मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

सुख

जानते हो
दुःख की लम्बाई कितनी होती?
तुम्हारे जितनी
तुम्हारे दिल दिमाग में सिमटी हुई
लेकिन सुख
उसे नापना मुश्किल है
वह तुमसे
तुम्हारे परिवार तक
घर बाहर तक
बहुत दूर दूर तक पहुँच जाता है
तुम अपना सुख उछालो
फिर देखो
कितनी दूर दूर तक
फ़ैल जाता है तुम्हारा सुख
तुम नाप नहीं सकते.

सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

गौरैया

एक एक कर बच्चे चले गए थे
अपने अपने काम पर
अपनी अपनी गृहस्थी में रमने
तब मैं अकेला रह गया था.
नितांत अकेला छोड़ कर
पत्नी पहले ही चली गयी थी
शायद वह मुझसे पहले इस यातना को
सहना नहीं चाहती थी.
सूना घर काटने को दौड़ता
मुझे याद आता-
बचपन में मैंने
चिड़िया का एक घोसला तोड़ दिया था.
अंडे निकाल कर जमीन पर पटक दिए थे.
माँ ने बहुत डांटा था-
बेटा यह क्या कर दिया
किसी का घर उजाड़ दिया
चिड़िया अब अकेली रह गयी
उस दिन मुझे चिड़िया की चहचाहट
दुःख भरी लगी
इधर उधर देख रही थी
मानो अपने अंडे खोज रही थी.
चिड़िया के बच्चे नहीं हो पाए थे
मेरे तो बच्चों के बच्चे हो गए
उनके पैदा होने की खबरें आती ज़रूर थीं
लेकिन बुलावा नहीं आया था
पत्र केवल सूचनार्थ प्रेषित थे मुझे
अचानक बाहर चहचाहट हुई
एक चिड़िया इधर उधर कुछ ढूढ़ रही थी
मुझे लगा दाना ढूंढ रही थी
मैंने चावल के कुछ टूटे दाने
दूर दीवाल पर रख दिए
साथ में छोटे बर्तन में पानी भी
चिड़िया पहले सशंकित हुई
संदेह भरी नज़रों से मेरी ओर गर्दन घुमाई
मुझे याद आ गया
बचपन में घोसला तोड़ना
दुबक गया परदे के पीछे.
चिड़िया आश्वस्त हुई
चावल के कुछ दाने चुगे, पानी पिया
फिर कुछ दाने मुंह में भर कर उड़ गयी.
मैं उत्साहित हुआ
दूसरे दिन के लिए भी
कुछ अनाज और पानी रख दिया
दूसरे दिन फिर चिड़िया आयी
उसके बाद बार बार आती रही
एक दिन उसके साथ दूसरी चिड़िया भी थी
यह सिलसिला बढ़ता चला गया
मैं अनाज और पानी की मात्रा बढ़ाता चला गया.
आज मेरे घर में
सुबह से शाम तक पंछियों की चहचाहट बिखरी रहती है
मेरी नींद उनके कलरव से ही खुलती है.
आज मेरे घर मेरे बच्चे और उनके बच्चे नहीं आते
लेकिन चिड़िया
अब अपने बच्चों और उनके बच्चों के साथ आती है.

रविवार, 26 फ़रवरी 2012

बादशाह

लालकिले की प्राचीर से
एक प्रधानमंत्री
तिरंगा फहराता है और भाषण देता है
लाखों लाख लोग
देखते सुनते हैं टीवी के जरिये
और कुछ हजार कुछ सौ मीटर दूर
नीचे बैठे हुए .
उसके और जनता के बीच
दूरियों की  ही नहीं
बुलेट प्रूफ की बाधा भी होती है
वह जनता का स्पर्श क्या
पसीने की गंध तक महसूस नहीं कर पाता
इसीलिए
विद्युत् तरंगो से होता हुआ उसका सन्देश
जन मानस को मथ नहीं पाता
लेकिन
इसमें प्रधानमंत्री की क्या गलती
गलती पैंसठ साल पहले हुई थी
जब स्वतंत्रता का ध्वज
उस लालकिले की प्राचीर से फहराया गया था
जिसे एक बादशाह ने
हजारों मजदूरों का पसीना सोख कर बनवाया था.
इसके बनाने वाले मजदूर
किसी झोपड़ी में आधे अधूरे सो रहे थे
और बादशाह आराम से था अपने महल में
जनता और बादशाह के बीच की यह दूरी ही तो
आज भी बनी हुई है.

