शनिवार, 15 सितंबर 2012

कोने में बूढ़ा

अंधेरे कोने की
धूप सा
अकेला दुबका रहता  है/ बूढ़ा
कुछ अपने में सिमटा
हवा से/खिड़कियों के
हिलने से कुछ सहमा
घर में/ किसी को
क्या फर्क पड़ता है
कि/ कोने में
धूप है या नहीं
लेकिन
अंधेरे कोने को
फर्क पड़ता है
थोड़ा नज़र आता है/ कोना
खत्म हो जाता है/ अकेलापन
कोने का/बूढ़े का भी
तभी तो/जब
धूप का टुकड़ा/और बूढ़ा
अलविदा/तब
कोना/हो जाता है
कुछ उदास/गहरा उदास।

 

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