रविवार, 30 जून 2019

गर्मी में बारिश

गर्मी में

हवा के थपड़े

चेहरे पर पड़ते हैं

झन्नाटेदार झापड़ की तरह

तपती धरती पर

बारिश की बूंदे

नथुनों में घुसती हैं

माटी की सुगंध की तरह

चेहरे पर बारिश की बूंदे

लगती है माँ की दुआ की तरह।

निशान

मैं वहाँ जाता हूँ

जहाँ तुम पहली बार मिले थे मैं जानता हूँ

जहाँ तुम मिले थे

वहां होंगे तुम्हारे कदमों के निशान

मैं वहाँ जाता हूँ

यह देखने के लिए कि

तुम होंगे,

कदमों के निशानों के आसपास

अफ़सोस तुम नहीं मिलते

निराश वापस आ जाता हूँ

छोड़ आता हूँ

तुम्हारे निशानों के साथ

अपने कदमों के निशान

इस आस में कि 

शायद कभी वापस आओ

तो जान पाओ कि

मैं वहाँ आया था।

शुक्रवार, 28 जून 2019

आओ करें वादा


आओ करें वादा

फिर साथ न चलने का

कभी न मिलने का

नदी के किनारों की तरह ।

आओ करे वादा

मिल के बिछुड़ने का

अकेले भटकने का

अमावस मे गुम हुए तारों की तरह ।

आओ करे वादा

गुम हो जाने का

याद न आने का

पतझड़ के पीले पातों की तरह ।

आओ करे वादा ।।,

मंगलवार, 25 जून 2019

मेरा सच

वह अकेला था
मेरे साथ
मेरा सच
मैं अकेला ही होता हूँ
सब एक तरफ
मैं
सच के सांथ ! 

शनिवार, 22 जून 2019

श्मशान-कब्रिस्तान


वह जगह है

श्मशान जहॉं,

चार कन्धों और भीड़ के साथ गया आदमी

राख  में मिल जाता है।

वह जगह है

क़ब्रिस्तान जहॉं

जनाज़े पर लेटा शख़्स भी

ज़मीन की गहराई में दफ़्न होता है ।

लेकिन,

वह शै है मौत !

जो आखिरी तक साथ रहती है आदमी के

श्मशान में भी, कब्रिस्तान में भी।

याद

मैं जानता था कि तुम मुझे भूल न पाओगे ,
इसलिये आता हूँ बार बार यादों में तुम्हारी ।

बुधवार, 19 जून 2019

स्वार्थ !

पिता मर गए थे
माँ खूब रोई
बहुत दिनों तक
दूर शून्य में देखती बैठी रहती

बाद में पता चला
सोचती रहती थी
मेरे बारे में
कैसे अच्छा लिखा पढ़ा पाऊंगी अपने लल्ला को !

आज माँ मर गई
बीवी 
कुछ ही देर में 
रसोई सम्हालने में लग गई
नन्हे को चुप करने में झल्लाने लगी 

मैं बैठा सोचता रहा देर तक

उस कुर्सी को देखता रहा देर तक

जिस पर बैठा करती थी माँ
सम्हाले रखती थी नन्हे को
आंसू की बूँद न गिरने देती

कैसे होगा अब यह

मर गई  है माँ।


फर्क

मुझमे

और तुम मे

फर्क सोच का है

मैं सोचता हूँ


तुम सोचते तक नहीं।

रोटी और डबलरोटी

गरीब की बेटी
बहुत भूखी थी
रोटी नहीं मिली थी
दो दिनों से। 

सामने के साहब की लड़की
खा रही थी
डबल रोटी
कई दिनों से। 

गरीब की बेटी लालच से देख रही

साहब की लड़की ने फेंक दी
डबल रोटी

लपक ली
उसके बुलडॉग ने !

आजकल


आजकल

आसमान पर

बादल गरजते हैं 

नेताओं की तरह।

सरल

आजकल

जितना कठिन है

सच को सच मानना

उतना ही सरल है

झूठ को सच बना देना।

मरने से पहले

कभी सोचता है आदमी !

मर जाने के बाद -
कहाँ जाएगा ?

कैसी जगह होगी ?

मेरे पास क्या होगा ?

कौन मिलेगा वहाँ ?
कौन होगा अपना,
कौन पराया ?

तब क्यों सोचता है ?
मरने से पहले,

कहाँ ! कैसे !! क्या और कितना !!!

अपना और पराया !

बुधवार, 12 जून 2019

इंतज़ार

बड़ी देर तक
इंतज़ार करते रहे वह
मेरी घड़ी बन्द थी
मैं समय का इंतज़ार करता रहा । 

बदनामी

तुम चाहते तो
परिचय
मॉंग सकते थे मेरा ।
पर तुमने ठीक समझा
 बदनाम करना मुझे । 

काला धन, कन्या धन


पिता ने जमा कर दिया था

काला धन

गरीब के

जन धन में

अमीर की बेटी के लिए

बन गया कन्या धन