शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

पाँच रोटियाँ


        (१)
भाई
रोटी दो प्रकार की होती हैं,
एक जो हम पूरी खा जाते हैं,
दूसरी जो हम थोड़ी खा कर फेंक देते हैं.
यह जो हम थोड़ी रोटी फेंक देते है ना....
उसे कुछ भूखे लोग
हमारी पहली रोटी की तरह
पूरी खा जाते हैं
बिलकुल भी नहीं फेंकते.

        (२)
मैं बचपन में
रोटी को लोती बोलता था.
फिर बड़ा होकर
मैंने उसे
रोटी कहना सीख लिया
लेकिन मैं आज भी
रोटी कमाना नहीं जान पाया हूँ.

         (३)
मैं सोचता हूँ कि अगर
भूख न होती
तब रोटी की ज़रुरत नहीं होती
तब ऐसे में क्या होता ?
आदमी क्या करता
क्या तब आदमी सबसे संतुष्ट होता
क्यूंकि रोटी के लिए ही तो मेहनत कर कमाता है आदमी.
लेकिन मेरे ख्याल से
आदमी तब भी मेहनत करता
रोटी कमाने के लिए नहीं,
सोना बटोरने के लिए
अपनी तिजोरी भरने के लिए
क्यूंकि
सोना बटोरने की भूख
तब भी ख़त्म नहीं होती.

          (४)
जब मैंने
अपने पैसे से
पहली रोटी खायी
तब मुझे खुशी के साथ साथ
यह भी एहसास हुआ
कि पिता
मेरे रोटी फेंक देने पर
क्यूँ नाराज़ हुआ करते थे.

             (५)
जब रोटी नहीं होती
हम रोटी मंगाते हैं
तब
माँ रोती है.















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