रविवार, 31 जुलाई 2011

विचार

सोच
तुम कुछ करने के बाद सोचते नहीं,
तुम कुछ करने से पहले सोचते नहीं,
जानते हो इसका मतलब क्या है?
कि तुम कुछ सोचते ही नहीं
उड़ने वाला आदमी
एक आदमी आसमान से ज़मीन पर गिरा
और मर गया
क्या आप बता सकते है कि,
वह कौन था?
नहीं!!!
बताना बहुत आसान है
वह उड़न आदमी था
सांप के बराबर आदमी
एक जगह एक आदमी सो रहा था
उसके ठीक बगल में
एक मरा हुआ सांप पड़ा हुआ था
मैंने इस द्रश्य को देखा,
मन में विचार उठा,
क्या सचमुच
सोया हुआ आदमी
मरे हुए सांप के बराबर होता है?
पाप नहीं किया
आप यकीन नहीं करेंगे,
लेकिन यकीन कीजिये
मैंने अपनी ज़िन्दगी में
कभी कोई पाप नहीं किया,
बुरा काम नहीं किया।
आपको विश्वास नहीं
कोई भी व्यक्ति
पाप या बुरा काम नहीं करता,
अगर वह
किसी पवित्र नदी में स्नान कर चुकता है
अब आप कहोगे कि,
क्या अब मैंने पाप करना छोड़ दिया है?
अगर नहीं
तो मरने से ठीक पहले के पाप का क्या होगा?
दोस्त,
मैंने उसका भी इंतजाम कर लिया है
मेरा अंतिम संस्कार करने के बाद,
राख पवित्र नदी में
बहा दी जाएगी
ारे का टूटना
आसमान से एक तारा टूटता है,
हम सिहर उठते हैं,
लो सितारा टूटा,
कुछ अशुभ होने वाला है
लेकिन,
हम रोज ही,
जाने कितने,
दिल तोड़ते हैं,
तब ऐसा क्यूँ नहीं सोचते?

शनिवार, 23 जुलाई 2011

आवारा बादल

आवारा बादल
देखो आसमान में,
बादल का एक टुकड़ा,
भटकता फिर रहा है।
हम उसे देख कर,
आवारा बादल कहते हैं
कभी उस पर कुछ कह देते हैं,
कभी कुछ नहीं भी कहते।
ऐसे ही न जाने कितने,
आवारा बादल
आसमान में भटकते फिरते हैं,
और
आवारा बादल का नाम पाते हैं।
लेकिन,
जब यह सारे आवारा बादल,
एक साथ मिल जाते हैं,
तो बारिश के बादल बन जाते हैं।
और
हम कहते हैं-
लो सावन आ गया।

शनिवार, 9 जुलाई 2011

मैं और समुद्र


समुद्र में मिल जाने के बाद,
मुझे एहसास हुआ,
समुद्र में खो जाने का,
खुद के अस्तित्व के मिट जाने का।
दुखी हो रहा था कि
मेरा अस्तित्व बरकरार नहीं रह सका ।
मैं अब मिट गया हूँ।
मै युही
दुखी हो रहा था कि,
एक तिनका बहता हुआ पास आया,
बोला-
दुखी क्यूँ हो रहे हो?
तुम समुद्र में विलीन नहीं हुए हो,
तुमने अपनी जैसी बूंदों से मिल कर
इस समुद्र को बनाया है।
मुझे देखो,
मैं तुम्हारे कारण ही तो तैर रहा हूँ,
डूबते हुओं का सहारा बनने के लिए।
तुम न होते तो समुद्र नहीं होता,
मैं नहीं होता ।
तब कौन बनता डूबतों का सहारा?
अब मैं समुद्र बन कर खुश हूँ।
तिनके को तैरा रहा हूँ।

कितने प्रश्न !

ईश्वर का वरदान
एक दिन,
ईश्वर प्रकट हुए ।
बोले-
वत्स, तू मेरी दुनिया का
सबसे संतोषी प्राणी है।
मैं तुझसे बहुत खुश हूँ,
मांग, मुझसे क्या मांगता है?
तबसे
आज का दिन है,
मैं,
परेशानहाल घूम रहा हूँ,
यह सोचता हुआ
कि ईश्वर से क्या माँगूँ।
पूर्णविराम या फुलस्टॉप
वह बोले,
सब खत्म हो गया।
मैंने पूछा-
पूर्णविराम या फुल स्टॉप ?
सुख या दुख ?
मैंने
एक मरते आदमी की आँखों में झाँका,
घोर निराशा थी,     
मोह से पैदा हुई,
सब कुछ छूट जाने के कष्ट से।
उस आदमी ने,
बेहद खुशी खुशी,
ज़िंदगी भर कमाया था,
ढेरों पैसा, घर, बंगला और कार जमाया था ।
क्या इसीलिए कि
आज जब
यह मर रहा है,
तब दुनिया का सबसे दुखी प्राणी है।