट
जब पति जवान था, बेटा छोटा था
उसकी आंखे टिकी रहती हैं
बेटे के कमरे के दरवाजे पर
कि शायद
दरवाजा खुले
कमरे के अंदर की
खुशिया और ठिठोलियाँ
बिखर जाएँ उसके चारों ओर।



मंगलवार, 19 मार्च 2013

होली का त्योहार

Hkwy tkvks
lc cSj cqjkbZ
yx dj xys ;kj
vk;k gksyh dk R;kSgkj A
jax jaxhyh
NSy Nchyh
lktu ds lax
cs’kje ythyh
vka[kksa gh vka[kks esa cjls
meax ds jax gtkj A
vk;k gksyh dk R;kSgkj A
Hkax esa yVdk
isM+ ls yVdk
QwV x;k
BaMkbZ dk eVdk
ihdj Mksys fQjdh tSlk
?kwe jgk lalkj A
vk;k gksyh dk R;kSgkj AA
vkvks euk;s
lc fey xk;sa
Hkwy fclj ds
lc fey tk;sa
dksbZ uk gks viuk csxkuk
izse dk gks O;ogkj A
vk;k gksyh dk R;kSgkj AA

 

शनिवार, 16 मार्च 2013

होली हाइकु

होली के रंग
साजन संग गोरी
लाल गुलाल।
2-
होरिया मन
कस्तुरी गंध फैली
होली आयी रे।
3-
पूर्ण चंद्रमा
होली जलाते लोग
कल होली है।
4-
उनींदा सूर्य
सिर चढ़ी भंग है
होली है भाई।
5-
रंगीन पानी
बूढ़ा भया जवान
होली मनाएँ।




बुधवार, 13 मार्च 2013

अंधे की सुंदरी

एक अंधा लड़का
आ खड़ा होता रोज ही
अपने घर की खिड़की पर
महसूस करना चाहता
अपनी नाक, कान और त्वचा से
प्रकृति को
पक्षियों का चहचहाना सुनना
ठंडी हवा के झोंकों के साथ
सुगंध- दुर्गंध का अनुभव करना चाहता
एक दिन,
उसके घर की खिड़की के
ठीक सामने की खिड़की खुली
एक खूबसूरत स्त्री आ खड़ी हुई
युवक को स्वर्गिक सुगंध की अनुभूति हुई
वह भरता रहा फेफड़ों में 
वह स्वार्गिक सुगंध
रोज चलता रहा यह सिलसिला
एक दिन लड़की की दृष्टि
एकटक निहारते लड़के पर पड़ी
लड़के की बेशर्मी पर लड़की को थोड़ा क्रोध आया
उसने खिड़की बंद कर ली
फटाक से
लड़का अविचलित रहा
खिड़की बंद होने की आवाज़ कहाँ सुनाई दी थी उसे
दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ और उसके बाद के दिनों में भी
एक दिन
लड़की को मालूम हुआ
कि लड़का अंधा था
अब वह थोड़ा आश्वस्त हो गयी
अंधे के सामने वह कुछ हरकतें भी कर सकती थी
मसलन
बाल सुखाना, कंघी करना, सामने की ओर देख मुस्कराना
कभी शरारत से हाथ हिला देना भी।
लड़की सोचती
अभागा है यह अंधा
सामने खड़े अप्रतिम सौन्दर्य को
देख नहीं सकता, प्यार नहीं कर सकता
मेरी मुस्कराहट का प्रत्युत्तर नहीं दे सकता
पर अंधा लड़का
मुग्ध भाव से,
बिना इस अफसोस के
कि सुगंध का स्त्रोत
एक अप्रतिम सुंदर युवती थी,
उस स्वार्गिक सुगंध को
महसूस करता रहा,
अपने फेफड़ों में भरता रहा
प्रकृति का उपहार समझ कर।





