मंगलवार, 10 जनवरी 2012

पतझड़

दरवाज़े पर खडखडाहट हुई
किसी के आने की आहट हुई
मैंने दरवाज़ा खोला
बिखरे सूखे पत्तों के साथ
पतझड़ खड़ा था.
मेरे मुंह से अनायास निकल गया-
आहा, पतझड़ आ गया.
यकायक पतझड़ खड़ खड़ाया
उदास स्वर में बोला-
मैं पिछले एक महीने से
पीले पत्तों सा बिखरा
घर घर जा रहा हूँ
मुझे देखते ही हर मनुष्य भयभीत हो जाता है
दरवाज़ा क्या खिडकी भी बंद कर लेता है
केवल तुम हो जो प्रसन्न हो.
मैंने कहा-
तुम संदेशवाहक हो,
तुम शरीर की नश्वरता के प्रतीक हो कि
ऊंचे पेड़ों की डाल पर चढ़े
पत्तों को भी
पीला हो कर बिखर जाना है
धरा में गिर कर मिटटी में मिल जाना है.
लेकिन
तुम वसंत के आने का सन्देश भी लाते हो
तुम जाओगे तो वसंत आएगा.
नए नए पत्ते हरियाली बिखेरेंगे
और फूल खिल कर रंग बिखेरेंगे
तुम तो जीवन के प्रतीक वसंत के संदेशवाहक हो.
इसलिए मैं तुम्हे देख कर भयभीत नहीं.
आओ पतझड़ आओ!!!

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