सोमवार, 28 जनवरी 2013

ढूंढते रहे अर्थ

मैंने
पृष्ठ पर पृष्ठ
भर दिये थे यह सोच कर
कि तुम पढ़ोगे
मेरी भावनाएं समझोगे
लेकिन, तुम मेरी
लिखावट में उलझे रहे
ढूंढते रहे व्याकरण की त्रुटियाँ
ठीक करते रहे मात्राएँ
भाँपते रहे,
खोजते रहे,
और लाते रहे
अपने-मेरे बीच
पंक्तियों के बीच के अर्थ ।















शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

राष्ट्रीय ध्वज

गणतंत्र दिवस पर
राष्ट्र ध्वज
आसमान पर लहराता है
फहर फहर कर
हवा में गोते लगाता है
समुद्र की लहरों सा
उन्मुक्त नज़र आता है
यह राष्ट्रीय ध्वज
हम भारत गणतंत्र के गण
हर 26 जनवरी फहराते हैं !
गलत,
हम ध्वज के साथ
फहराये कब !
ध्वज की उन्मुक्तता के साथ
आकाश में लहराये कब
हमने कहाँ अनुभव की
ध्वज की प्रसन्नता
कहाँ महसूस की
स्वतंत्र  वायु की प्रफुल्लता
हम तो बस गण है
जन गण मन गाने को
और फिर अगले साल तक
सो जाने को।

रविवार, 20 जनवरी 2013

बुधिया की दौड़

बुधिया इतनी तेज़
कैसे दौड़ लेता है?
आसान है इसे समझना
दस किलोमीटर दूर स्कूल में
समय पर पहुँचने के लिए
उसे दौड़ना पड़ता था।
पिता को खाना पहुंचाने के बाद ही
बुधिया को खाना मिल सकता था
इसलिए
खेत तक जाने और आने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
पिता मर गए
खेत बिक गए
बुधिया आठ के बाद पढ़ नहीं सका
शहर आ गया
सरकारी नौकरी के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ा
सरकारी नौकरी नहीं मिली
सो, नौकरी करने लगा
चाय की दुकान पर
झुग्गी से कई किलोमीटर दूर
दुकान तक पहुँचने के लिए
बुधिया को दौड़ना पड़ता था।
जिसकी ज़िंदगी में इतनी दौड़ हो
सामने भूख हो
वह बुधिया
तेज़ तो दौड़ेगा ही।

शनिवार, 19 जनवरी 2013

खालीपन जहर और दोष

पसर जाता है
हम लोगों के बीच
अनायास इतना खालीपन
कि,
सहज जगह पा जाती हैं
कोंक्रीट की दीवारें।


जहर
जीने वालों को बार बार
पीना पड़ता है जहर
मरने वाले क्या खाक
नीलकंठ बन पाते हैं।

दोष
 जो
साथ चलना नहीं चाहते
वह
अपनी चप्पलों को दोष देते हैं।
 
 

बुधवार, 16 जनवरी 2013

बेटी पैदा हुई

उदास थे पिता
सिसक रही माँ
बेटी पैदा हुई।
मिठाई कहाँ
बधाई कहाँ
घर में शोक फैला
यहाँ वहाँ।
औरत के होते हुए
यह क्या बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
वंश की चिंता
सब की चिंता
उपेक्षित बेटी को
कौन कहाँ गिनता।
पढे लिखे समाज में
जहालियत की बात हुई ।
बेटी पैदा हुई।
वंश चलाने को
बेटे की आस में
माँ फिर माँ बनी
बेटे के प्रयास में।
भूंखों की फौज खड़ी
नासमझी की बात हुई।
बेटी पैदा हुई।
बेटे की माँ ने
बेटी की माँ ने
भ्रूण हत्या की
बेटी के बहाने।
कैसे होगा बेटा अगर
बेटी की न जात हुई।
 

शनिवार, 12 जनवरी 2013

हवा

तुम यदि
हवा हो तो
मुझे अनुभव करो
मुझे अपना अनुभव कराओ
किन्तु तुम तो
हवा की तरह
गुज़र जाती हो
तुम्हारा एहसास तक
शेष नहीं रहता।