द्रौपदी

महाभारत में पढ़ा था
दुश्शासन ने खींची थी
द्रौपदी की चीर
लाज बचने के लिए चीखती रही थी द्रौपदी
मूक बैठे रहे थे पितामह और पांडव
ध्रतराष्ट्र तो वैसे ही अंधे थे
गांधारी ने नेत्रों पर कपड़ा बाँध लिया था.
तब कृष्ण ने किया था चमत्कार
बढ़ती चली गयी थी द्रौपदी की चीर
नींची होती गयी थी कौरव पांडवों की निगाहें
दुश्शासन थक कर चूर हो गया था.
मगर आज के भारत में
न जाने कितनी द्रौपदियों की चीर खींची जाती है
अब कृष्ण चमत्कार नहीं करते
द्रौपदी की लाज बचाने को .
आजकल वह
अपने सुदर्शन चक्र की जंग उतार रहे हैं।
आधुनिक द्रौपदी की
छः गज से भी कम की फटी साड़ी
पल में ज़मीन पर बिखर जाती है
पार्श्व में शीला की जवानी गीत बजता रहता है
कौरवों के साथ पांडव भी
कनखियों से देखते आनंदित होते हैं
कोई खुल के कुछ नहीं बोलता
क्यूंकि हम्माम में सभी नंगे हैं
इसीलिए दुश्शासन भी कभी थकता नहीं
आज के महान भारत का.

शनिवार, 25 फ़रवरी 2012

लाल रंग


नन्हा मचल रहा था-
माँ कल होली है
मैं भी रंग खेलूंगा
मुझे रंग ला दे
माँ कहाँ से लाती रंग
बड़े जतन के बाद
दो रोटियां जुड़ पाती थी
एक नन्हे को देती
आधी खुद खाती
आधी नन्हे के सुबह के नाश्ते के लिए रख देती.
मना कर दिया माँ ने
नन्हा मचलने लगा
मांग न पूरी होने पर
फूट फूट कर रोने लगा
इतना रोया इतना रोया
कि पूरा चेहरा लाल पड़ गया
फिर रोते सुबकते, थक कर चुप हो गया
माँ पास आई, बोली-
चल बेटे रोटी खा ले
कि तभी नन्हे के मुंह पर नज़र पड़ी
नन्हे का गाल थपकते हुए बोली-
अरे तूने कब रंग खेल लिया
देख तेरे गाल लाल हो गए हैं.
नन्हे ने शीशा देखा
माँ की बात सच थी
चेहरा सचमुच लाल था
खुश हो कर माँ को देखा
अरे हाँ माँ, सच !
पर तुम्हारी आँखों में तो काफी रंग चला गया है
कितनी लाल हो रही हैं तुम्हारी आँखें.

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

सिंहासन

देखो दोस्त,
जनपथ पर राजा बैठा है,
उसका एक गद्दियों वाला बड़ा सिंहासन है
जो बहुत मज़बूत है
राजा बहुत ताक़तवर है
उसके पास दंड और क्षमा का
राजदंड होता हैं
उसके दोनों और विद्या और बुद्धी का प्रकाश
उसे निर्णय लेने की राह दिखाता रहता है
लेकिन वह
इन शक्तियों का
उचित प्रयोग नहीं करता
वह इन शक्तियों को वैयक्तिक मानता है,
इनका दुरूपयोग करता है
वह प्रजा को, नियम और कानूनों को
अपनी पायदान बना लेता है.
उसे घमंड है
अपने बड़े से मज़बूत सिंहासन पर
इसलिए वह
प्रजा हित के बजाय
अपने और अपने ईष्ट मित्रों पर ज्यादा ध्यान देता है
लेकिन वह नहीं जानता कि
सिंहासन कितना भी मज़बूत क्यूँ न हो
गद्दी मज़बूत नहीं होती
वह टिकी होती है चार पायों पर
इसलिए
महत्वपूर्ण उसके पाये होते है
यह पाये संवेदनशील होते है
भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद उन्हें विचलित कर देता है
तुम इन्हें
राजा की गद्दी के नीचे से सरका सकते हो
पर ध्यान रहे
इन पायों को
हिंसक हो कर मत तोड़ना
क्यूंकि,
इन्हें ही फिर सहारा देना है
जनपथ के राजा को.

