रविवार, 1 मार्च 2020

हम सेक्युलर हैं



१९५९ में अमरीकी राष्ट्रपति आइजनहोवर भारत आये थे. हमारे सेक्युलर पंडित जवाहरलाल नेहरु ने आनंद भवन की पुरानी टट्टी वाले कमरे में उन्हें सुलाया था. खुद फटी हुई शेरवानी और चूड़ीदार पहन रखी थी. चहरे पर फिटकार बरस रही थी.

फिर १९६९ मे रिचर्ड निक्सन आये. तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने अपने पिता वाला कमोड धो पोंछ कर प्रधान मंत्री आवास के नौकरों वाले कमरे में रख दिया और उसमे निक्सन को ठहराया. उस समय इंदिरा गाँधी अपनी बाई की हुई सिली हुई धोती पहने थी. फटे ब्लाउज से झांकती अपनी लाज बचाने का वह भरसक प्रयास कर रही थी.

१९७८ में जिमी कार्टर भारत आये. पूर्व कांग्रेसी मोरारजी देसाई प्रधान मंत्री थे. नेहरु इंदिरा विरासत को सम्हालते हुए, उन्होंने वही कमोड और वही सर्वेंट रूम जिमी कार्टर को दे दिया.

२००० में बिल क्लिंटन आये. सांप्रदायिक वाजपेयी ने उनका बढ़िया स्वागत किया. डिसगस्टिंग वाजपयी. सेकुलरिज्म को इतनी तो जगह देते की हरे रंग के चिक लगा देते रूम में.

२००६ और २०१० में जॉर्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा भारत आते. मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री थे. हमने सांप्रदायिक सरकार के स्वागत का भरपूर बदला लिया. अमेरिका को साफ़ लिख दिया कि हम टुटपूंजिये है. हमारे पास ओढ़ने और बिछाने को चादर नहीं है. सेकुलरिज्म के प्रतीक कुछ हरे चाँदतारे वाले परदे दे सकते हैं. बाकी का इंतज़ाम आप खुद कीजिये. मौनी बाबा ने घंटा कुछ नहीं किया. बस मैडम और कुमार साहेब और बेटी दामाद के साथ अमेरिकी डिनर और लंच जम कर खींचा. बुश और ओबामा छींक मार गए कि हिन्दुस्तानियों जैसा नंगा कोई नहीं.

पर इस मोदी ने हमारा अब तक का किया धरा सब मटियामेट कर दिया है. इसने गलीचपने की हमारी कोशिशो को पलीता लगा दीया. अमेरिकी समझने लगे हैं कि हम अमीर हो गये है. हमें विकासशील देशों से निकाल दिया है . अब भीख और छूट नहीं मिलेगी. यह मोदी है कि १०० करोड़ बिछा दिए स्वागत में?

हाय हाय कैपिटलिज्म.

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