शनिवार, 7 अप्रैल 2012

धूल

धूल पर हम
चाहे जितनी नाक भौंह सिकोड़ें
यह अजर, अमर और सर्वत्र है
इसका अपना महत्व है
घमंडी धूल में मिल जाता है
शरीर को धूल में ही मिल जाना है
यह ज़मीन से उठती है
हवा के साथ उड़ कर
आसमान छू लेती है
हमारे शरीर पर
पैर से सर तक लिपट जाती है
धूल का घमंड उसे
आसमान से ज़मीन पर बिखेर देता है
सर- माथे पर जमी धूल को हम
सर माथे नहीं लगाते
पैर की धूल के साथ
नाली में बहा देते हैं.

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