सोमवार, 20 फ़रवरी 2012

आशीर्वाद

मुनिया की शादी हो गयी
विदाई के समय उसने
जितने बुजुर्गों के पैर छुए
सबने आशीवार्द दिया-
सदा सुहागन रहो.
ससुराल आयी, स्वागत हुआ
मुह दिखाई हुई
उसने जितने  बड़ों के पैर छुए
सबने आशीर्वाद दिया-
सदा सुहागन रहो.
एक दिन मुनिया सोच रही थी
बचपन में मैंने माँ का दूध
अधिक उम्र तक पिया था
माँ कुढ़ कर कोसती थीं
इतनी बड़ी हो गयी
अभी तक दूध पीती है
तू मर क्यूँ नहीं जाती.
पढ़ने जाने लगी
कक्षा में फेल हो गई
अध्यापिका ने कहा-
तुम इतने ख़राब नंबर लाई हो
तुम्हे डूब मरना चाहिए.
बाली उम्र थी
एक सजीले लडके से प्रेम करने लगी
पिता भाई को मालूम हुआ
बहुत पिटाई हुई
सभी कोसने लगे-
यह दिन दिखाने से पहले
तू मर क्यूँ नहीं गयी.
मुनिया की आँखों में आंसू आ गए
मुझे किसी ने कभी
लम्बी उम्र का
आशीर्वाद क्यूँ नहीं दिया?
एक दिन मुनिया सचमुच मर गई
श्मशान घाट ले जाने के लिए
उसका शव सजाया जाने लगा.
सहसा मुनिया की आत्मा वापस आयी
उसने देखा
उसके सास ससुर क्या उसके माता पिता भी
उसके पति को कोस नहीं रहे थे.
क्यूंकि उनका आशीर्वाद जो फल गया था.

आपस की बात

बाप का सीना
गर्व से फूलता नहीं कि
उसका बेटा अब जवान हो गया है.
क्यूंकि अब
जवान होते ही बेटा
घर छोड़ कर चला जाता है.
२-
बहु द्वारा
बेटे को कब्जियाने के बावजूद
सासें अभागी है कि
वह अपनी बहुओं को कोस नहीं सकती कि
बहू ने उनके बेटों को पल्लू में बाँध लिया है
क्यूंकि अब लड़कियाँ
साड़ी नहीं पहनती.
३-
लम्बे बेटे का बाप
कभी बेटे को
बराबरी का नहीं देख पाता.
क्यूंकि,
बेटा उसे हमेशा
नीची नज़रों से देखता है.
४-
पहले सासें बहु को
भंडारे की चाभियाँ
और रसोईं का भार सौंपती थीं.
अब ऐसा नहीं होता
क्यूंकि बहु
क्रेडिट कार्ड पसंद करती है
और सास के पास भी
क्रेडिट कार्ड ही होता है.
५-
दादा को रोते देख कर
पोते ने कहा-
दादू,
तुम रोते क्यूँ हो
तुमने ही तो हमेशा
पिताजी को कंधे पर लेकर सर चढ़ाया
और गर्दन झुका ली.
६-
वह आजीवन
कर्ज़दार रहे
और कर्ज़दार मरे भी.
क्यूंकि उनके पास
आजीवन
ढेरों क्रेडिट कार्ड रहे.


गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

असुरक्षित

जो लोग
ऊंचाई पर होते हैं
वह सर्वथा असुरक्षित और अज्ञानी होते हैं.
वह जब नीचे देखते हैं तो
उन्हें देत्याकर भी बौने नजर आते हैं
वह हाथी को चींटी समझते हैं
उन्हें नीचे उठ रहा तूफ़ान
चाय की प्याली का उफान लगता है
वह वास्तविकता से दूर
कल्पना के आकाश में विचरण करते हैं
ऐसे लोगों से ज्यादा लोग
घृणा करते हैं
तुम इनसे डरो नहीं
अपने शत्रु की शक्ति से अनभिज्ञ यह
नीचे उतरते ही
मार दिए जायेंगे.
या यह जब लुढ़केंगे
तब धरा पर
मृत देह सा नज़र आयेंगे.

