मंगलवार, 20 मार्च 2012

सपना

सपना श्रीमती थीं या कुमारी कोई नहीं जानता था।  सरनेम तक पता नहीं था किसी को।  कॉलोनियों की खासियत होती है कि वहां एक दूसरे को कोई अच्छी तरह से जानता नहीं या जानने की कोशिश भी नहीं करता। ऎसी जगहों में परपंच को जगह मिलती है।  यह परपंच किसी बाई या नौकर के जरिये एक कान से दूसरे कान तक फैलते हैं। कुछ सजग निगाहें भी ऎसी मुआयनेबाज़ी करती रहती हैं।  सपना की भी होती होगी।
तभी तो यह बात फैली कि वह सजी तो ऐसे रहतीं जैसे मिसेज हों। लेकिन कोई स्थायी आदमी उसके घर में रहता नहीं दिखता था। हाँ, रोज कोई न कोई नया आदमी या फिर पुराना ही आता और देर रात तक जाता दीखता था। अमूमन, सपना  इनमे से किसी के साथ सजी धजी निकल जाती, कभी किसी कार में या टेक्सी में। कब लौटती ! कोई नहीं जानता था। लेकिन सुबह उसे दूध उठाते, बालकनी में टहलते या अखबार पढ़ते ज़रूर देखा जाता था।  उसके रोज के चलन को देखते हुए लोगों ने यह तय कर लिया था कि वह बदचलन हैं। या साफ़ साफ़ यह कि वह कॉल गर्ल या वेश्या थी।  लेकिन मुंह के सामने कहने की किसी में हिम्मत नहीं थी। जब आप आसपास से सरोकार नहीं रखते तो कुछ बोल भी कैसे सकते हैं। साफ़ बात तो यह थी कि कोई उससे बोलता भी नहीं था। बहुत साफ़ कहा जाये तो सपना ने ऐसा रवैय्या अख्तियार कर रखा था कि किसी की उससे बोलने की हिम्मत ही नहीं हो सकती थी।
जब कोई सपना से बोलता नहीं था, किसी से जानकारी भी नहीं थी, तब सवाल यह उठता है कि उसका नाम सपना है, यह लोगों को कैसे मालूम हुआ। अगर आप मोहल्ले के लोगों से यह प्रश्न करने लगेंगे तो वह एक दूसरे का मुंह देखने लगेंगे। कह देंगे कि किसी से सुना था।  किससे ? मालूम नहीं ! लेकिन प्रश्न का साफ़ जवाब दे हीं पाएंगे। अधिकृत रूप से तो कोई कह ही नहीं सकता था कि उसका नाम सपना है। तब उसका नाम सपना है, कैसे जान लिया गया ? इसकी कहानी बड़ी दिलचस्प है।  जैसा कि वर्णन किया गया कि वह बेहद खूबसूरत थी। . वास्तविकता तो यह थी कि उसे खूबसूरत ही नहीं, सेक्सी भी कहा जा सकता था। हमारे आधुनिक समाज में टीवी और इन्टरनेट के जरिये सेक्स और सेक्सी शब्द आम हो गया है। यह शब्द ऎसी औरत के लिए इस्तेमाल होता है, जिसे देखते ही धर दबोचने की इच्छा होती है। सपना को देख कर मर्दों में कुछ ऎसी ही भावनाएं उबाल मरती थीं। पर वह किसी से बात करना तो दूर,  किसी की ओर देखती तक नहीं थी। तब उसका नाम सपना कैसे पड़ा ! दरअसल उसकी खूबसूरती देख कर सब उससे मिलना चाहते, बातें करना चाहते। ख़ास तौर पर मर्दों के बीच उससे बात करने का ज़बरदस्त उतावलापन सा था । आम मर्दों  मन की बात की जाए तो कालोनी का हर मर्द उससे बात ही नहीं करना चाहता था, उसे पाना भी चाहता था। केवल एक रात के लिए सपना को भोगना उनका सपना था। इसीलिए शायद किसी ने उसे सपना नाम दे दिया था। उनकी दबी इच्छाओं का परिचय कराने वाला सपना  थी।  कालोनी की स्त्रियों में सपना बदनाम। बातचीत में उसे अच्छी औरत नहीं है कहा जाता।  कालोनी की वह औरतें उन्हें ख़ास तौर पर बुरी औरत कहती थीं जो खुद को सेक्सी समझती थीं।  दुनिया की मोस्ट डिजायरेबल।
