सोमवार, 6 फ़रवरी 2012

छह क्षणिकाएँ

मुझे सपने
अपने कब लगे।
जब भी दिखे
सपने ही लगे।
2-
ऐसा क्यूँ होता है
कि संवेदनाएं
होती तो अपनी ही हैं
लेकिन
जब उठती हैं
तो दूसरों के लिए।
3-
मैं दुखी था
ऐसा दुख कि
आंखो में आंसूँ थे।
मैंने आसमान की ओर
देख कर कहा-
हे ईश्वर
मुझे इतना दुख?
तभी
आसमान से एक बूंद गिरी
और मेरी आँखों पर
लुढ़क गयी।
मेरे लिए
आसमान भी रो रहा था। 
4-
दुख
दो प्रकार का होता है
अपना और पराया
अपने दुख में हम रोते हैं
लेकिन जब
दूसरों का दुख अपनाते हैं
तो
हम सुखी होते हैं।
5-
आसमान में
कभी सुराख नहीं हो सकता
क्यूंकि आसमान
छत की तरह
सख्त नहीं होता।
6- 
दोस्त
तुम यह मत समझना कि
मैं तुम्हारे साथ
कुछ गलत कर रहा था ।
गलती मेरी है कि
मैं तुम्हें
इंसान समझ रहा था।

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