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

सहारा

अंधे की किस्मत !
उसकी एक आँखोवाली लड़की से शादी हुई
जिसने देखा सराहा -
चाँद सी बहू मिली है तुझे ।
वह इसे कैसे समझता
उसने चाँद देखा ही कब था ।
फिर बच्चे का जन्म हुआ
लोगो ने कहा-
बिलकुल माँ पर गया है.
वह इसे भी समझता कैसे!
उसने तो माँ को तक नहीं देखा था.
बच्चा बड़ा हुआ
आँख वाला था
इसलिए अच्छा पढ़ लिख गया ।
एक दिन न जाने क्या हुआ
घर छोड़ कर भाग गया
अंधे ने इसे अपनी किस्मत मान लिया
फिर एक दिन खबर आई
परदेश में एक दुर्घटना में
बेटा मारा गया था.
उसने अपनी अंधी आँखों से दो बूँद आंसू गिरा दिए
पर वह कानों से सुन सकता था
बच्चे के लिए बिलखती पत्नी की सिसकियों को ।
पत्नी बच्चे का गम सह न सकी
दो दिन बाद वह भी मर गयी
बेटे की याद में दो आंसू बहाने वाला अँधा
दहाड़े मार कर रोने लगा
क्यूंकि
बेटा तो चाँद सा था
लेकिन पत्नी तो सहारा भी थी.  

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2012

कातरता

मैं देख रहा था
पिता की आँखों की कातरता
वह कह रहे थे-
बेटा, मकान टूट रहा है,
बारिश में छत चूती है
सारी सारी रात नींद नहीं आती
दस हजार रुपये दे दो
मरम्मत करा लूँगा ।
मुझे याद आया
बचपन में जब बारिश होती
मैं पूरे दिन धमाचौकड़ी मचाता
पिता चिंता में डूबे रहते
कि रात में छत चुएगी
उस समय घर थोडा ही पुराना था
कहीं कहीं से ही टपका आता,
जो रात में
जब बिस्तर पर मेरे ऊपर गिरता
पिता बेचैन हो जाते
अपनी हथेलियों की छाया कर मुझे बचाते
सुरक्षित जगह पर मेरा बिस्तर लगा देते
मुझे चैन की नींद देकर
खुद पूरी रात टपके के साथ जागते गुज़ारते .
एक दिन पिताजी
तीन हज़ार का इंतज़ाम कर लाये थे
छत की मरम्मत के लिए
कि मेरा एक्सिडेंट हो गया
सारे पैसे मेरे ईलाज में खर्च हो गए
मैं ठीक हो गया
छत बदस्तूर टपकती रही.
मैं टूटी छत और पिता के चूते अरमानों के साथ
बड़ा हो गया, पढ़ लिख गया
और नौकरी भी करने लगा
शादी करके बड़े शहर में रहने आ गया.
उम्रदराज पिता के उम्रदराज मकान को
अब मरम्मत की ज्यादा जरूरत थी.
मुझे याद आया
घर में पन्द्रह हज़ार रुपये पड़े हैं.
मैं कहना चाहता था
हाँ पिताजी, ले जाइये पैसे,
करा लीजिये छत की मरम्मत
कि, तभी निगाहें पत्नी की और गयीं
उसकी आँखों की कठोरता से भयभीत मैं
पिता से दीन आवाज़ में इतना ही कह सका-
अभी इतने पैसे कहाँ
इस महंगे शहर में घर चलाना ही कठिन है
पुराने घर के लिए पैसा कैसे बचेगा
पिता के चेहरे पर मुझे
टपके से बचाने वाले भाव थे
वह इतना कह कर चले गए-
बेटा, जल्द ही कोई इंतजाम कर देना
रात में सोना मुश्किल हो जाता है.
बाहर तेज़ बारिश हो रही है
मेरे घर की छत टपक नहीं रही ।
लेकिन मुझे,
टपके से ज्यादा तड़पा रही है
टपकती छत के नीचे
मुझे सुला कर खुद जागते
मुझसे पैसा माँगते बेबस पिता की
कातर आँखें.