दरअसल अब हमारे समाज में औरतें भी दो प्रकार की होने लगी है- पहली औरत, दूसरी सेक्सी औरत। सेक्सी औरत को देर तक देखा जा सकता है। कल्पनाओं में उसके साथ न जाने क्या क्या किया जा सकता है।  यानि जिसे चक्षु भोग कहते हैं, वह किया जा सकता है।  पहली औरत को एक बार देख लेना  काफी होता है।  मुड़ कर देखने की ज़रुरत नहीं। बाद में उन्हें कल्पनाओं में घुसने देने की भी ज़रुरत महसूस नहीं की जाती।  ऎसी औरतों को भाभी जी कहा जाता है और दूसरे प्रकार की औरतों को मिसेज अलां अलां फलां फलां कहा जाता है या भाभी कहते हुए कुछ अर्थपूर्ण जोर डाला जाता है।
बहरहाल, सपना कालोनी की दोनों टाइप की औरतों की आलोचनाओं का केंद्र हुआ करती थी। सब कहती- इस सपना से अपने मर्दों को बचाए रखना। ऎसी औरते आदमी को हड़प लेती है।  यह औरतें मर्दखोर होती हैं / न जाने कालोनी के किस घर को डँस जाए। पता नहीं कैसी निर्लज्ज औरत है, दूसरे आदमी की बाँहों में चली जाती है। घूमती है। न जाने इसी प्रकार  की कितनी दूसरी बातें।
यही  कारण था कि सपना के आने से पहले तक ज़्यादातर बिस्तर में घुसी रहने वाली, पति को नाश्ता न देने वाली या फिर टिफिन पकड़ा कर रसोई में फिर व्यस्त हो जाने वाली औरते भी पति परमेश्वर को टा टा करने के लिए दरवाजे तक जाने लगी थीं। ज़्यादातर औरतें तब तक दरवाजे पर खडी हाथ हिलाती रहती जब तक उनके पति कालोनी पार नहीं कर जाते। इतनी सावधानी के बावजूद अगर किसी मर्द की निगाहें सपना के घर की बालकनी या खिड़की पर चली जाती तो शाम को उस घर से कोहराम और हाय राम की आवाजे आने लगती।
उस दिन वह हुआ जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती थी। सपना सजधज कर बाहर निकली। एक बड़ी सी कार उसको लेने आयीं थी। कालोनी  की औरते घृणा से भर उठीं, ''छिः, कितनी गन्दी औरत है। पराये मर्द से चिपक कर बैठती है। पता नहीं कैसे छूने देती है अपना बदन और कैसे कोई उसका बदन छूता है। हम तो किसी को उंगली तक न रखने दें।''
उन्होंने सपना की तरफ से मुंह फेर लिया। मगर कनखियों से देखती रहीं। सपना कार के अन्दर एक ठाठ वाले आदमी की बगल में बैठ गयीं। कार स्टार्ट हुई. सभी निगाहें कार की ओर उठ गयीं. कि तभी हादसा हुआ। एक तेज़ रफ़्तार कार ने सड़क से गुज़र रहे आदमी को ठोकर मार दी। वह जमीन पर लहुलुहान गिर पड़ा। कालोनी की सभी औरतें दूर से ज़मीन पर पड़े उस आदमी को तड़पता देखती रही थी। अच्छी औरतें किसी गैर मर्द को हाथ नहीं लगाती हैं ना!  तभी सपना कार से उतरी। उसने आदमी को ज़मीन से उठाया।  क्षण भर में उसकी कीमती साड़ी खून में सन गयी। उसने अपने साथ के आदमी को इशारा किया। वह सूटेड बूटेड आदमी अन्दर से उतरा। दोनों ने उस आदमी को उठा कर कार में रखा। क्षण भर में कार हवा हो गयी /इस बार भी सपना ने कालोनी की औरतों की ओर मुंह उठा कर देखा तक नहीं था।
बाद में पता चला कि सपना की समय से मदद कर देने से वह व्यक्ति जीवित बच गया था। उसकी पत्नी सपना के पांवो पर लोट लोट कर अपने आंसुओं से भिगो रही थी। सपना थी कि अपने आप में सहमी खडी थी। समझ नहीं पा रही थी कि उसके प्रति कोई औरत ऎसी सोच कैसे रख सकती है।
अब अगर यह जानना हो कि इस घटना के बाद सपना के बारे में कालोनी की औरते क्या कह रही हैं तो आपको कालोनी की औरतों के बीच जाना होगा। कहानी तो अब कुछ नहीं जानना चाहती सपना के बारे में कालोनी की औरतों के मुंह से। सपना की असलियत तो उस घायल आदमी की औरत की आभार भरी बिलखन बता चुकी थी।  कॉलोनी की औरतें किसी औरत के बारे में ऐसा कैसे बयान कर सकती है ? 

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