बुधवार, 9 जनवरी 2013

खिचड़ी

मकर संक्रांति के दिन जब,
मुन्ना खिचड़ी खा रहा होगा
चुन्ना की माँ भी खिचड़ी बनाएगी ।
लेकिन खिचड़ी खिचड़ी में फर्क होगा
मुन्ना की खिचड़ी में घी होगा
चुन्ना की खिचड़ी सूखी होगी,
थोड़ी कच्ची भी।
मुन्ना की खिचड़ी से खुशबू निकल रही होगी
चुन्ना की खिचड़ी से गरम भाप तक नदारद होगी ।
खुशबू, वह भी देशी घी की खुशबू
गरीबी और अमीरी के भेद के बावजूद
गरीब बच्चे और अमीर बच्चे में
फर्क नहीं करती
वह समान रूप से जाती है दोनों के नथुनों में
अलबत्ता लालच की मात्र ज़्यादा और कम ज़रूर होती है
चुन्ना ज़्यादा ललचा रहा है
क्योंकि,
मुन्ना की थाली में जो घी है
वह चुन्ना की थाली में नहीं
वह उसे
खाने की बात दूर छू तक नहीं सकता ।
पर एक चीज़ होती है भूख
जो अमीर बच्चे और गरीब बच्चे में
समान होती है, समान रूप से सताती है
वह जब लगेगी, तब
मुन्ना घी के साथ
और चुन्ना घी की खुशबू के साथ
ज़रूर खाएगा खिचड़ी।


 

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

बहक गयी बेटी

माँ ने
सीख दी थी- बेटी
दफ्तर जाना और सीधे
घर वापस आना
इधर उधर देखना नहीं
किसी की छींटाकशी पर
कान भी मत देना
बेटी/माँ की सीख का
अक्षरशः पालन करती थी
दफ्तर जाती और सीधे वापस आती
इधर उधर भी नहीं देखती,
न कुछ सुनती ।
इसके बावजूद/एक दिन
लड़की का अपहरण हो गया
कुछ लोग उसे बलात्कार के बाद
बेहोश छोड़ गए सड़क पर,
गंभीर हालत में ।
अस्पताल में
लड़की का ईलाज चल रहा था
बाहर माँ विलाप कर रही थी-
हाय क्या हो गया बिटिया को
कैसे बहक गए उसके पाँव।

न्यू इयर सेलिब्रेशन

नया साल सेलिब्रेट करने
निकले  थे कुछ लोग
नाचते रहे रात भर
डिस्को पर
झूमते रहे पी कर
पब में
जैसे ही बजा बारह का घंटा
बुझी और जली रोशनी
गूंज उठा  खुशियों भरा शोर
चढ़ गया  नशे का सुरूर
कुछ ज़्यादा थिरकने लगे थे
लड़खड़ाते पाँव ।
सेलिब्रेशन खत्म हुआ
सिर पर चढ़े नशे के साथ
लड़खड़ाते पैर
रोंद रहे थे सुनसान सड़क
तभी निगाह पड़ी
ठंड से काँपते अधनंगे शरीर पर
देखने से पता लग रहा था
शरीर जवान है-शायद अनछुवा भी
शराबी आँखें गड़ गयी जिस्म के खुले हिस्सों पर
आँखों आँखों में बाँट लिए अपने अपने हिस्से
नशे से मुँदती आँखों पर
चढ़ गया जवानी का नशा
गरम लग रहा था काँपता शरीर
घेर लिया दबोच लिया उसे
कामुकता भरे उत्साह से
उछलने लगे उसके शरीर के चीथड़े
बोटी तरह नुचने लगा शरीर
कामुक किलकारियाँ और हंसी
डिस्को कर रही थी दर्द भरी चीख़ों के साथ
शायद बहरे हो चुके थे आसपास के कान
न जाने कितनी देर तक
मनता रहा हॅप्पी न्यू इयर
जब खत्म हुआ
दरिंदगी का उत्सव
फूटपाथ  पर रह गया
कंपकँपाता शरीर 
जिसे दरिंदों की तरह
ज़्यादा कंपा रही थी शीत लहर ।