बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

प्रकृति और मनुष्य

मैं कितना गहरा हूँ
नापने चले वह
थाह पाने के जूनून में
डूबते चले गए.
२-
समुद्र
अगर उथला होता
किनारों से
टकराए बिना
सोता रहता
३-
हवा
ठंडी थी
सिहरा गयी
मैंने
थोड़ी भींच ली
मुट्ठी के साथ
जेब में.
४-
आसन नहीं
अँधेरे को रोकना
जब
खुद उजाला
मुंह छिपाए.
५-
चन्द्रमा
और सूरज
दुनिया के चौकीदार
बारी बारी
जगह लेते
सुलाने और जगाने के लिए
दुनिया को.

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