शनिवार, 20 अप्रैल 2013

पसीज रही सड़क

साहब की भारी अटैची
सर पर रखे मजदूर
आगे आगे लगभग दौड़ रहे 
साहब के पीछे है
उसके साथ हैं
उसके शरीर और चेहरे से बहता पसीना
माथे से गालों तक बहती पसीने की धार
मानो सहला रही, ठंडा कर रही
उसके बदन को
साहब की कार में रखता है
मजदूर अटैची
साहब निकाल कर देते हैं
पर्स से दस रुपये
चेहरे पर हिकारत और एहसान करने के भाव
पलट कर नहीं देखते
मजदूर के चेहरे की कातरता और पसीने की बूंदे
पर ज़मीन उसके साथ हैं
उसके पसीने से पसीज कर
पिघल रही है डामर की काली सड़क।

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