रविवार, 11 मार्च 2012

धूप उदास

धूप का एक छोटा टुकड़ा
घर की दीवार चढ़ कर झांकता है
और फिर धीमे से
उतर आता है आँगन में
दिन भर पसरा रहता है
माँ के गठिया वाले घुटनों को सहलाता
कभी बच्चों के बालों से खेलता 
और गालों को थपकाता
पीठ पर चढ़ जाता है
बच्चे पकड़ने की कोशिश करते
वह हाथ से फिसल जाता
गेंहू पछोरती पत्नी को देखता
सूप पर उछलते गिरते दानों को छूता
रस्सी पर फैले गीले कपड़ों को नम करता, सुखाता
घर में आते जाते लोगों को चुपचाप देखता
बिन बुलाये मेहमान की तरह.
तभी तो शाम को
बच्चे बिना उसे कुछ कहे
घर के अन्दर चले जाते
उसका चेहरा पीला पड़ जाता
वह उदास सा घर से निकल जाता
कल फिर से आने को.

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिना किसी भेद-भाव के धूप सबका है | कितनी कोमलता से आपने धूप के आने जाने और क्रियाकलापों का चित्र उकेरा है | बधाई.....

    बहुत अच्छी लाईनें हैं :
    "उसका चेहरा पीला पड़ जाता
    वह उदास सा घर से निकल जाता
    कल फिर से आने को."

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  2. धूप के बहाने आपने बहुत कुछ कह डाला है। आप सशक्‍त कवि हैं, फिल्‍मी लेखन के अलावा। जय हो।

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