शनिवार, 2 मार्च 2013

द्रौपदी

आज भी
द्रोपदी को
कामुक निगाहें घूरती हैं
लोग उसको नंगा होते देखना चाहते है।
पर
अब दुस्साशासन 
द्रौपदी की चीर नहीं खींचता
इसका यह मतलब नहीं कि,
दुस्साशन सुधर गया है
बल्कि,
अब द्रौपदी
साड़ी नहीं, मिनी पहनती है।
 

मेघ

काले, घुमड़ते और गरजते
मेघ की तरह
तुम
किसी बच्चे को सहमा सकते हो,
डरा भी सकते हो
लेकिन, अगर
वह विचलित नहीं हुआ
तुम्हारी गर्जना से
बारिश की आशा से
प्रफुल्लित हुआ तो
तुम्हें
बरसाना ही होगा।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

विडंबना

मैं देना चाहता हूँ
उन लोगों को
जन्मदिन की बधाइयाँ
जो अपना जन्मदिन नहीं मना पाते
जिन्हे कोई हॅप्पी बर्थड़े नहीं कहता
लेकिन क्या करूँ
उनके माता पिता तक को याद नहीं
कि
कब और कैसे
पैदा हो गए वह।

2-
अगर दरख्त
फूल फल न देते
तो भी
आज की तरह कटते।

3
उन्हे खूबसूरत कह कर मुसीबत मोल ले ली मैंने,
अब वह आईने की तरह इस्तेमाल करते हैं मुझे।

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

समय और समझ

समय और समझ
सगे भाई बहन हैं
समय बड़ा
समझ उसकी छोटी बहन
समय की उंगली पकड़
समझ बड़ी होती है
समय के साथ मिले
अनुभव से
समझ परिपक्व होती है
समय की हथेली में
समझ निवास करती है
समय हमेशा
समझ की रक्षा करता है
तभी तो समय
सदा बलवान होता है।

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

खुश रहो

देना चाहता हूँ शुभकामनायें
उन लोगों को, जो,
माना नहीं पाते
अपना जन्मदिन
काट नहीं पाते केक,
बाँट नहीं पाते उपहार,  मिठाइयां  और
ढेर सारी खुशियां।
मगर कैसे दूँ
उन्हे खुद याद नहीं अपने जन्म की तारीख
वह तो पैदा हो गए थे
ऐसे ही
पिता मजूरी करके आते
माँ बर्तन माँजती, झाड़ू पोछा करती
दोनों थके होते
सोना चाहते
पिता की इच्छा कुलांचे मारती
वह माँ को अपनी ओर खींचते
माँ कसमसाती
पर विरोध नहीं कर पाती
समर्पण कर देती खुद को
पति को ।
फिर दोनों सो जाते
भूल जाते
कोई जीव बन सकता है
इस कारण
इसीलिए
जब यह बच्चे पैदा होते हैं/तो
उनके माता पिता तक
भूल जाते हैं उनके जन्म की तारीख।
इसलिए/देना चाहता हूँ
कहना चाहता हूँ-
जब पैदा हो ही गए हो
तो खुश रहो।

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

करोड़पति मुर्दा

यकायक
वह शांत हो गया
सांस रुक गयी
शायद मर गया था
आसपास इकट्ठा लोग रोने लगे
बेटा, बेटी और पत्नी
क्रमानुसार अपेक्षाकृत ज़्यादा ज़ोर से रो रहे थे।
यकायक
उसने आँख खोई
रोते हुए लोगों को देख कर घबरा गया
बोला- क्या हुआ?
क्यों रो रहे हो तुम सब।
यह देख कर
रोने के स्वर ज़्यादा तेज़ हो गए
करोड़पति मुर्दा ज़िंदा जो हो गया था।

सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

घर बनाने की बात करें

न तुम कुफ़र करो, न हम पाप करें।
मिल बैठ कर इंसानियत की बात करें।

लड़ भिड़ कर जलाए कई आशियाने
आओ  अब इक घर बनाने की बात करें।
हमने जलाया है, खोया है, बांटा है,
आओ अब कुछ जुटाने की बात करें।
मेरा धर्म तुम्हारे मजहब से मिलता नहीं,
धर्म को मजहब से मिलाने की बात करें।
गुलशन वीरान, रौंद दिये पौंधे सारे,
आओ कल को सजाने की बात करें।

शनिवार, 2 फ़रवरी 2013

ग़ज़ल

मेरे देश के कानून इतने मजबूत हैं,
कि बनाने वाले ही इन्हे तोड़ते है.

