मंगलवार, 3 अप्रैल 2012

बच्चे की सुबह

बच्चा
सुबह ज़ल्दी जाग जाता है
वह डर जाता है
बाहर से अन्दर झाँक रहा है अँधेरा
बच्चा कस कर ऑंखें भींच लेता है
अपनी मुंदी पलकों के अँधेरे से
बाहर के अँधेरे को
झुठलाने की कोशिश करता है.
ऐसे ही लेटा रहता है देर तक
थोड़ी देर में
सुबह का उजाला
खिडकियों की झिरी से
दरवाज़े की सरांध से
अन्दर झांकता है
फिर बच्चे को देख कर
अन्दर पसर जाता है, उसके चारों ओर
बाहर चिड़ियाँ
दाना चुग रही हैं
एक दूसरे को बुला रही हैं चूँ चूँ पुकार करके
उनका कलरव, पंखों का फड़फड़ाना
बच्चे के कानों में दस्तक देता है
बच्चा आँख खोल देता है,
आ हा ! सुबह हो गयी !
वह हाथ पाँव फेंकता हुआ
मानो माँ को जगा रहा है-
उठो माँ, सुबह हो गयी।

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