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

तस्वीर की मुस्कुराहट

ऐ तस्वीर
वक़्त की मार सह कर
धूल के प्रहार झेल कर
थोड़ी धुंधली पड़ जाने के बावजूद
तुम मुस्करा रही हो.  
तुम्हे कई हाथों के स्पर्श ने
थोडा खुरदुरा कर दिया है,
इसके बावजूद
तुम मुस्करा रही हो
तुम्हारी ही तरह
मेरी भी आँखों के आगे
थोड़ा धुंधलापन छा गया है.
इसके बावजूद
मैं देख सकता हूँ
तुम्हारे चेहरे पर चिर परिचित मुस्कराहट
आज भी तुम वैसे ही मुस्करा रही हो
जैसे सालों पहले
दीवाल पर टाँके जाने के वक़्त
मुस्करा रही थीं.
तुम्हे मुस्कराती  देख कर ही
मैं कह सकता हूँ कि
मैं भी कभी मुस्कराता था.

सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

छह क्षणिकाएँ

मुझे सपने
अपने कब लगे।
जब भी दिखे
सपने ही लगे।
2-
ऐसा क्यूँ होता है
कि संवेदनाएं
होती तो अपनी ही हैं
लेकिन
जब उठती हैं
तो दूसरों के लिए।
3-
मैं दुखी था
ऐसा दुख कि
आंखो में आंसूँ थे।
मैंने आसमान की ओर
देख कर कहा-
हे ईश्वर
मुझे इतना दुख?
तभी
आसमान से एक बूंद गिरी
और मेरी आँखों पर
लुढ़क गयी।
मेरे लिए
आसमान भी रो रहा था। 
4-
दुख
दो प्रकार का होता है
अपना और पराया
अपने दुख में हम रोते हैं
लेकिन जब
दूसरों का दुख अपनाते हैं
तो
हम सुखी होते हैं।
5-
आसमान में
कभी सुराख नहीं हो सकता
क्यूंकि आसमान
छत की तरह
सख्त नहीं होता।
6- 
दोस्त
तुम यह मत समझना कि
मैं तुम्हारे साथ
कुछ गलत कर रहा था ।
गलती मेरी है कि
मैं तुम्हें
इंसान समझ रहा था।

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

इंसान

इंसान
अगर सांप्रदायिक होता
तो माँ के गर्भ से
उसके हाथ में कटार या तलवार होती
आँखे शोले उगल रही होती
होठों पर नफ़रत के बोल होते.
वह बंद मुट्ठी में
अपनी तकदीर न लाया होता,
उसकी आँखों में करुणा नहीं होती
वह माँ माँ कह कर
बिलख न रहा होता.

बुधवार, 1 फ़रवरी 2012

मनहूस पेड़

मैंने देखा
एक सूखे पेड़ पर
उल्लू बैठे हुए हैं.
भयानक आवाजें करते
आस पास के लोगों
राहगीरों को डराते
पेड़ की किसी साख पर
किसी पक्षी  को नहीं बैठने देते.
इससे चकित हो कर
मैंने पूछ ही लिया-
तुम लोग इस पेड़ पर
कई दिनों से बैठे हो
कहीं और जाते नहीं
सबको डराते हो
पक्षियों को बैठने नहीं देते
वातावरण में मनहूसियत भर गई है.
उल्लू भयानक आवाज़ करते एक साथ बोले-
यह पेड़ कभी हरा भरा था
इसमें फूल खिलते थे
फल लगते थे
पक्षी इस पर बैठ कर
आनंदित हो कर चहकना चाहते
इसके फल चखना चाहते
राहगीर इसकी छाया में आराम करना चाहते
अपनी दिन भर की थकान उतारना चाहते
गाँव के बच्चे
इस पर चढ़ना चाहते
इसका झूला बनाना चाहते
इसके चारों और खेलना चाहते
इसके फल चखना चाहते
लेकिन
यह मनहूस पेड़
उन्हें पास नहीं फटकने देता
अपनी  शाखाओं  को
भयानक तरीके  से हिला कर आवाज़ करता,
लोगों को डरा देता
इस ने  गाँव के बच्चों को कभी
खुद पर बैठने नहीं दिया,
झूला झूलने नहीं दिया
यह उन्हें अपनी  डाल हिला कर
गिरा कर घायल कर देता
लोगों ने डर कर
इसके पास आना बंद कर दिया
इसे मनहूस समझ लिया
इस प्रकार
अकेला पड़ गया यह पेड़
एक दिन सूख गया.
जिस पेड़ ने
अपने हरे भरे रहते
किसी को अपनाया नहीं
कुछ दिया नहीं
उस पर हम न बैठे तो कौन बैठेगा.