शनिवार, 23 मार्च 2019

इमरजेंसी ख़त्म होने के बाद !


इमरजेंसी ख़त्म होने का ऐलान कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी को उनकी ख़ुफ़िया एजेंसीज ने मशीनी सूचना दी थी कि अगर आज चुनाव हुए तो वह भारी बहुमत से जीतेंगी.
मदांध इंदिरा गाँधी और उनके राष्ट्रवादी बेटे ने आम चुनाव का ऐलान कर दिया. वह यह नहीं भांप पाए कि इमरजेंसी के भय से दुबकी जनता अपने राजनीतिक इरादों का खुला ऐलान इसे कर सकती थी.
उस समय हम लोग, पुराने लखनऊ के याहिया गंज में रहते थे. इंदिरा गाँधी की मामी शीला कौल दूसरी बार सांसद बनने के लिए खडी हुई थी. प्रचार करते हुए भीड़ के साथ वह मोहल्ले की गली से गुजरी. मैं उस समय अपने एक दोस्त की दूकान में बैठा हुआ था. उन्होंने बिलकुल मशीनी ढंग से वोट देने की प्रार्थना की और एक सेकंड खर्च किये बिना आगे बढ़ गई.
मैंने पीछे से तेज़ आवाज़ में पूछा,"आप पांच साल में तो एक बार भी नहीं दिखाई दी थी. आज वोट माँगने आई हैं."
यह सुन कर वह पलटी. बोली क्या कह रहे हो बेटा ! मैंने अपना सवाल दोहरा दिया.
वह बोली, आप जानते हो, सांसद का काम क्या होता है ? वह दिल्ली में कितना व्यस्त होता है?"
मैंने पूछा, "तब आपको वोट देने से क्या फायदा ? आप तो अगली बार भी नहीं आ सकेंगी."
उनके साथ चल रहे एक छुटभैये नेता और उनके चुनाव संचालक ने बात सम्हाली, "बेटा तुम बच्चे हो. बात नहीं समझते."
मैं कुछ कहता कि वह शीला कौल को आगे निकाल ले गए. हमारे घर के नीचे से गुजरे तो माँ और भाई बहन छज्जे से झांक रहे थे. वह छुटभैये नेता शीला कौल से बोले, "यह कांडपाल जी का घर है. इन्ही का बेटा है वह. यह पुराने कांग्रेसी है."
शीला कौल ने माँ को हाथ जोड़ दिए, बिलकुल रोबोट की तरह.
उस चुनाव में शीला कौल क्या जीतती, खुद इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी भी नहीं जीत सके थे. आज के राहुल गाँधी के पप्पा तो उस समय प्लेन उड़ाया करते थे, जिसमे ज़ुबी कोछर उनकी एयर होस्टेस हुआ करती थी. ज़ुबी ने राजीव गाँधी से नज़दीकी का फायदा किस तरह से बजरिये दूरदर्शन उठाया उसकी कहानी प्रणव रॉय की कहानी से कुछ कम नहीं.

कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी दिमाग से पैदल सूंदर महिला हैं ?


एक बार विद्वान के पास एक खूबसूरत महिला पहुंची और उसने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखते हुए कहा, "आप मुझसे शादी कर लीजिये. इस प्रकार से जो बच्चे पैदा होंगे वह आपकी तरह जीनियस और मेरी तरह खूबसूरत होंगे.
विद्वान ने तपाक से जवाब दिया, "मोहतरमा, अगर इसका उलटा हुआ तब !"
शायद, उस समय तक दुनिया में भारत देश की कांग्रेस पार्टी की शोहरत नहीं पहुंची थी. अन्यथा, वह महिला कहती, "मैं कांग्रेस की प्रवक्ता बन जाऊंगी"
मेरी इस बात का ज्वलंत उदाहरण कांग्रेस की प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी हैं. यकीन कीजिए, जब वह टीवी पर बोलती होती है, तब मैं टीवी का वॉल्यूम बिलकुल धीमा कर देता हूँ. सुनने से क्या फायदा ! ऐसा ही तो बोलती हैं, जैसा कल बोल रही थी. मुलाहिजा फरमाइए-
"प्रधान मंत्री मोदी जी ने पाकिस्तान के स्थापना दिवस पर पाकिस्तान को बधाई दी है. जबकि, दिल्ली में पाकिस्तान दिवस पर मनाये जाने वाले जश्न का वहिष्कार किया है. मोदी जी बताएं, "क्या उन्होंने पाकिस्तान को बधाई दी? अगर दी तो पाकिस्तान दिवस का बहिष्कार क्यों किया ?"
पता नहीं कैसी नेताइन हैं प्रियंका. वह इतना भी नहीं जानती पाकिस्तान का मतलब आतंकवादियों और भारत के दुश्मनों का देश नहीं होता. वह भारत से टूट कर निकली आबादी का देश हैं. पाकिस्तान को बधाई देना, उसकी जनता को बधाई देना है. खुद आपके सैम पित्रोदा ने ही कहा है कि आठ आतंकी खून खराबा करते हैं तो उसके लिए पाकिस्तान कैसे जिम्मेदार (हालाँकि, मैं उनकी इस बात से सहमत नहीं हूँ) !
अब रही बात पाकिस्तानी दूतावास के समारोह के बहिष्कार की बात तो शायद प्रियंका ने दिमाग नहीं लगाया कि इस समारोह का बहिष्कार इस लिए किया गया कि पाकिस्तानी राजदूत ने कश्मीर के अलगावादियों और देश के गद्दारो को भी आमंत्रित किया था. उनके साथ चाय पानी पीना पाकिस्तान की जनता से मिलना नहीं, बल्कि देश द्रोहियों से मिलना होता.
वैसे जाने दीजिये प्रियंका चतुर्वेदी, आप इसे समझना भी नहीं चाहेंगी. आपके दल में तो हफीज सईद को सम्मान देने वाले नेता हैं.