2.
रास्ते के पत्थर मारने को बटोरता नहीं,
उम्मीद है कि मकान-ए-इंसानियत बना लूँगा।

3.
क़ातिल नहीं कि लफ्जों से मरूँगा तुमको,
इसके लिए तो मेरे लफ्ज ही काफी हैं।

4.
दुश्मनी करो इस तबीयत से
कि दुश्मन भी लोहा मान ले।

5.
आईना इस कदर मेहरबान है मुझ पर
जब भी मिलता है हँसते हुए मिलता है।

सोमवार, 28 जनवरी 2013

ढूंढते रहे अर्थ

मैंने
पृष्ठ पर पृष्ठ
भर दिये थे यह सोच कर
कि तुम पढ़ोगे
मेरी भावनाएं समझोगे
लेकिन, तुम मेरी
लिखावट में उलझे रहे
ढूंढते रहे व्याकरण की त्रुटियाँ
ठीक करते रहे मात्राएँ
भाँपते रहे,
खोजते रहे,
और लाते रहे
अपने-मेरे बीच
पंक्तियों के बीच के अर्थ ।















शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

राष्ट्रीय ध्वज

गणतंत्र दिवस पर
राष्ट्र ध्वज
आसमान पर लहराता है
फहर फहर कर
हवा में गोते लगाता है
समुद्र की लहरों सा
उन्मुक्त नज़र आता है
यह राष्ट्रीय ध्वज
हम भारत गणतंत्र के गण
हर 26 जनवरी फहराते हैं !
गलत,
हम ध्वज के साथ
फहराये कब !
ध्वज की उन्मुक्तता के साथ
आकाश में लहराये कब
हमने कहाँ अनुभव की
ध्वज की प्रसन्नता
कहाँ महसूस की
स्वतंत्र  वायु की प्रफुल्लता
हम तो बस गण है
जन गण मन गाने को
और फिर अगले साल तक
सो जाने को।

रविवार, 20 जनवरी 2013

बुधिया की दौड़

बुधिया इतनी तेज़
कैसे दौड़ लेता है?
आसान है इसे समझना
दस किलोमीटर दूर स्कूल में
समय पर पहुँचने के लिए
उसे दौड़ना पड़ता था।
पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही
बुधिया को खाना मिल सकता था
इसलिए
खेत तक जाने और आने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
पिता मर गए
खेत बिक गए
बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका
शहर आ गया
सरकारी नौकरी के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ा
सरकारी नौकरी नहीं मिली
सो, नौकरी करने लगा
चाय की दुकान पर
झुग्गी से कई किलोमीटर दूर
दुकान तक पहुँचने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो
सामने भूख हो
वह बुधिया
तेज़ तो दौड़ेगा ही।

शनिवार, 19 जनवरी 2013

खालीपन जहर और दोष

पसर जाता है
हम लोगों के बीच
अनायास इतना खालीपन
कि,
सहज जगह पा जाती हैं
कोंक्रीट की दीवारें।


जहर
जीने वालों को बार बार
पीना पड़ता है जहर
मरने वाले क्या खाक
नीलकंठ बन पाते हैं।

दोष
 जो
साथ चलना नहीं चाहते
वह
अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।
 
 

बुधवार, 16 जनवरी 2013

बेटी पैदा हुई

उदास थे पिता
सिसक रही माँ
बेटी पैदा हुई।
मिठाई कहाँ
बधाई कहाँ
घर में शोक फैला
यहाँ वहाँ।
औरत के होते हुए
यह क्या बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
वंश की चिंता
सब की चिंता
उपेक्षित बेटी को
कौन कहाँ गिनता।
पढे लिखे समाज में
जहालियत की बात हुई ।
बेटी पैदा हुई।
वंश चलाने को
बेटे की आस में
माँ फिर माँ बनी
बेटे के प्रयास में।
भूंखों की फौज खड़ी
नासमझी की बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
बेटे की माँ ने
बेटी की माँ ने
भ्रूण हत्या की
बेटी के बहाने।
कैसे होगा बेटा अगर
बेटी की न जात हुई।
 

