शनिवार, 15 सितंबर 2012

वसीयत

मैंने अपनी
वसीयत लिख दी है
ग़रीबी बड़े बेटे के नाम
मुफलिसी छोटे के नाम
और भूख
खुद के लिए छोड़ दी है।
बड़ा/ पैसे कमा कर
ग़रीबी दूर कर लेगा
छोटा/ धीरे धीरे सब जुटा कर
मुफलिसी दूर कर लेगा।
मैंने/ भूख/ अपने नाम
इस लिए की है/ क्योंकि
भूख से मेरा
बचपन का नाता है
मैंने इसे खाया, पिया और जिया है
यह मेरी बाल सखा, सहेली, सहपाठी और संगिनी है
इतने गहरे रिश्ते/मैं
बच्चों में नहीं बाँट सकता
यह मेरे अतीत के पन्ने है
मैं/ इन्हे/ कभी नहीं पलटता
तो/वसीयत में/ कैसे जोड़ देता
बच्चों में कैसे बाँट देता!
 

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