जब बेटी
पिता के काम से वापस आने पर
उसकी गोद में बैठ जाती है
तो बेटी जैसी लगती है।
जब वह
अपनी नन्ही उंगलियों से हाथ सहलाती है
तब स्नेहमयी माँ जैसी लगती है।
2-
क्यूँ फिक्र होती है
कि बेटी जल्दी बड़ी हो गयी
यह क्यूँ नहीं सोचते
कि कितनी जल्दी सहारा बन गयी।
3-
बेटी
कविता है
जिसे पढ़ा भी जा सकता है
और गुनगुनाया भी जा सकता है।
4-
खुद को बेटी समझने वाली
जब माँ बन जाती है
तब बेटी को
माँ की तरह क्यूँ देखती है
बेटी की तरह क्यूँ नहीं देखती
जो माँ बनना चाहती थी।
5-
भ्रूण में मारी जा रही
बेटी ने कहा-
तुम कैसी माँ हो
तुमने मुझे
अपना बचपन समझने के बजाय
भ्रूण समझ लिया।
पिता के काम से वापस आने पर
उसकी गोद में बैठ जाती है
तो बेटी जैसी लगती है।
जब वह
अपनी नन्ही उंगलियों से हाथ सहलाती है
तब स्नेहमयी माँ जैसी लगती है।
2-
क्यूँ फिक्र होती है
कि बेटी जल्दी बड़ी हो गयी
यह क्यूँ नहीं सोचते
कि कितनी जल्दी सहारा बन गयी।
3-
बेटी
कविता है
जिसे पढ़ा भी जा सकता है
और गुनगुनाया भी जा सकता है।
4-
खुद को बेटी समझने वाली
जब माँ बन जाती है
तब बेटी को
माँ की तरह क्यूँ देखती है
बेटी की तरह क्यूँ नहीं देखती
जो माँ बनना चाहती थी।
5-
भ्रूण में मारी जा रही
बेटी ने कहा-
तुम कैसी माँ हो
तुमने मुझे
अपना बचपन समझने के बजाय
भ्रूण समझ लिया।
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