शनिवार, 12 जनवरी 2013

हवा

तुम यदि
हवा हो तो
मुझे अनुभव करो
मुझे अपना अनुभव कराओ
किन्तु तुम तो
हवा की तरह
गुज़र जाती हो
तुम्हारा एहसास तक
शेष नहीं रहता।

बुधवार, 9 जनवरी 2013

खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन जब,
मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा
चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी ।
लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा
मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा
चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी,
थोड़ी कच्ची भी।
मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी
चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी ।
खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू
गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद
गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में
फर्क नहीं करती
वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में
अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है
चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है
क्योंकि,
मुन्ना की थाली में जो घी है
वह चुन्ना की थाली में नहीं
वह उसे
खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता ।
पर एक चीज़ होती है भूख
जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में
समान होती है, समान रूप से सताती है
वह जब लगेगी, तब
मुन्ना घी के साथ
और चुन्ना घी की खुशबू के साथ
ज़रूर खाएगा खिचड़ी।


 

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

बहक गयी बेटी

माँ ने
सीख दी थी- बेटी
दफ्तर जाना और सीधे
घर वापस आना
इधर उधर देखना नहीं
किसी की छींटाकशी पर
कान भी मत देना
बेटी/माँ की सीख का
अक्षरशः पालन करती थी
दफ्तर जाती और सीधे वापस आती
इधर उधर भी नहीं देखती,
न कुछ सुनती ।
इसके बावजूद/एक दिन
लड़की का अपहरण हो गया
कुछ लोग उसे बलात्कार के बाद
बेहोश छोड़ गए सड़क पर,
गंभीर हालत में ।
अस्पताल में
लड़की का ईलाज चल रहा था
बाहर माँ विलाप कर रही थी-
हाय क्या हो गया बिटिया को
कैसे बहक गए उसके पाँव।

न्यू इयर सेलिब्रेशन

नया साल सेलिब्रेट करने
निकले  थे कुछ लोग
नाचते रहे रात भर
डिस्को पर
झूमते रहे पी कर
पब में
जैसे ही बजा बारह का घंटा
बुझी और जली रोशनी
गूंज उठा  खुशियों भरा शोर
चढ़ गया  नशे का सुरूर
कुछ ज़्यादा थिरकने लगे थे
लड़खड़ाते पाँव ।
सेलिब्रेशन खत्म हुआ
सिर पर चढ़े नशे के साथ
लड़खड़ाते पैर
रोंद रहे थे सुनसान सड़क
तभी निगाह पड़ी
ठंड से काँपते अधनंगे शरीर पर
देखने से पता लग रहा था
शरीर जवान है-शायद अनछुवा भी
शराबी आँखें गड़ गयी जिस्म के खुले हिस्सों पर
आँखों आँखों में बाँट लिए अपने अपने हिस्से
नशे से मुँदती आँखों पर
चढ़ गया जवानी का नशा
गरम लग रहा था काँपता शरीर
घेर लिया दबोच लिया उसे
कामुकता भरे उत्साह से
उछलने लगे उसके शरीर के चीथड़े
बोटी तरह नुचने लगा शरीर
कामुक किलकारियाँ और हंसी
डिस्को कर रही थी दर्द भरी चीख़ों के साथ
शायद बहरे हो चुके थे आसपास के कान
न जाने कितनी देर तक
मनता रहा हॅप्पी न्यू इयर
जब खत्म हुआ
दरिंदगी का उत्सव
फूटपाथ  पर रह गया
कंपकँपाता शरीर 
जिसे दरिंदों की तरह
ज़्यादा कंपा रही थी शीत लहर ।